मंगलवार, 20 अगस्त 2024

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति और बोली के संवर्धन में जुटे लोक गायक सुनील बेरवाल

सामाजिक सरोकार के मुद्दों को हास्य व्यंग्य के जरिए उठाने से हुए लोकप्रिय 
                    व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुनील बेरवाल 
जन्मतिथि: 20 दिसम्बर 1987 
जन्मस्थान: गांव सीसर खरबला, हिसार (हरियाणा)
शिक्षा: पॉलिटेक्निक 
संप्रति: गायक, लेखक, 
सम्पर्क: गांव सीसर खरबला, हिसार (हरियाणा)
मोबा. 9812879328 ,8685995928, ई मेल-samundersingh328@gmail.com 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोककला और संस्कृति के लिए लोक कलाकार, लेखक, गीतकार, गायक अपनी कला के हुनर से सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर फोकस करके समाज में फैली कुरितियों का उन्मूलन करने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही लोक कलाकार के रुप में सुनील बेरवाल ने विभिन्न विधाओं में गीत लेखन और गायकी के जरिए समाज को ऊर्जा देने की दिशा में हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता और हरियाणवी बोली के संवर्धन में जुटे हुए हैं। खासतौर से हास्य व्यंग्य गीत लेखन और गायकी में लोकप्रिय हुए सुनील बेरवाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने लोक कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में अपने सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को भी उजागर किया, जिसमें समाज को अपनी संस्कृति और सभ्यता की मूल जड़ों से जुड़े रहने के संदेश देकर सामाजिक समरसता को जीवंत रखा जा सकता है। 
रियाणवी लोक संस्कृति को आगे बढ़ाते सुनील बेरवाल का जन्म 20 दिसम्बर 1987 हिसार जिले में गांव सीसर खरबला के एक किसान परिवार में शमशेर सिंह और रोशनी देवी के घर में हुआ। उनकी प्राइमरी शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई। फिर गांव के ही स्कूल से साल 2004 में उन्होंने दसवीं कक्षा पास की, जिसके बाद उन्होंने राजकीय पॉलीटेक्निक हिसार में प्रवेश लिया और साल 2008 में पॉलीटेक्निक की शिक्षा पूरी की। लोक कलाकार सुनील बेरवाल के परिवार में कोई साहित्य या लोककला या संस्कृति का माहौल नहीं था, लेकिन परिवार में अपने ताऊ के बेटे को हरियाणवी नृत्य और एक्टिंग का शौंक हुआ। वहीं सुनील ने बचपन में अपनी माता को हरियाणवी गीत गुनगुनाते देखा, तो उसका प्रभाव इन पर होने लगा। यही वजह है कि गांव के सरकारी स्कूल मे प्राइमरी शिक्षा ग्रहण करते समय ही उनमें गाने के प्रति अभिरुचि होने लगी। हालांकि उनके परिवार में सुनील से पहले उनके ताऊ के बेटे वीरेंदर सिंह ने सबसे पहले हरियाणवी संस्कृति और नृत्य कला में हिस्सा लिया। परिवार में ऐसे माहौल को देख उनका शौंक भी कला और संस्कृति के क्षेत्र में बढ़ने लगा। जब वह महज 12 साल के थे तो उन्होंने अपनी लेखनी चलाई और पहली बार देशभक्ति का हरियाणवी गीत लिखा और फिर उस गीत को स्कूल में आयोजित एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में सुनाया। उनके खुद के लिखे गीत को सुनकर उनके लेखन और गायकी सबको पसंद आई और खूब सराहा गया। इससे उनका लेखन व गायकी के प्रति आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। इस बढ़ते मनोबल ने लोककला के क्षेत्र में उन्हें ऐसा प्रोत्साहन मिला कि उन्होंने इसके बाद लेखन और गायन को गति देना शुरु कर दिया। लोक कला व संस्कृति के क्षेत्र में उसके बाद उन्होंने बड़ी संख्या में हरियाणवी भजन और गीत लिखे और गांव के हर कार्यक्रम, कीर्तन और अन्य धार्मिक व सांस्कृतिक प्रोग्रामों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। बकौल सुनील बेरवाल उनकी आवाज को पसंद किया जाने लगा और वह देशभक्ति, सामाजिक, अध्यात्मिक तथा हास्य व्यंग्य गीतों का लेखन भी करने लगे। उनकी आवाज ने सभी कार्यक्रमों में दर्शकों व श्रोताओं को खूब लुभाया। अपनी स्कूली शिक्षा और तकनीकी शिक्षा के दौरान वह संस्थानों में आयोजित होने वाले वार्षिकोत्सव और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लगातार हिस्सा लेते रहे और अपनी कला को निखारते रहे। इस दौरान उन्हें सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन और गायी के अवार्ड भी मिले। 
यहां से मिली मंजिल 
लोक गायक सुनील बेरवाल ने बताया कि साल 2012 में उन्होंने एक ब्रेक के बाद गीत लेखन और गायन शुरु करके उसे ऐसी गति दी कि उनके गीतों और गायकी से इस क्षेत्र में उन्हें लोकप्रियता मिलने लगी। खासतौर से उन्होंने लेखन व गायकी के विस्तार में हास्य व्यंग्य गीतों के साथ अभिनय से लोगों के मनो को जीतकर उन्हें खूब आकर्षित किया। इस दौरान उन्होंने एक हास्य यानी कॉमेडी फिल्म बनाई, जिसे टेली फिल्म के रुप में बहुत ही ज्यादा चर्चित रही। लोककला के क्षेत्र में यह उनकी पहली टेली हास्य फिल्म थी, जिसमें उनकी हंसने की कला को सर्वाधिक पसंद किया गया। यही नहीं उनकी इस हास्य फिल्म को बेस्ट अवार्ड मिला और अनेक सांस्कृतिक मंचों पर भी उन्होंने हास्य व्यंग्य की कला का प्रदर्शन किया। उन्होंने बताया कि यह कटु सत्य है कि किसी भी क्षेत्र में उतार चढ़ाव जिंदगी का हिस्सा होता है। ऐसा उनकी कला में भी आया। मसलन पॉलीटेक्निक की पढ़ाई पूरी करने के बाद साल 2009 में उनके हरियाणवी गीतों का एक एलबम आया, लेकिन उसका प्रतिसाद यानी प्रत्युत्तर अच्छा नहीं रहा। इसका कारण था कि संगीत निर्देशक और कैमरामैन ने स्वार्थवश अच्छा काम नहीं किया और उससे एलबम बनाने के नाम पर काफी धनराशि हड़प कर ली। एक किसान परिवार का बेटा होने के नाते उनका ऐसा मनोबल टूटा कि मानसिक रुप से परेशान होने की वजह से दो साल तक लोक कला के क्षेत्र में कोई काम नहीं किया। गायक सुनील ने बताया कि इसके बाद मित्रों और परिवार के बढ़ाये गये हौंसले के बाद उन्होंने साल 2012 में फिर से अपना गीत लेखन और गायन शुरु किया, तो उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और वह अभी भी हरियाणवी संस्कृति और हरियाणवी बोली को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं। 
संगीत कला की स्थिति नाजुक 
आधुनिक युग मे लोक कला और संगीत के सामने चुनौतियों को लेकर सुनील बेरवाल का कहना है कि इस सोशल मीडिया और व्यस्त जीवन के दौर में संगीत व कला की स्थिति नाजुक दौर में है। खासकर युवा पीढ़ी की लोक कला और संस्कृति के प्रति अभिरुचि बेहद कम है, इसका कारण पाश्चत्य संस्कृति और मोबाइल में उलझने के साथ द्विअर्थी लोक संगीत या अभिनय के आकर्षण युवाओं को सामाजिक और अपनी संस्कृति से दूर ले जा रहा है। आजकल युवाओं को कला के छोटे और ऑनलाइन प्लेटफार्म के फेर में पड़ी युवा पीढ़ी का सीधा प्रभाव समाज और संस्कृति को हाशिए पर ले जा रहा है। इसलिए लोक कलाकारों को द्विअर्थी लेखन या गायन को त्यागकर युवाओं को अभिनय और लोककला संगीत के लिए प्रेरित करना बहुत आवश्यक है। इसके लिए गांव से लेकर स्कूल व कालेज स्तर पर बच्चों को अपनी संस्कृति और संस्कारों से जुड़े कार्यक्रमों के प्रति प्रेरित करना आवश्यक है, तभी हम समाज को सकारात्मक विचाराधारा से जोड़े रख सकते हैं। 
19Aug-2024

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