सोमवार, 28 अगस्त 2023

साक्षात्कार:नारी शक्ति पर साहित्य सृजन करती रचनाकार शीला काकस

समाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर समाज को ऊर्जा देने का प्रयास 
                         व्यक्तिगत परिचय 
नाम: शीला काकस 
जन्मतिथि: 31 अगस्त 1957 
जन्म स्थान: मुंबई (हरियाणा) 
शिक्षा:‍ इंटरमिडिएट 
संप्रत्ति:‍ महिला रचनाकार व लेखक 
माता पिता: मालूराम व श्रीमती शांति देवी
संपर्क: गांव सैदपुर, मंडी अटेली (हरियाणा), मोबाइल: 9355010629 
By-ओ.पी. पाल 
 हरियाणा में साहित्य जगत में विभिन्न विधाओं में समाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर लेखन करने वाले साहित्यकारों में महिलाएं भी साहित्य सृजन करने में अहम योगदान दे रही है। ऐसी महिला रचनाकारों में शामिल गद्य व पद दोनों रुप में खासकर नारियों के उत्थान पर लेखन करते हुए अपनी रचनाओं के संसार को आगे बढ़ा रही है। उनका साहित्य सेवा के माध्यम से महिलाओं के प्रति समाज में पनपी विपरीत अवधारणा के उन्मूलन हेतु समाज में सकारात्मक विचारधारा को जीवंत करने का प्रयास है। वह महिलाओं की पीड़ा और दर्द को अपनी साहित्यिक रचनाओं में सामाजिक विसंगतियों को तो उजागर कर ही रही हैं, वहीं वे महिलाओं के उत्थान के लिए सामाजिक सेवा में सक्रिय रुप से जुटी हुई है। साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं से जुड़ी महिला साहित्यकार शीला काकस ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में सामाजिक विकृतियों के खिलाफ जन चेतना जागृत करने, नारी उत्थान तथा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अपनी भूमिका के पिछले करीब तीन दशक के सफर में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया, जिसमें वह महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति प्रेरित करके नारी शक्ति का अहसास भी करा रही हैं। 
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साहित्यकार एवं समाजसेविका के रुप में महिलाओं के उत्थान करने में जुटी शीला काकस का जन्म 31 अगस्त 1957 को मुंबई में महेन्द्रगढ़ जिले के गांव मोहलड़ा के मूल निवासी मालूराम व श्रीमति शान्ति देवी के घर में हुआ। उनका जन्म उस दौरान हुआ, जब उनके पिता भारतीय वायु सेना में कैप्टन के पद पर मुंबई में तैनात थे। पिता सेना में रहे, तो परिवार में अनुशासन ही प्राथमिकता के साथ नियमित दिनचर्चा के साथ पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान रहा। हालांकि कविताएं और कभी लिखने की रुचि भी उन्हें स्कूली जीवन से रही। लेकिन परिवार में साहित्यिक माहौल कतई नहीं रहा। बकौल शीला काकस, हरियाणवी रीति रिवाज और प्राचीन परंपराओं के चलते 18 साल की उम्र होते ही परिजनों ने जुलाई 1975 को उसका विवाह महेन्द्रगढ़ जिले के अटेली मंडी में गांव सैदपुर निवासी रोहित यादव के साथ कर दिया। ससुराल आई तो वहां परिवेश कुछ अलग ही मिला, जहां उनके पति का रुझान पहले से ही पत्रकारिता और साहित्य लेखन की ओर बढ़ता नजर आया। यह देख उसे भी अपने साहित्य व लेखन में अभिरुचि को आगे बढ़ने की संभावनाएं नजर आने लगी। वह इसे संयोग या अपना सौभाग्य ही मानती है कि उसकी साहित्यिक अभिरुचि को आगे की राह मिली और वह भी पति के साथ साहित्यिक कार्यक्रमों में जाने लगी और लिखना भी शुरु कर दिया। हमसफर के मिले प्रोत्साहन से उनके शुरु हुए लेखन का ही नतीजा रहा कि उनकी पहली रचना 1988 में दैनिक स्वतंत्र विश्व मानव में प्रकाशित हुई। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक ही था। हालांकि घर परिवार में गृहणी के रुप में घर का कामकाज और खेती बाड़ी के काम में हाथ बंटाने के कारण उनके सामने समाज सेवा और लेखन कार्य में कुछ उलझने तो सामने जरुर आई, लेकिन उनके हमसफर रोहित जी के साथ उनका साहित्यिक लेखन बरकरार रही नहीं रहा, बल्कि आगे बढ़ा। उन्होंने बताया कि उनकी गद्य व पद्य दोनों रुपो में लिखी गई साहित्यिक रचनाओं का फोकस देश प्रेम तथा लोक संस्कृति पर रहा, लेकिन सामाजिक सरोकारों के मुद्दे भी उन्हें लिखने के लिए झकझोरते रहे। खासबात ये है कि काव्य रचनाओं के जरिए समाज को दिशा देने के मकसद से उन्होंने अंधेरे में दीपक जलाते हुए औंधे घड़े को सीधा करने का प्रयास किया, ताकि आने वाली पीढ़ियां कुछ अच्छा तलाशने में सक्षम बन सकें। 
फोकस में सामाजिक सरोकार 
साहित्य क्षेत्र में शीला काकस की रचनाओं का फोकस नारी सशक्तिकरण, सामाजिक विसंगति तथा विद्रूपता के अलावा पर्यावरण जैसे विषयों पर रहा है। इसलिए उनकी रचनाओं में साक्षारता, बालिका शिक्षा, महिला सशक्तिकरण एवं समानता, बेटा-बेटी में अभेद, नारी सम्मान, पीढ़ियों का अंतर, सास-बहू में बढ़ती दूरिया, दहेज कुप्रभा, जनवृद्धि आदि सामाजिक मुद्दें प्रमुखता से नजर आते हैं। सामाजिक मुद्दों को उजागर करने के पीछे उनका यही प्रयास है कि ऐसी बुराईयों को त्यागकर समाज सकारात्मक विचारधारा की सोच सृजित करे, तो समाज को नई दिशा मिलना संभव है। उनकी रचनाएं निरंतर राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं और उनका आकाशवाणी रोहतक से भी प्रसारण होता रहा है। श्रीमती काकस नारी कल्याण और उनकी समस्याओं को लेकर सामाजिक सेवाओं में भी सक्रिय रुप से साहित्यिक संस्थाओं के अलावा सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी हुई हैँ। ऐसी संस्थाओं में प्रमुख रुप से बाबू बालमुकुंद गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्यिक सरंक्षण परिषद रेवाडी, अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ नई दिल्ली, राष्ट्रीय पत्रकार मोर्चा भोपाल तथा कला संगम परिषद में सदस्य के रुप में जुड़ी हुई हैं। इसी प्रकार वह नारी चेतना मंच जिला महेन्द्रगढ़ की अध्यक्ष और अभिव्यक्ति सांस्कृतिक मंच नारनौल की सचिव पद की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं। 
पाठ्यक्रम का हिस्सा बने साहित्य 
आज के आधुनिक युग में साहित्य की चुनौतियों के बारे में शीला काकस का कहना है कि आज साहित्य लिखने वालों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन उस हिसाब से पढ़ा नहीं जा रहा है। इसका कारण आज के बदलते परिवेश के अनुसार लेखन न होना भी है। वहीं प्रतिस्पर्धा के दौर में साहित्यकार और लेखक भी साधना के बिना आगे बढ़ने का प्रयास करता है, लेकिन वरिष्ठ लेखकों और साहित्यिक व संस्कृति से जुड़ी पुस्तकों के पठन-पाठन के बिना साहित्यिक लेखन कभी परवान नहीं चढ़ सकता। शायद इसी कारण आज की युवा पीढ़ी में भी साहित्य के प्रति रुझान कम हो रहा है और दूसरी ओर इंटरनेट व सोशल मीडिया के बढ़ते प्रचलन की वजह युवा वर्ग मोबाइल में उलझा हुआ है। जहां तक युवा पीढ़ी को साहित्य और अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरित करने का सवाल है, इसके लिए पाठ्यक्रमों में साहित्य व संस्कृति को हिस्सा बनाने के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं में खेल की तरह साहित्यिक प्रश्नों को शामिल करना जरुरी है। शीला काकस की रचनाओं में सामाजिक मुद्दें उजागर किये गये हैं और इसमें उनका यही प्रयास है कि ऐसी सामाजिक बुराईयों को त्यागकर समाज सकारात्मक विचारधारा की सोच सृजित करे, तो समाज को नई दिशा मिलना संभव है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला रचनाकार शीला काकस ने नारी उत्थान को लेकर कविताओं और लघुकथाओं जैसी रचानाएं लिखी हैं, जिनका प्रसारण आकाशवाणी रोहतक से भी होता रहा है। उनकी लिखित पुस्तकों में कन्या भ्रूण हत्या पर आधारित काव्य रचना पुस्तक ‘नारी तेरे नाम’ बेहद सुर्खियों में हैं, इसमें नारी शोषण व अत्याचार जैसी बुराईयों के खिलाफ 36 काव्य रचनाएं संकलित हैं। जबकि कविता संग्रह जागो मेरी बहनों जागो के अलावा वास्तुशास्त्र और हम और क्या कहती हैं रेखाएं जैसी किताबे भी उनकी कृतियों का हिस्सा हैं। इसके अलावा उनकी कुछ रचनाओं का पंजाबी भाषा में अनुवाद भी किया गया है। 
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्यकार शीला काकस को एबीआई संस्था के अमेरिकल मैडल ऑफ ऑनर सम्मान व वूमेन ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा साक्षी सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान, साहित्य मणि सम्मान, साहित्य मीना सम्मान, लोकवाणी सम्मान के साथ अखिल भारतीय मानवाधिकार संघ हरियाणा तथा दक्षिणी हरियाणा सांस्कृतिक मंच नारनौल जैसी देश-प्रदेश की दर्जनों संस्थाएं उन्हें पुरस्कार देकर सम्मानित किया है। 
28Aug-2023

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