सोमवार, 29 जुलाई 2024

साक्षात्कार: साहित्य सृजन से समाज को सकारात्मक संदेश देते बलदेव राज भारतीय

कहानीकार, व्यंग्यकार लेखक के रुप में साहित्य क्षेत्र में बनाई पहचान 
        व्यक्तिगत परिचय 
नाम: बलदेव राज भारतीय 
जन्मतिथि: 22 दिसंबर 1971 
जन्म स्थान: गांव असगरपुर (यमुनानगर) 
शिक्षा: एम.ए. (इतिहास, हिंदी) बी.एड. 
संप्रति: इतिहास प्रवक्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार
संपर्क: गाँव असगरपुर, डाकघर सालेहपुर, तहसील साढौरा, जिला यमुनानगर(हरियाणा)। मोबाइल: 8901006901, 8930306901, Email: brbhartiya@gmail.gmail.com 
 BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में साहित्यकारों, शिक्षाविदो एवं मूर्घन्य विद्वानों का विभिन्न विधाओं में जिस प्रकार से साहित्य सृजन किया जा रहा है, उसका सामाजिक क्षेत्र में सभ्यता, संस्कृति, रीति रिवाज और संस्कारों के संवर्धन में अहम योगदान है। ऐसे ही साहित्यकारों में शुमार बलदेव राज भारतीय सामाजिक, अध्यात्मिक, शैक्षणिक और विभिन्न सामयिक परिदृश्यों पर अपनी लेखनी चलाते हुए भारतीय संस्कृति और संस्कारों का संवर्धन करने में जुटे हुए हैं। उनके साहित्य सृजन में कविता, गीत, कहानियां, लघुकथाएं और व्यंग्य लेखों में मर्मस्पर्शी और हालातों पर चिंतन के साथ उनके सुधारने की दिशा में सकारात्मक संदेश की भी झलक नजर आती है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में शिक्षाविद् एवं साहित्यकार बलदेव राज भारतीय का स्पष्ट मत रहा कि उनके साहित्यिक सफर में उनका हमेशा सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दो पर किसी न किसी विधा में समाज को सकारात्मक विचारधारा का संदेश देने का प्रयास रहा है। 
हिंदी साहित्यकार बलदेव राज भारतीय का जन्म 22 दिसंबर 1971 को हरियाणा राज्य के जिला यमुनानगर (तत्कालीन जिला अंबाला, तहसील नारायणगढ़) के शिवालिक की तलहटी में बसे एक छोटे से गांव असगरपुर में मुकंदी लाल और श्रीमती शांति देवी के घर में हुआ था। उनके पिता हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में एक अध्यापक थे। बचपन में पिता रामायण और महाभारत से संबंधित कहानियां सुनाते रहते थे, जिसका प्रभाव मेरे मानस पटल पर अंकित हो गया। परिवार की पृष्ठभूमि बेशक साहित्यिक नहीं थी, परन्तु बचपन से ही घर में हिंदी समाचार पत्र आया करते थे, जिनमें छपी कहानियों को अकसर वह पढ़ा करते थे। ऐसे पढ़ते-पढ़ते उन्हें लेखन के प्रति रुचि कब जागृत हो गई, मुझे पता ही नहीं चला। बलदेव राज की प्राथमिक शिक्षा निकटवर्ती गांव झंडा की राजकीय प्राथमिक पाठशाला में हुई, तो मैट्रिक तक राजकीय उच्च विद्यालय सालेहपुर से शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने उच्च शिक्षा यमुनानगर के प्रतिष्ठित कॉलेज मुकंद लाल नेशनल कॉलेज में ग्रहण की। जबकि सोहन लाल एजुकेशन कॉलेज अंबाला शहर से बी.एड. और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से प्राइवेट विद्यार्थी के तौर पर स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। बलदेव की लेखन के प्रति रुचि विद्यार्थी काल से ही रही। साहित्यकार बलदेव ने सितंबर 2006 से अतिथि अध्यापक के तौर पर राजकीय प्राथमिक विद्यालय ठसका सढौरा में कार्य शुरु किया। इसके बाद और अगस्त 2019 से इतिहास पीजीटी (शिक्षक) के रुप में कार्य शुरु किया। आजकल वह में पीएमश्री राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सालेहपुर में इतिहास पीजीटी के रूप में कार्यरत हैं और साथ ही वह स्वतंत्र पत्रकारिता भी करते हैं। बकौल बलदेव राज उन्होंने आरंभ में कविता लिखना शुरु किया, तत्पश्चात कहानी लिखने लगे और लेखन की इस करवट ने उन्हें व्यंग्य की ओर भी मोड़ दिया और इसलिए व्यंग्य ने भी उनके मस्तिष्क में अपना स्थान बनाया। बलदेव की पहली रचना के रुप में उन्होंने साल 1991 में भारत माता को समर्पित एक कविता लिखी थी। 1993 में जब उनके बड़े भाई की मृत्यु हुई, तो भाई को समर्पित ‘दर्द’ शीर्षक नामक एक गीत लिखा। हालांकि वह आरंभिक अवस्था में अपने लेखन को गति नहीं दे पाए, लेकिन 1998 में ‘अपराध बोध’ नाम से एक छोटी सी कहानी लिखी, जो एक पंजाब केसरी के कहानी संस्करण में प्रकाशित हुई, तो उनके लेखन को पंख लगने लगे। इसके बाद उनके लेख, कहानियां, व्यंग्य, लघुकथाएं देश के प्रतिष्ठित समामचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। लेकिन वह व्यक्तिगत रूप से एक बेरोजगार होते हुए कभी किसी पुस्तक को प्रकाशित करवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। इस बीच लेखन में शिथिलता भी आ गई। परन्तु साहित्यिक मित्रों ने ऐन मौके पर इस शिथिलता को तोड़ा, जिनके प्रयास से साल 2018 में हरियाणा साहित्य अकादमी के द्वारा मेरे प्रथम कहानी संग्रह ‘निमंत्रण पत्र’ के लिए अनुदान मिला। उनकी रचनाएं जहां सामाजिक पारिवारिक ताने बाने में उच्च आदर्श मूल्यों के ह्रास को उद्धृत करती हैं, वहीं इन मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रयास करती हैं। बलदेव राज का मानना है कि साहित्य का काम केवल समाज की खामियों को गिनाना नहीं, अपितु एक अच्छे समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना भी है। 
आधुनिक युग में बढ़ा साहित्य सृजन का पैमाना 
आधुनिक युग में साहित्य के हर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सृजन हो रहा है। परन्तु गुणवत्ता में कहीं न कहीं गिरावट महसूस की जा रही है। आज साहित्य नहीं, बल्कि साहित्यकार बोलता है। जो अपनी पुस्तक की जितनी अच्छी पब्लिसिटी कर लेता है, उसकी पुस्तक उतनी अधिक चर्चित हो जाती है। यहां तक कि कई साहित्यकार पब्लिसिटी के लिए ओछे तरीके भी अपनाते हैं। वे अपनी पुस्तकों में विवादित विषय डाल देते हैं और प्रेस में उसके लिए बयान भी दे देते हैं। जिससे पाठकों की उत्सुकता उस पुस्तक के विषय में बढ़ जाए। आज लिखे हुए साहित्य को पढ़ने का समय युवा पीढ़ी के पास नहीं है। मोबाइल के इस युग में युवा पीढ़ी की रुचि साहित्य के प्रति कम होती जा रही है। युवाओं को पुस्तकालयों के माध्यम से साहित्य के प्रति जागरूक किया जा सकता है। अच्छा साहित्य अच्छे समाज का निर्माण करता है। स्कूलों में विद्यार्थियों को साहित्य के प्रति जागरूक करके हम युवाओं की रुचि को साहित्य के प्रति जागृत कर सकते हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार बलदेव राज ने विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन किया है। अब तक उनकी प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से कहानी संग्रह ‘निमंत्रण-पत्र’, कविता संग्रह ‘अधूरी-कविता’, व्यंग्य संग्रह ‘कुछ उरे परे की’, लघु कविता संग्रह ‘संवेदना के स्वर’ प्रमुख हैं। जबकि 1998 से उनकी कविताएं, व्यंग्य, कहानियां और सामयिक लेख देश के विभिन्न समाचार-पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते आ रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस और सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका की ओर से अंतर्राष्ट्रीय अटल काव्य लेखन प्रतियोगिता 2020 में प्रशस्ति पत्र, मुंबई प्रकाशित प्रवासी संदेश द्वारा आलेख लेखन के लिए प्रशस्ति पत्र, साहित्य सागर एवं सत्यम प्रकाशन की ओर से मुक्तक लहरी सम्मान, श्री राम नाट्य एवं लेखन मंडल नाहन की ओर से साहित्य रत्न सम्मान मिला है। हरियाणा प्रादेशिक लघुकविता मंच सिरसा की ओर से लघु कविता सेवी सम्मान 2023 तथा वर्चुअल प्लेनेट प्रोडक्शन प्रा लि. की ओर से लघुकविता सृजन सम्मान 2023 से सम्मानित किया गया। वहीं पिछले साल सिरमौर कला साहित्य संगम द्वारा डॉक्टर परमार पुरस्कार से नवाजते हुए सम्मानित किया गया है। 
29July-2024

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