सोमवार, 21 अगस्त 2023

चौपाल: कैनवास पर कला व संस्कृति के रंग बिखेरती रितु बामल

आपदा को अवसर में बदलकर महिलाओं के लिए बनी प्रेरणास्रोत 
              व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रितु बामल 
जन्मतिथि: 14 फरवरी 1982 
जन्म स्थान: गाँव माटोल जाटान, जिला हिसार (हरियाणा)
शिक्षा: स्नातक 
संप्रत्ति:‍ चित्रकार, फाइन आर्ट 
संपर्क: डीएलएफ एरिया, पंचकूला  (हरियाणा),  मोबाइल नं.-9130463317/8813047098 
माता-पिता: श्रीमती कृष्णा देवी, पिता स्व. धर्मसिंह बामल 
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BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला व संस्कृति के क्षेत्र में पंचकूला-शिमला हाइवे स्थित डीएलएफ कालोनी की निवासी महिला चित्रकार श्रीमती रीतु बामल ने अपनी कला से बेटियों और महिलाओं को ऐसी प्रेरणा देकर एक मिसाल कायम की है, कि आपदाओं में अवसर कैसे ढूंढा जा सकता है? मसलन कोरोना काल के चुनौती पूर्ण समय के दौरान जब सीआईएसएफ में तैनात उनके पति देश की सेवा में व्यस्त रहे, तो उन्होंने अपनी चित्रकारी के शौंक को विभिन्न विधाओं में विस्तार देकर कला को ऐसा मूर्तरूप दिया कि उनके कैनवास पर कला और संस्कृति के बिखेरे जा रहे रंगों का हर कोई कायल होता नजर आया। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान रितु बामल ने अपनी चित्रकारी कला को लेकर कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जो समाज के लिए किसी सकारात्मक विचाराधारा की ऊर्जा देने से कम नहीं है। 
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रियाणा में कला और संस्कृति को प्रोत्साहन देती चित्रकार रीतू बामल का जन्म हिसार जिले के गांव माटोल जाटान में धर्मसिंह बामल और श्रीमती कृष्णा देवी के घर में 14 फरवरी 1982 को हुआ। उनके पिता एक आयुर्वेदिक वैद्य और माता मुख्याध्यापिका रही। रितु को चित्रकारी में बचपन से ही रुचि थी और वह घरेलू चीजों पर पेंटिंग करने का प्रयोग करती रहती थी। उन्होंने बताया कि बचपन में वे गांव से हिसार शहर में रहने लगे तो उन्होंने 'पेपर मेसी' कला से शुरूआत की। इस कला को कश्मीर की विकसित परंपरा से जोड़ कर देखा जाता है। वहीं देश के अन्य भागों में भी यह परम्परा देखने को मिलती है। बचपन में उसने देखा कि गांव में शादियों पेपर मैसी के बर्तनों में मिठाईयां डालकर परोसी जाती है, जिससे प्रेरित होकर उसने 'पेपर मेशी' के फोटोफ्रेम, पैन स्टैंड, मुखौटे बनाकर उन्हें पेंटिंग करके सजाना शुरु किया। कला के क्षेत्र में अभिरुचि इतनी गहरी होती गई कि उनकी चित्रकारी कला पहली बार पुणे में उस समय सार्वजनिक हुई, जब उन्होंने ‘वर्ली’ कला की पेंटिंग बनाई, जो महाराष्ट्र की ‘वर्ली’ लोककला के नाम से जानी जाती है। इस कला में सीनरी, गमले आदि शामिल हैं, जो कि अधिकांश घरो में सबकी पसंद होते हैं। हर कदम पर नई प्रेरणा लेकर अखबार और पत्रिकाओं के पेजों का इस्तेमाल करते हुए रितु ‘क्विलिंग’ से सजावट की चीजें तैयार की और कोस्टर, प्लेट, टोकरी, दीवार पर सजाने के लिए पत्ते के आकार के शोपीस बनाए। बकौल रितु बामल जब वे पंचकूला आ गये तो उन्होंने ‘पिछवाई’ कला पर काम करना शुरु किया, जो राजस्थान की प्रसिद्ध लोक चित्रकला है। इसमें उन्होंने श्रीनाथ जी, कमल के फूल, गाय, हाथी जैसे कई रूपों में पेंटिंग तैयार करके ग्रामीण परंपरा की झलक पेश की। 
देश की सेवा में जुटे पति 
रितु बामल के पति विनोद ढुल सीआईएसएफ हैदराबाद एयरपोर्ट पर तैनात है, जो देश की सेवा करते आ रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ रितु घर संभालने के साथ इस कला को विस्तार देने में जुटी हुई हैं। उन्होंने बताया कि जैसे ही उसने अपनी इस कला को सोशल मीडिया पर अपलोड किया, तो उसकी सकारात्मक प्रतिक्रिया ही नहीं, बल्कि उससे रंगों से सजे गमले आदि बर्तन खरीदनों वालों की होड़ सी लग गई। उसके रंग बिरंगे तैयार उत्पादों की मांग बढ़ी तो उन्होंने अपनी कला को विस्तार देते हुए अब अमूर्त पेंटिंग, पेंटिंग्स, रंगीन बर्तन, सजी हुई टेराकोटा प्लेटें जैसे उत्पाद तैयार करके इसे एक व्यवसाय के रुप में अपना लिया है। उनका कहना है कि वैसे भी आज कल सभी लोग अपने घर के ड्राइंगरूम में पौधे रखने लगे हैं, जहां रंगों से सजा हुए गमले से हर कोना खिल उठता है। उनके पति भी उनके कामकाज औऱ कला जैसे रचनात्मकता में सहयोग करते हैं। वहीं परिवार में बेटा गर्वित 12वीं कॉमर्स का छात्र है, जो अपनी मां की कला के इस शौंक में हाथ बंटाकर उनका मनोबल बढ़ा रहा है। 
लॉकडाउन में मिली बड़ी मंजिल 
कोरोना काल में लॉकडाउन के समय उन्होंने अपने उन गमलों को रंगों से सजाना शुरु किया, जिसमें वह शौंक के तौर पर पौधे लगाती थी, तो आस पडोस के लोगों को वह बहुत पसंद आया। उनका कहना है कि एक तरह से उसे आपदा को अवसर में बदलने का मौका मिला, जिसका उनको अहसास भी नहीं था, कि उनके पेंटिंग किये गये गमलों के खरीदार भी सामने आएंगे, लेकिन उस मौके ने उनकी कला को ऐसा विस्तार दिया कि उनके पास गमलों के बड़े बड़े आर्डर आने लगे। यहां तक कि गमलों में कम रुचि रखने वाले भी उनके पास पेंटिंग वाले गमले अपने घरों को सजाने के लिए आने लगे। दरअसल गमलों को लोग जन्मदिन व सालगिरह के अलावा दीवाली पर और गृह प्रवेश के मौके पर उपहार देने और घर के साथ ऑफिस के लिए भी इस्तेमाल करते हैं। रितु ने लोगों की पसंद के अनुसार कुछ चीजों में बदलाव करते हुए 'टेराकोटा' प्लेट भी तैयार करनी शुरु कर दी, जहां पलास्टिक बैन किया गया, तो उसके मद्देनजर उसने मिट्टी से बनी चीजों को भी रंगों से सजाना शुरु कर दिया। यहां से उनकी कला को ऐसी मंजिल मिली कि वह अब कई तरह की पेंटिंग करने लगी हैं, जिसमें 'एब्सट्रेक्ट पेंटिग' को वह अपनी कल्पना के शुद्ध रूप को कैनवास पर उतारने की कला में निपुण हो गई। उनकी पेटिंग में लिक्विड पेंट का ज्यादा प्रयोग किया जाता है, जिसमें उन्होंने मिट्टी की प्लेट्स पर भी रंगों का हुनर प्रस्तुत किया है। 
युवा पीढ़ी को प्रेरित करना आवश्यक 
आज के आधुनिक युग में खासतौर से नई पीढ़ी कला, संस्कृति और चित्रकारी में कम होती रूचि के बारे में रितु बामल मानती हैं कि इसका बड़ा और मुख्य कारण 'सोशलमीडिया' हैं, जिस पर युवाओं का ज्यादा समय व्यतीत हो रहा है। जाहिर सी बात है कि इसका सीधा प्रभाव समाज पर होना स्वाभाविक है। यदि युवाओं को साहित्य, कला व संस्कृति के प्रति प्रेरित न किया गया, तो ये चीजे धीरे-धीरे लुप्त हो जाएगी। इस दिशा में सरकार को भी कदम उठाना चाहिए और युवाओं को अपने साहित्य लोक कला व संस्कृति के लिए प्रेरित करने की दिशा में सरकार को स्कूलों और कालेजों में भी इस विषय के पाठ्यक्रम को बढ़ावा देना चाहिए। 
 21Aug-2023

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