बुधवार, 16 अगस्त 2023

साक्षात्कार: साहित्य के माध्यम से बच्चों को राह दिखाते रचनाकार गोविन्द भारद्वाज

राष्ट्रीय स्तर पर बाल साहित्यकार के रुप में बनाई अपनी पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: गोविन्द भारद्वाज 
जन्मतिथि: 23 अक्टूबर 1969 
जन्म स्थान: गाँव नानूकलाँ तहसील पटौदी जिला गुरुग्राम (हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (इतिहास), बीएड सेट उत्तीर्ण। 
संप्रत्ति: प्राचार्य, महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय(अंग्रेजी माध्यम)चौरसियावास,अजमेर (राज.) 
संपर्क: 'पितृकृपा' 4/254, बी-ब्लॉक, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, पंचशील नगर, अजमेर(हरियाणा)। 
मोबाइल नंबर 9461020491
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 BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य को समृद्ध बनाने की दिशा में साहित्यकार एवं लेखक सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों से समाज को नई दिशा देने का प्रयास करते आ रहे हैं। ऐसे रचनाकारों में बाल साहित्यकार के रुप में विख्यात हरियाणा के गोविन्द भारद्वाज उन चुनिंदा साहित्यकारों में शामिल है, जिन्होंने विभिन्न विधाओं में बाल मनोहार के प्रति समर्पित होकर बच्चों और नई पीढ़ियों के उज्जवल भविष्य के लिए अपनी रचनाओं को विस्तार दिया है। उन्होंने बाल कहानियों, कविताओं और लघुकथाओं के माध्यम से बच्चों को सामाजिक, सभ्यता, संस्कृति से प्रेरित करने के अलावा किसानों और मेहनतकश लोगों के जीवन और परिश्रम से अवगत कराते हुए उन्हें बेहतर भविष्य की राह दिखाने का प्रयास किया है। बच्चों में सकरात्मक रुप से एक नई सोच विकसित करने में जुटे बाल साहित्यकार, कवि, कहानीकार गोविंद भारद्वाज ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसमें इस आधुनिक युग में बिगड़ते सामाजिक ताने बाने के लिए समाज को भी एक सकारात्मक विचारधारा और अपनी संस्कृति के प्रति समर्पित रहने का संदेश मिलता है।
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सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार गोविन्द भारद्वाज का जन्म 23 अक्टूबर 1969 को गुरुग्राम जिले की पटौदी तहसील के गांव नानूकलां में सैनिक रहे राधेश्याम शर्मा व माया शर्मा के घर में हुआ। उनके दादा गोरधनलाल शर्मा गांव के प्रसिद्ध वैद्य थे। जबकि पिता सेना पुलिस में थे और माता गृहणी थी। एक फौजी परिवार में वे केवल वीरता की कहानियां ही वे सुनते रहे। मसलन उनके परिवार में किसी भी तरह का कोई साहित्यिक माहौल नहीं था। इसी गांव से प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद गोविन्द ने उच्च प्राथमिक सैय्यद शाहपुर और मैट्रिक परीक्षा पटौदी के गांव खोड़ से उत्तीर्ण की। गोविन्द भारद्वाज को बचपन में रेडियो सुनने का शौक था, जिसमें उन्हें आकाशवाणी रोहतक और दिल्ली के कार्यक्रम सुनते हुए लेखन की अभिरुचि हुई। उनकी पहली रचना 1991 में राजस्थान के एक समाचार में प्रकाशित हुई तो उनका आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने निरंतर लेखन किया, जो उनके लिए एक साहित्यकार के रुप में सार्वजनिक होता गया। उनका ज्यादातर लेखन बाल साहित्य पर ही रहा। उनका कहना है कि पढ़ाई के साथ साथ उनके लिए लिखना किसी चुनौती से कम नहीं रहा, लेकिन वह लेखन को आगे बढ़ाते रहे। अजमेर में अपने ताऊ जी के पास रहकर उन्होंने उच्च शिक्षा पूरी की, क्योंकि दिव्यांग होने के कारण रेवाड़ी या गुरुग्राम जाना उनके लिए मुश्किल था। बाद में उन्हें राजस्थान के अजमेर में नौकरी मिली। हालांकि इससे र्ग्व उनका चयन राजकीय कन्या महाविद्यालय चंडीगढ़ में सहायक आचार्य के पद हुआ था। लेकिन अजमेर के महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय में प्राचार्य के पद पर तैनात हैं। उन्होंने बताया कि नौकरी मिलने के बाद उन्होंने अपने लेखन के कार्य को तेजी से विस्तार देना शुरु किया और वे एक बाल साहित्यकार के रुप में पहचाने जाने लगे। क्योंकि उनके लेखन का फोकस बच्चों के मनोविज्ञान को समझना और उनके लिए लिखने पर ज्यादा रहा है। 
साहित्य की कई विधाओं में रचनाएं
पिछले करीब तीन दशक से लेखन करके समाज, खासतौर से बच्चों और युवा पीढ़ी को नई दिशा देने में जुटे साहित्यकार गोविन्द भारद्वाज बाल साहित्य में ही नहीं, बल्कि कविता, गजल और आध्यात्मिक गीत जैसी विधाओं में अपनी साहित्यिक रचनाओं को विस्तार देने में जुटे हुए हैं। उनकी बाल कविताएं और कहानियां आकाशवाणी और दूरदर्शन के कार्यक्रमों में भी प्रसारित हुई हैं। वहीं भजनों और गजलें यूट्यूब पर रिलीज हो चुकी हैं। उनकी रचनाएं राष्ट्रीय पत्र व पत्रिकों में प्रकाशित होती आ रही हैं। यही नहीं वे राजस्थान ओपन बोर्ड की पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति एवं विरासत’ में पाठ लेखन का कार्य भी कर चुके हैं। गोविन्द भारद्वाज को इसी साल जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी राजस्थान ने सुविख्यात रहे कथाकार स्वर्गीय यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र‘ की स्मृति में पहला यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र‘ बाल साहित्य पुरस्कार उनके बाल कहानी संग्रह ‘जंगल है तो मंगल है’ नामक पुस्तक को दिया है। बाल साहित्य के लिए लेखन करने वाले गोविन्द भारद्वाज को हरियाणा व राजस्थान ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में सम्मानित होने गौरव हासिल है।
शिक्षा का अंग बने साहित्य 
इस आधुनिक युग में साहित्य का स्थिति को लेकर भारद्वाज का कहना है कि साहित्य समाज का दर्पण है, इसलिए प्राचीन काल से आज तक साहित्य को सम्मान मिला है।लेकिन आज के युग में साहित्य के सामने जरुर कुछ संकट खड़ा हुआ है, जहां कोई साहित्य के पठन पाठन का सवाल है इस तकनीकी युग में बदलती सोच के कारण साहित्य निचले पायदान पर खड़ा नजर आने लगा है, जिसे समृद्ध बनाने के लिए सभी लेखकों व साहित्यकारों को कोई नीति बनानी होगी। साहित्य और साहित्यकारों के सामने समस्या यही है कि इस मोबाइल, कम्प्यूटर और नयी-नयी सूचना तकनीक ने पाठकों में कमी आई है, इसके जिम्मेदार माता-पिता हैं, जिन्हें बच्चों को बचपन से साहित्य और संस्कृति के संस्कार देने की जरुरत है। लेकिन विडंबना ये है कि आज एकांकी परिवारों में बिखराव भी समाज को प्रभावित कर रहा है। जबकि लेखक और साहित्यकार अपने लेखन को समाज में सकारात्मक विचारधारा की ऊर्जा देने का प्रयास कर रहे हैं और करते रहेंगे। उनका यह भी मानना है कि बाल साहित्य, युवा साहित्य और प्रौढ़ साहित्य को शिक्षा का अभिन्न अंग बनाया जाए, तो नई पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित किया जा सकता है। लेकिन इसकी जिम्मेदारी हम साहित्यकारों की भी है, जो पढ़ते कम हैं और लिखते ज्यादा हैं, जो अच्छे साहित्य को कहीं न कहीं प्रभावित कर रहा है। इसलिए लिखने से पहले अध्ययन करना बेहद जरुरी है, तभी साहित्य और समाज के भविष्य को उज्जवल बनाया जा सकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध बाल साहित्यकार गोविन्द भारद्वाज की प्रकाशित करीब एक दर्जन पुस्तकों में दो बाल कविता संग्रह में सूरज का संदेश व हम बच्चे मन के सच्चे, बाल कहानी संग्रह में सच्चे दोस्त, बिल्ली मौसी बड़ी सयानी, नन्हा जासूस, नये दोस्त, जंगल है तो मंगल है, छुटकी चींटी जिंदाबाद और उल्लू बना मुंगेरी लाल शामिल हैं। वहीं उन्होंने एक लघु कथा संग्रह ‘रिश्तों की भीड़’ की भी रचना की है। इसके अलावा उनके बालगीत, बाल कहानी, बाल कविता, पहेलियां, ग़ज़ल, लघुकथाएं, क्षणिकाएं एवं व्यंग्य आदि साहित्यिक विधाएं भी सुर्खियों में हैं। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
देश-प्रदेश में विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी साहित्यिक संस्थाओं द्वारा प्रसिद्ध बाल साहित्यकार गोविंद भारद्वाज को चार दर्जन से भी अधिक पुरस्कारों से नवाजा गया है। जहां उन्हें हरियाणा के भिवानी में 'श्रीमती रज्जीदेवी नंदराम सिहाग स्मृति साहित्य सम्मान और हिसार और नारनौल में 'मनुमुक्त मानव स्मृति सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। वहीं उन्हें विभिन्न संस्थाओं ने बाल साहित्य पर विभिन्न विधाओं की रचनाओं के लिए 'प्रतिभा सम्मान के रुप में कई पुरसकार दिये हैं। इसके अलावा प्रमुख सम्मानों में 'शिक्षक सम्मान, बाल साहित्य सृजन सम्मान, बाल साहित्य सम्मान, अक्षय गौरव सम्मान, सलिला साहित्य रत्न सम्मान, शान-ए-अदब सम्मान, अनुराग बाल साहित्य सम्मान, स्व.रामनारायण अग्रवाल बाल साहित्य साधना सम्मान, हिंदी भाषा लघुकथा पुरस्कार आदि जैसे अनेक पुरस्कार गोविन्द भारद्वाज के नाम दर्ज हैं।
14Aug-2023

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