सोमवार, 1 जुलाई 2024

साक्षात्कार: सामाजिक संस्कारों में साहित्य की अहम भूमिका: राजश्री

सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर किया साहित्य सृजन
 व्यक्तिगत परिचय 
नाम: राजश्री गौड़ 
जन्मतिथि: 24 नवम्बर, 1956 
जन्म स्थान: हथीन, जिला पलवल(हरियाणा) 
शिक्षा: बीए, बीएड़ (हिन्दू गर्ल्स कॉलेज सोनीपत) सम्प्रति: समाज सेवा, स्वतंत्र लेखन 
संपर्क:: सैक्टर-15, सोनीपत हरियाणा। मोबा. 8208627957 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में साहित्यकार और रचनाकार अपनी विभिन्न विधाओं में समाज को नई दिशा देने में ‘साहित्य समाज का दर्पण’ प्रसांगिकता को सुदृढ़ करने में अपना योगदान करते आ रहे हैं। गद्य व पद्य दोनों ही शैलियों में साहित्य सृजन करने वाले साहित्यकारों में हर किसी लेखक का ध्येय यही है कि उनकी रचनाएं समाजिक बुराईयों का उजागर करके समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करे। सामाजिक रिति रिवाज और संस्कृति के साथ संस्कारों को संजोने वाले ऐसे साहित्यकार और लेखकों में हरियाणा की महिला रचनाकार भी पीछे नहीं हैं। ऐसी ही महिला साहित्यकार राजश्री गौड़ ने भी सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर अपने रचना संसार को आगे बढ़ाने में जुटी है। समाज सेवा कार्य में सक्रीय रचनाकार और कवियत्रि राजश्री गौड़ ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिससे साहित्य के बिना समाजिक संरचना अधूरी है।
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रियाणा की महिला साहित्यकार राजश्री का जन्म हरियाणा के पलवल जिले के तहसील हथीन में 24नवम्बर, 1956 को एक शिक्षित और समृद्ध परिवार में पं. चिन्तामणि पाराशर व जय देवी के घर में हुआ। उनके बाल्यकाल के दौरान ही उनका संयुक्त परिवार सोनीपत (हरियाणा) में आकर बस गया। इसलिए उनकी पूरी शिक्षी दीक्षा सोनीपत में ही हुई। उनके पिता कुश्ती कबड्डी व वालीबॉल के खिलाड़ी थे, लेकिन दादा के देहावसान के कारण उन्हें पैतृक काम ज्वैलरी और जवाहरात का बिजनेस संभालना पड़ा। राजश्री की प्रारंभिक शिक्षा आर्या गर्ल्स स्कूल में हुई और उन्होंने हिन्दू गर्ल्स कॉलेज, सोनीपत से बी.ए. और बी एड़ किया। इसके बाद एम.ए. प्रीवियस (हिन्दी) में दाखिला लिया, लेकिन किन्हीं कारणों से पूरी नहीं हो सकी। अपने शिक्षित परिवार में उन्होंने दादी को गीता और रामायण तथा माँ को भजन गुनगुनाते घर के काम करते देखा, तो वहीं उनके पिता का साहित्य से बहुत लगाव था, जो हमेशा सोने से पहले शरतचंद्र, बिमल मित्र व मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पढ़ते थे। वहीं घर में पत्र पत्रिकाएं भी आती थी, जिनमें से पिताजी उन्हें कविताओं को कंठस्थ कराते थे और शनिवार को स्कूल में होने वाली बालसभाओं में वह कविताएं सुनाती थी। ऐसे में साहित्य के प्रति अभिरुचि होना स्वाभाविक ही था। मसलन बचपन में ही उन्होंने रचनाओं के रुप में लेखन कार्य शुरु कर दिया था। हालांकि वास्तविक रुप से उनका लेखन कार्य कालेज की शिक्षा के दौरान साल 1972 से शुरु हुआ और कालेज की मैगज़ीन में उनकी कविता छपी। जबकि से भोपाल से प्रकाशित एक अखबार में 20 जनवरी 1984 को गणतंत्र दिवस परिशिष्ट में उनकी छपी तो उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। लेकिन नवंबर 1978 में विवाह के बाद परिवार की जिम्मेदारी सर्वोपरि रही और लेखन कार्य नगण्य सा हो गया। बाद में बच्चों की शादी के बाद अकेलापन में उनके पति व बच्चों के प्रोत्साहित करने पर फिर लेखन कार्य ही शुरु नहीं किया, बल्कि कुछ सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ गई। साहित्यिक सफर में उतार चढ़ाव भी जीवन का अंग है और उनके सामने में भी इस दौरान कई ऐसे दिलचस्प व परेशानी भरे मोड़ आए, जिन्हें सोच कर वह आज भी चेहरे पर मुस्कान या कभी मन दुखी होता है। वह कभी कभार जब समाज में घटित किसी घटना से मन उद्वेलित हो जाता, तो अपने भावों को काव्य रूप में डायरी में कलम-बद्ध कर लेती थी। राजश्री ने बताया कि उनकी रचनाएं प्रेम, भाईचारा व सामाजिक सरोकार को लेकर होती, जिसमें सामाजिक बुराईयों को उजाकर कर समाज को नई दिशा देने पर कलम चलना लाजिमी था। 
साहित्य की महत्ता कायम 
हरियाणा की महिला साहित्यकार राजश्री गौड़ का आधुनिक युग में हिन्दी साहित्य के महत्त्व और उपयोगिता को लेकर कहना है कि आरंभ में जहां पद्यात्मक शैली में साहित्य की रचनाएँ की गई, जिसके बाद बदलते समय-काल के अनुसार काव्य, गद्य में कहानी, एकांकी, लेख, उपन्यास लघुकथा और राष्ट्रवादी रचनाओं में राजनीतिक प्रभाव नजर आने लगा है। इसके बावजूद आज भी स्वस्थ साहित्य का विशेष स्थान है और रहेगा। इसका कारण है कि साहित्य की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण और पथ-प्रदर्शक भी है। बेशक आज साहित्यक पुस्तकें कम पढ़ी जाती हैं, लेकिन पाठक कम नहीं हैं। इस इंटनेट और सोशल मीडिया के युग में अपनी पसंद से पाठक ऑनलाइन साहित्य पढ़ते हैं, जो सामाजिक दृष्टि से सकरात्मक पहलु है। वहीं यह भी सच है कि सोशल मीडिया मोबाइल के कारण फेसबुक, इंट्राग्राम व कई अन्य साइट्स पर साहित्य के अलावा देश दुनिया की बहुत सारी चीजें, यूट्यूब पर बहुत कुछ मिल जाता है। इस आधुनिकीकरण की दौड़ में समाजिक विकास तो हो रहा है, लेकिन संस्कृति और संस्कारों में कमी होती नजर आ रही है। इसलिए आज की युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति स्कूल व कालेज स्तर पर भी प्रेरित करने की ज्यादा जरुरत है। वहीं कवि, शायरों और लेखकों को स्तरहीन रचनाओं की अपेक्षा ज्यादा अच्छे साहित्य सृजन करने की जरुरत है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार राजश्री गौड़ की प्रकाशित 15 पुस्तकों में 12 साझा संग्रह और 3 एकल काव्य-संग्रह शामिल हैं। उनके काव्य संग्रह में 'धनक', ग़ज़ल-संग्रह 'तुमको भुलाया कहाँ है' और 'मत कहो ज़िन्दगी थमी है' शामिल है। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन हेतू पांडुलिपि तैयार है। इसके अलावा उन्होंने कोरोना काल में ई काव्य संकलन भी लिखा, वहीं ई-लघुकथा संकलन में हरियाणा के प्रमुख लघुकथा कार भी शामिल है। इसके अलावा उनकी पुस्तकों की लेखन विधा में कविता, ग़ज़ल, लेख, व्यंग्य लेख, लघुकथा, कहानी, बाल कविताएं भी शामिल हैं। कविता-कोश, साहित्य-पीडिया, क़ागज-दिल.कॉम पर भी उनकी रचनाएं उपलब्ध हैं।
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट योगदान देती आ रही साहित्यकार, कवियत्री एवं गजलकार राजश्री गौड़ को हिन्दी प्रचार प्रसार साहित्य अकादमी, भोपाल द्वारा तीन बार सम्मानित किया जा चुका है। प्रमुख रुप से उन्हें नारी गौरव सम्मान, श्रेष्ठ हिन्दी रचनाकार सम्मान, प्रेम-काव्य सम्मान, भारत के प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान, साहित्य-शिरोमणि सम्मान, सिद्धी साहित्य सम्मान, जैमिनी अकादमी सम्मान, भारत गौरव सम्मान के अलावा अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण मंच, जिया साहित्य मंच बैंगलोर, हिन्दी प्रचार प्रसार साहित्य अकादमी भोपाल, कागज-दिल साहित्य संस्था और जैमिनी साहित्य अकादमी पानीपत आदि साहित्यिक मंचों से पुरस्कार के साथ सम्मानित किया जा चुका है। वहीं अंतरराष्ट्रीय क्राईम रिफोर्म समिति द्वारा सम्मान भी उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। उनकी अन्य उपलब्धियों में दो ग्रेट वूमेन ऑफ द ईयर और एक लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड भी शामिल है। 
01July-2024

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