सोमवार, 29 जुलाई 2024

साक्षात्कार: साहित्य सृजन से समाज को सकारात्मक संदेश देते बलदेव राज भारतीय

कहानीकार, व्यंग्यकार लेखक के रुप में साहित्य क्षेत्र में बनाई पहचान 
        व्यक्तिगत परिचय 
नाम: बलदेव राज भारतीय 
जन्मतिथि: 22 दिसंबर 1971 
जन्म स्थान: गांव असगरपुर (यमुनानगर) 
शिक्षा: एम.ए. (इतिहास, हिंदी) बी.एड. 
संप्रति: इतिहास प्रवक्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार
संपर्क: गाँव असगरपुर, डाकघर सालेहपुर, तहसील साढौरा, जिला यमुनानगर(हरियाणा)। मोबाइल: 8901006901, 8930306901, Email: brbhartiya@gmail.gmail.com 
 BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में साहित्यकारों, शिक्षाविदो एवं मूर्घन्य विद्वानों का विभिन्न विधाओं में जिस प्रकार से साहित्य सृजन किया जा रहा है, उसका सामाजिक क्षेत्र में सभ्यता, संस्कृति, रीति रिवाज और संस्कारों के संवर्धन में अहम योगदान है। ऐसे ही साहित्यकारों में शुमार बलदेव राज भारतीय सामाजिक, अध्यात्मिक, शैक्षणिक और विभिन्न सामयिक परिदृश्यों पर अपनी लेखनी चलाते हुए भारतीय संस्कृति और संस्कारों का संवर्धन करने में जुटे हुए हैं। उनके साहित्य सृजन में कविता, गीत, कहानियां, लघुकथाएं और व्यंग्य लेखों में मर्मस्पर्शी और हालातों पर चिंतन के साथ उनके सुधारने की दिशा में सकारात्मक संदेश की भी झलक नजर आती है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में शिक्षाविद् एवं साहित्यकार बलदेव राज भारतीय का स्पष्ट मत रहा कि उनके साहित्यिक सफर में उनका हमेशा सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दो पर किसी न किसी विधा में समाज को सकारात्मक विचारधारा का संदेश देने का प्रयास रहा है। 
हिंदी साहित्यकार बलदेव राज भारतीय का जन्म 22 दिसंबर 1971 को हरियाणा राज्य के जिला यमुनानगर (तत्कालीन जिला अंबाला, तहसील नारायणगढ़) के शिवालिक की तलहटी में बसे एक छोटे से गांव असगरपुर में मुकंदी लाल और श्रीमती शांति देवी के घर में हुआ था। उनके पिता हिमाचल प्रदेश शिक्षा विभाग में एक अध्यापक थे। बचपन में पिता रामायण और महाभारत से संबंधित कहानियां सुनाते रहते थे, जिसका प्रभाव मेरे मानस पटल पर अंकित हो गया। परिवार की पृष्ठभूमि बेशक साहित्यिक नहीं थी, परन्तु बचपन से ही घर में हिंदी समाचार पत्र आया करते थे, जिनमें छपी कहानियों को अकसर वह पढ़ा करते थे। ऐसे पढ़ते-पढ़ते उन्हें लेखन के प्रति रुचि कब जागृत हो गई, मुझे पता ही नहीं चला। बलदेव राज की प्राथमिक शिक्षा निकटवर्ती गांव झंडा की राजकीय प्राथमिक पाठशाला में हुई, तो मैट्रिक तक राजकीय उच्च विद्यालय सालेहपुर से शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने उच्च शिक्षा यमुनानगर के प्रतिष्ठित कॉलेज मुकंद लाल नेशनल कॉलेज में ग्रहण की। जबकि सोहन लाल एजुकेशन कॉलेज अंबाला शहर से बी.एड. और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से प्राइवेट विद्यार्थी के तौर पर स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। बलदेव की लेखन के प्रति रुचि विद्यार्थी काल से ही रही। साहित्यकार बलदेव ने सितंबर 2006 से अतिथि अध्यापक के तौर पर राजकीय प्राथमिक विद्यालय ठसका सढौरा में कार्य शुरु किया। इसके बाद और अगस्त 2019 से इतिहास पीजीटी (शिक्षक) के रुप में कार्य शुरु किया। आजकल वह में पीएमश्री राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सालेहपुर में इतिहास पीजीटी के रूप में कार्यरत हैं और साथ ही वह स्वतंत्र पत्रकारिता भी करते हैं। बकौल बलदेव राज उन्होंने आरंभ में कविता लिखना शुरु किया, तत्पश्चात कहानी लिखने लगे और लेखन की इस करवट ने उन्हें व्यंग्य की ओर भी मोड़ दिया और इसलिए व्यंग्य ने भी उनके मस्तिष्क में अपना स्थान बनाया। बलदेव की पहली रचना के रुप में उन्होंने साल 1991 में भारत माता को समर्पित एक कविता लिखी थी। 1993 में जब उनके बड़े भाई की मृत्यु हुई, तो भाई को समर्पित ‘दर्द’ शीर्षक नामक एक गीत लिखा। हालांकि वह आरंभिक अवस्था में अपने लेखन को गति नहीं दे पाए, लेकिन 1998 में ‘अपराध बोध’ नाम से एक छोटी सी कहानी लिखी, जो एक पंजाब केसरी के कहानी संस्करण में प्रकाशित हुई, तो उनके लेखन को पंख लगने लगे। इसके बाद उनके लेख, कहानियां, व्यंग्य, लघुकथाएं देश के प्रतिष्ठित समामचार पत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगे। लेकिन वह व्यक्तिगत रूप से एक बेरोजगार होते हुए कभी किसी पुस्तक को प्रकाशित करवाने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। इस बीच लेखन में शिथिलता भी आ गई। परन्तु साहित्यिक मित्रों ने ऐन मौके पर इस शिथिलता को तोड़ा, जिनके प्रयास से साल 2018 में हरियाणा साहित्य अकादमी के द्वारा मेरे प्रथम कहानी संग्रह ‘निमंत्रण पत्र’ के लिए अनुदान मिला। उनकी रचनाएं जहां सामाजिक पारिवारिक ताने बाने में उच्च आदर्श मूल्यों के ह्रास को उद्धृत करती हैं, वहीं इन मूल्यों की पुनर्स्थापना का प्रयास करती हैं। बलदेव राज का मानना है कि साहित्य का काम केवल समाज की खामियों को गिनाना नहीं, अपितु एक अच्छे समाज के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करना भी है। 
आधुनिक युग में बढ़ा साहित्य सृजन का पैमाना 
आधुनिक युग में साहित्य के हर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सृजन हो रहा है। परन्तु गुणवत्ता में कहीं न कहीं गिरावट महसूस की जा रही है। आज साहित्य नहीं, बल्कि साहित्यकार बोलता है। जो अपनी पुस्तक की जितनी अच्छी पब्लिसिटी कर लेता है, उसकी पुस्तक उतनी अधिक चर्चित हो जाती है। यहां तक कि कई साहित्यकार पब्लिसिटी के लिए ओछे तरीके भी अपनाते हैं। वे अपनी पुस्तकों में विवादित विषय डाल देते हैं और प्रेस में उसके लिए बयान भी दे देते हैं। जिससे पाठकों की उत्सुकता उस पुस्तक के विषय में बढ़ जाए। आज लिखे हुए साहित्य को पढ़ने का समय युवा पीढ़ी के पास नहीं है। मोबाइल के इस युग में युवा पीढ़ी की रुचि साहित्य के प्रति कम होती जा रही है। युवाओं को पुस्तकालयों के माध्यम से साहित्य के प्रति जागरूक किया जा सकता है। अच्छा साहित्य अच्छे समाज का निर्माण करता है। स्कूलों में विद्यार्थियों को साहित्य के प्रति जागरूक करके हम युवाओं की रुचि को साहित्य के प्रति जागृत कर सकते हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार बलदेव राज ने विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन किया है। अब तक उनकी प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से कहानी संग्रह ‘निमंत्रण-पत्र’, कविता संग्रह ‘अधूरी-कविता’, व्यंग्य संग्रह ‘कुछ उरे परे की’, लघु कविता संग्रह ‘संवेदना के स्वर’ प्रमुख हैं। जबकि 1998 से उनकी कविताएं, व्यंग्य, कहानियां और सामयिक लेख देश के विभिन्न समाचार-पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होते आ रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
विश्व हिंदी सचिवालय मॉरीशस और सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका की ओर से अंतर्राष्ट्रीय अटल काव्य लेखन प्रतियोगिता 2020 में प्रशस्ति पत्र, मुंबई प्रकाशित प्रवासी संदेश द्वारा आलेख लेखन के लिए प्रशस्ति पत्र, साहित्य सागर एवं सत्यम प्रकाशन की ओर से मुक्तक लहरी सम्मान, श्री राम नाट्य एवं लेखन मंडल नाहन की ओर से साहित्य रत्न सम्मान मिला है। हरियाणा प्रादेशिक लघुकविता मंच सिरसा की ओर से लघु कविता सेवी सम्मान 2023 तथा वर्चुअल प्लेनेट प्रोडक्शन प्रा लि. की ओर से लघुकविता सृजन सम्मान 2023 से सम्मानित किया गया। वहीं पिछले साल सिरमौर कला साहित्य संगम द्वारा डॉक्टर परमार पुरस्कार से नवाजते हुए सम्मानित किया गया है। 
29July-2024

सोमवार, 22 जुलाई 2024

चौपाल: समाज में लोक कला-संस्कृति की अलख जगाते खूबराम सैनी

हिंदी व हरियाणवी फिल्मों व रंगमंच पर एक अभिनेता के रुप में बनाई पहचान 
                    व्यक्तिगत परिचय 
नाम: खूबराम सैनी 
जन्मतिथि: 21 दिसंबर 1971 
जन्म स्थान: रेवाडी ( हरियाणा ) 
शिक्षा: स्नातक 
संप्रत्ति: अभिनय, रंगमच, 
संपर्क: 396/17, अंबेडकर चौक रेवाड़ी(हरियाणा), मोबा. 9034034101 
BY-- ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन के लिए सूबे के लोक कलाकार और संस्कृतिकर्मी फिल्मों और रंगमंच या अन्य सांस्कृतिक मंचों पर अपनी कला का हुनर दिखाते आ रहे हैं। लोक कलाकार एवं अभिनेता खूबराम सैनी ने सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई है, जो हिंदी और हरियाणवी फिल्मों तथा रंगमंच पर अपनी कला के हुनर के जरिए हरियाणवी संस्कृति की अलख जगाने में जुटे हुए हैं। हिंदी व हरियाणवी फिल्मों और नाटकों के मंचन में मुख्य किरदार में उन्होंने सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों को उजागर करते हुए सामाजिक विसंगतियों को उजागर करके सामाजिक चेतना जागृत करने का प्रयास किया है। फिल्मों व रंगमंच के कलाकार खूबराम सैनी ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने तीन दशक के अभिनय और रंगकर्मी के सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें कला के माध्यम से अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति समाज को नई दिशा देना संभव है। 
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हरियाणा के लोक कलाकार एवं अभिनेता खूबराम सैनी का जन्म 21 दिसंबर 1971 को रेवाडी जिले में एक साधारण परिवार में रघुनाथ सैनी और श्रीमती रामबाई देवी के घर में हुआ। परिवार में धार्मिक माहौल के बीच उनके बड़े भाई को भजनों में बेहद रुचि थी, जिन्हें भजन गाते हुए वह बचपन में एक कलाकार बनने का सपना देखते थे। इसलिए खूबराम कोई भी कार्यक्रम देखते थे तो वह ऐसे कार्यक्रमों में अभिनय करने की अभिलाषा उनके मन में बसती चली गई। हालांकि बचपन में रंगमंच का कोई अनुभव नहीं मिल सका, लेकिन जब वह कालेज में शिक्षा ग्रहरण करने पहुंचे तो साल 1989 मे वह बंजारा ग्रुप के सम्पर्क में आया और पहली बार हास्य नाटक ‘वाह भई धारे’ मे एक छोटा यानी पीए का किरदार निभाने का मौका मिला। तभी से वह इस ग्रुप से जुड़े हुए हैं और अनेक नाटकों में छोटे और बड़े अनेक किरदार के रुप में अभिनय करते आ रहे हैं। सर्वश्रेष्ठ हास्य नाटक का पुरस्कार हासिल कर चुके सांस्कृतिक बंजारा ग्रुप के बहु चर्चित हरियाणावी हास्य नाटक ‘जै सुख तै चहावै जीवणा तो भौदू बणकै रह’ मे मुख्य अभिनय की भूमिका निभाते आ रहे खूबराम सैनी अब तक 72 शो कर चुके हैं। इसके अलावा उन्हें अनेक हिन्दी व हरियाणावी फीचर फिल्मों और टीवी सीरियलों में भी अभिनय करने का मौका मिला है। उनके नाटकों का मुख्य फोकस सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर रहा है, ताकि समाज में सकारात्मक संदेश के जरिए लोक संस्कृति को जीवित रखने के लिए समाज में विचाराधारा का संचार किया जा सके। 
यहां से मिली मंजिल 
लोक कलाकार खूबराम सैनी का कहना है कि सामाजिक और देशभक्ति व अध्यात्मिक नाटकों में उन्हें जब पहली बार हरियाणावी हास्य नाटक ‘जै सुख तै चहावै जीवणा तो भौदू बणकै रह’ में मुख्य किरदार का मौका मिला तो उसे सराहा जाने लगा और उसके बाद उन्हें बचपन में संजोए गये सपने पूरे होते नजर आने लगे। इसके बाद गिरगिट, अन्त हिन अंत, कोर्ट मार्शल, बेपैदी का लौटा, स्वर्ग का पासपोर्ट, अग्रनरेश, मातृशक्ति, शहीदों ने लो जगाई जो, महाभोग तथा संक्रामक जैसे नाटकों में अभिनय करके मुख्य किरदार की भूमिका निभाई है। साल 1995 मे रामनगर नैनीताल मे ‘हास्य नाटक "जै सुख तै चहावै जीवणा तो भौदू बणकै रह’ को प्रथम पुरस्कार मिला है। खूबराम सैनी को उनके अभिनय के लिए अनेक मंचों से कई सम्मान भी मिल चुके हैं। यही नहीं सैनी ने सरकार के प्रायोजित प्रौढ़ शिक्षा, दहेज प्रथा उन्मूलन एवं साहित्यिक जैसे कार्यक्रमों में समाज को नई दिशा देने में अपनी कला का प्रदर्शन किया है। 
इन फिल्मों ने बनाया कलाकार 
हरियाणा की लोक कला और संस्कृति के दर्शन कराती दूसरी लडकी में उन्होंने मुख्य अभिनेता का किरदार निभाया है। अरुण जेटली द्वारा निर्देशित एक रोटी ओर तथा अमेरिका में होता होगा के अलावा सामाजिक और परिवारिक पृष्ठभूमि पर आधारित यशवंत चौहान की निर्देशित हरियाणवी फिल्म पीहर की चुंदडी और परिवारिक फिल्म कुनबा में भी अभिनय किया, जिसके फोकस में आज के युग में बढ़ते एकल परिवार की परंपरा के लिए बनी उस चिंता का परिदृश्य फिल्माया गया है, जिसमें बिगड़ते जा रहे सामाजिक ताना बाना के बीच आज के युवा अपने माता पिता का बुढ़ापे का सहारा बनने के बजाए धन और शौहरत पाने के लालच में उन्हें वृद्धाश्रम में भेजना अपनी शान समझते हैं। वहीं फिल्म अभिनेता और निर्देशक विजय भटोटिया की लघु फिल्म चंदा में भी उनकी भूमिका को सराहा गया है। वहीं उनकी टीवी सीरियल सबक फॉर डीडी में अभिनय के साथ सहायक निर्देशक की भूमिका भी निभाई है। इसके अलावा अशोक तलवार के निर्देशित टीवी सीरियल में वेद कान्या में भी किरदार करके अपनी कला को दिशा दी है। 
लोक संस्कृति को जीवंत करना जरुरी 
लोक कलाकार खूबराम सैनी का मानना है कि इस आधुनिक युग में लोक कला एवं संस्कृति को बचाने के लिए लोक कलाकारों के सामने चुनौतियां हैं, कयोंकि समाज में खासकर युवा पीढ़ी अपनी सांस्कृतिक और लोक कला से दूर होती नजर आ रही है। इसका सबसे बड़ा कारण मोबाइल और सोशल मीडिया है। इसका असर सीधा रंगमंच और थिएटर पर पड़ रहा है, जहां आज का युवा कलाकार भी रंगमंच या थिएटर में समय बर्बाद होने की दुहाई देकर अपना स्वार्थ देख रहा है और वह सीधे फिल्म और टीवी में जाना चाहता है। आज के युग में पाश्चत्य संस्कृति का भी हमारे समाज पर यह असर पड़ता है, जिसकी वजह युवा पीढ़ी सामाजिक रीति रिवाज़ो और संस्कृति को भूलती जा रही है। अपनी संस्कृति को बचाने के लिए रंगमंच और थिएटर को जीवित रखने के लिए रंगकर्मियों और कलाकारों को आगे आने की ज्यादा जरुरत है। 
  22July-2024

सोमवार, 15 जुलाई 2024

साक्षात्कार: लोक साहित्य सृजन से संस्कृति के उत्थान में जुटी सविता गर्ग ‘सावी’

लोक कला व साहित्य के क्षेत्र में लेखन व गायन से बनाई पहचान 
              व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सविता गर्ग ‘सावी’ 
जन्मतिथि: 3 अप्रैल 1983 
जन्म स्थान: गांव नगूरा, जींद(हरियाणा) 
शिक्षा: स्नातक डिग्री(जन प्रशासन) 
संप्रत्ति: समाज सेविका, गायिका, स्वतंत्रत लेखन
संपर्क:895,सेक्टर-7,पंचकूला(हरियाणा), मोबा.9501167168 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की संस्कृति और संस्कारों की विरासत को संजोने के मकसद से लेखक, साहित्यकार, लोक कलाकार, गायक अपनी कला के हुनर से समाजिक उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं। समाज सेवा में सक्रीय ऐसी ही लेखिका सविता गर्ग लोक साहित्य और कला जैसे क्षेत्र में हिंदी और हरियाणवी दोनों भाषाओं में लेखन और गायन के माध्यम से हरियाणवी सभ्यता और संस्कृति का संवर्धन करने में जुटी हुई हैं। भगवान कृष्ण को ईष्ट गुरु मानकर लोक साहित्य के क्षेत्र अपनी पहचान बनाने वाली लेखक, कवयित्री, गीतकार, गायिका सविता गर्ग ‘सावी’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें साहित्य और लोक कला ही समाजिक सभ्यता और संस्कार के प्रति सकारात्मक ऊर्जा के साथ समृद्ध संस्कृति को जीवंत करने में सक्षम है। 
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लोक साहित्य के क्षेत्र में हरियाणा की लोक गायिका, कवयित्री और गीतकार सविता गर्ग का जन्म 3 अप्रैल 1983 को जींद के नगूरा गांव में व्यवसायी राम रत्न गोयल के घर में हुआ। माता जी गृहणी है और घर का माहौल धार्मिक व संस्कारिक रहा। उनकी मां बहुत अच्छा गाती है, जिनके गुण हम चारों भाई बहनों में हैं। बचपन में मां को भजन गुनगुनाते और गाते हुए सुना और उनके साथ गाते गाते कई भजन याद हो गये। बकौल सविता गर्ग जब वह आठ साल की थी तो उनके मामा उन्हें अपने साथ अपने गांव जाजनवाला ले गए और मेरी पढ़ाई वहीं हुई। नाना के घर भी वैसा ही माहौल मिला। वह जिस स्कूल में पढ़ती थी, वहां के हेड मास्टर पंजाब सिंह ने उन्हें गाते सुना तो स्कूल के सांस्कृतिक कार्यक्रम में गाने के लिए प्रेरित किया। इससे बालमन बड़ी बड़ी आशाओं से भर गया, जिसके बाद बहुत सारे कार्यक्रमों में नृत्य और गायन दोनों किया। बचपन से ही खासकर कविताएं और कहानियां पढ़ने का शौंक था। कोई कागज का लिखा हुआ लिफाफा बहुत सावधानी से खोलकर वह कागज़ के लिफाफों पर लिखी कहानियां भी पढ़ती थी। जहां कहीं कोई कागज़ का टुकड़ा मिलता, बस उसे खोलती और पढ़ती। उस वक्त साहित्य के बारे में तो कुछ भी नहीं जानती थी। वह ग्यारहवीं कक्षा में थी, तो सौभाग्य से वृंदावन जाना हुआ और बस वहीं से जीवन में एक ऐसा मोड़ आया कि घर आने के बाद बार बार वृंदावन जाने का मन करता था, लेकिन संभव नहीं था। मन के इस द्वंद्व में कब कलम हाथ में आई और पता ही नहीं चला, जो उसने लिखा है वह एक बहुत अच्छा भजन बन गया और उसके लेखन के केंद्र में कृष्ण कन्हैया ही थे। स्कूल की मैगजीन और उसके बाद कॉलेज की मैगजीन में मेरी छोटी छोटी रचनाएं प्रकाशित हुई। उन्होंने इसके अलावा दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, नारी उत्पीड़न, और भी कई विषयों पर कविताएं लिखी। सौभाग्य से एक बार उनके कॉलेज में जींद के जाने माने साहित्यकार राजेंद्र मानव गोष्ठी के उद्देश्य से आए, जिनके सामने उन्हें भी कविता पढ़ने का अवसर मिला, जिसे खूब सराहा गया। इसके बाद उन्हें गोष्ठियों में मंच पर गाने का निमंत्रण मिले, जहां से उनकी साहित्यिक गतिविधियां सार्वजनिक हुई। साहित्य और लोककला के क्षेत्र में उतार चढ़ाव भी एक जीवन का हिस्सा होता है। कुरुक्षेत्र में यूथ फेस्टिवल में पहली बार प्रस्तुति के लिए उसकी हरियाणवी नृत्य और गायन की तैयारी थी, लेकिन पिता ने जाने से इंकार कर दिया। पाबंदी की वजह से पहली बार यूथ फेस्टिवल में प्रस्तुति देने का अवसर खोना पड़ था। मन बहुत उदास था, लेकिन सर के समझाने पर भी पापा नहीं माने, तो ऐसे में मां उनका सहारा बनी और इस आयोजन में उनकी दोनों प्रस्तुतियां शानदार रही। सूबे की मां बोली हरियाणवी में लेखन और गायन उनका फोकस कन्या भ्रूण हत्या, दहेज प्रथा, के अलावा देश प्रेम, भाईचारा, संस्कृति अध्यात्मिक पर रहा है। अभी तक उनके 17 हिंदी और हरियाणवी भजन रिलीज हो चुके हैं। पंचकूला में उनके व्यवसायी पति पवन गर्ग भी उनके लोक साहित्य क्षेत्र में सहयोग दे रहे हैं। जन प्रशासन में स्नातक डिग्री प्राप्त महिला साहित्यकार और लोक गायिका सविता गर्ग राष्ट्रीय कवि संगम पंचकूला इकाई की अध्यक्ष होने के साथ ही साहित्य 24 संस्था की हरियाणा राज्य की अध्यक्ष भी हैं। इसके अलावा अनेक देश व राज्यों की विभिन्न संस्थाओं से जुड़ी सविता सोशल मीडिया के अनुक साहित्यिक पटलों पर आजीवन सदस्य के रुप में सक्रीय भूमिका निभा रही हैं। खास बात यह भी है कि हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा एकल काव्य संग्रह के प्रकाशन हेतु पाण्डुलिपत चयनित व अनुदान स्वीकृति प्राप्त सविता गर्ग हिंदी साहित्य सेवा के साथ समाज सेवा में सक्रीय हैं। 
युवाओं को प्रेरित करना जरुरी 
लोक साहित्यकार और गायिका सविता मानती हैं कि इस आधुनिक युग में साहित्य, लोक कला और संगीत एक दायरे में सिमट कर रह गए हैं और खासतौर से युवा पीढ़ी की कम होती रुचि का असर सामाजिक और संस्कृति नकारात्मक प्रभाव डाल रहा है। इसके जिम्मेदार हम ही हैं, जो सुविधाएं देने के नाम पर बच्चों को साहित्य, संस्कृति, और लोक कला से दूर कर रहे हैं। वहीं आधुनिकता की दौड़ में हास्य और श्रृंगार के नाम पर अधिकतर द्विअर्थी कविताएं श्रोताओं को परोसने से समाज पर बहुत ही बुरा असर पड़ रहा है। जहां तक समाजिक संस्कार और संस्कृति के हित में सुधार का सवाल है उसके लिए स्कूल स्तर पर बच्चों को साहित्य और लोककला के प्रति प्रेरित करके उन्हें सांस्कारिक बनाने की जरुरत है, ताकि सामाजिक संस्कारों और संस्कृति की विरासत को आने वाली पीढ़िया संजोकर रख सकें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
लोक साहित्य के क्षेत्र में सविता की प्रकाशित पुस्तकों में एकल काव्य संग्रह ‘मेरी उड़ान’ और ‘मैं मीरा-सी’ तथा बाल काव्य संग्रह ‘प्यारी सोनपरी’ सुर्खियों में हैं। इसके अलावा नशामुक्ति जैसे सामाजिक विषय पर आधारित संयुक्त काव्य संकलन ‘ये जिंदगी है अनमोल’ तथा चुनिंदा कवित्रियों के संयुक्त काव्य संकलन ‘उमंग अभिव्यक्त’ में उनकी कविताएं प्रकाशित हुई हैं। वहीं हरियाणा राज्य की स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में प्रकाशित सांझा बाल काव्य संकलन ‘दुनिया गोल मटोल’ में उनकी कविताओं को प्रमुखता से स्थान मिला है। इसके अलावा उनके 17 भजन हिंदी और हरियाणवी दोनों भाषाओं में जारी हो चुके हैं। इसके अलावा विभिन्न समाचार पत्रों पत्रिकाओं में हिंदी व हरियाणवी कविताओं व गीतों का निरंतर प्रकाशन होता आ रहा है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हिंदी और हरियाणवी लोक साहित्य में अहम योगदान देती आ रही कवियत्रि और गीतकार सविता गर्ग सावी को अनेक पुरस्कार व सम्मानों से नवाजा जा चुका है। इनमें अंतर्राष्ट्रीय पद्म शौर्य सम्मान, भारत गौरव सम्मान, मैथिली शरण गुप्त सम्मान, हरियाणा भूषण सम्मान, नारी शक्ति सम्मान, कोकिला रत्न सम्मान, युवा शताब्दी साहित्यकार सम्मान, निर्भया अवार्ड, मधुशाला गौरव सम्मान, अमृत महोत्सव काव्य गौरव सम्मान, हरियाणा गौरव काव्य दर्पण सम्मान, अग्र गौरव सम्मान, वूमेन वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा वूमेन इंस्पिरेशनल अवार्ड के सम्मान प्रमुख हैं। उन्हें बिहार की संस्था विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है। कविता, गजल, लघुकथा, गीत, संगीत, भजन गायन जैसे साहित्यिक कार्यक्रमों के कुशल संचालन का अनुभव रखने वाली सविता गर्ग सावी राष्ट्रीय चैनल डीडी उर्दू, हिसार दूरदर्शन, चंडीगढ़ दूरदर्शन, डीडी पंजाबी और अन्य चैनलों पर समय समय पर काव्य पाठ भी करती आ रही हैं। 
15July-2024

सोमवार, 1 जुलाई 2024

साक्षात्कार: सामाजिक संस्कारों में साहित्य की अहम भूमिका: राजश्री

सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर किया साहित्य सृजन
 व्यक्तिगत परिचय 
नाम: राजश्री गौड़ 
जन्मतिथि: 24 नवम्बर, 1956 
जन्म स्थान: हथीन, जिला पलवल(हरियाणा) 
शिक्षा: बीए, बीएड़ (हिन्दू गर्ल्स कॉलेज सोनीपत) सम्प्रति: समाज सेवा, स्वतंत्र लेखन 
संपर्क:: सैक्टर-15, सोनीपत हरियाणा। मोबा. 8208627957 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में साहित्यकार और रचनाकार अपनी विभिन्न विधाओं में समाज को नई दिशा देने में ‘साहित्य समाज का दर्पण’ प्रसांगिकता को सुदृढ़ करने में अपना योगदान करते आ रहे हैं। गद्य व पद्य दोनों ही शैलियों में साहित्य सृजन करने वाले साहित्यकारों में हर किसी लेखक का ध्येय यही है कि उनकी रचनाएं समाजिक बुराईयों का उजागर करके समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करे। सामाजिक रिति रिवाज और संस्कृति के साथ संस्कारों को संजोने वाले ऐसे साहित्यकार और लेखकों में हरियाणा की महिला रचनाकार भी पीछे नहीं हैं। ऐसी ही महिला साहित्यकार राजश्री गौड़ ने भी सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर अपने रचना संसार को आगे बढ़ाने में जुटी है। समाज सेवा कार्य में सक्रीय रचनाकार और कवियत्रि राजश्री गौड़ ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिससे साहित्य के बिना समाजिक संरचना अधूरी है।
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रियाणा की महिला साहित्यकार राजश्री का जन्म हरियाणा के पलवल जिले के तहसील हथीन में 24नवम्बर, 1956 को एक शिक्षित और समृद्ध परिवार में पं. चिन्तामणि पाराशर व जय देवी के घर में हुआ। उनके बाल्यकाल के दौरान ही उनका संयुक्त परिवार सोनीपत (हरियाणा) में आकर बस गया। इसलिए उनकी पूरी शिक्षी दीक्षा सोनीपत में ही हुई। उनके पिता कुश्ती कबड्डी व वालीबॉल के खिलाड़ी थे, लेकिन दादा के देहावसान के कारण उन्हें पैतृक काम ज्वैलरी और जवाहरात का बिजनेस संभालना पड़ा। राजश्री की प्रारंभिक शिक्षा आर्या गर्ल्स स्कूल में हुई और उन्होंने हिन्दू गर्ल्स कॉलेज, सोनीपत से बी.ए. और बी एड़ किया। इसके बाद एम.ए. प्रीवियस (हिन्दी) में दाखिला लिया, लेकिन किन्हीं कारणों से पूरी नहीं हो सकी। अपने शिक्षित परिवार में उन्होंने दादी को गीता और रामायण तथा माँ को भजन गुनगुनाते घर के काम करते देखा, तो वहीं उनके पिता का साहित्य से बहुत लगाव था, जो हमेशा सोने से पहले शरतचंद्र, बिमल मित्र व मुंशी प्रेमचंद के उपन्यास पढ़ते थे। वहीं घर में पत्र पत्रिकाएं भी आती थी, जिनमें से पिताजी उन्हें कविताओं को कंठस्थ कराते थे और शनिवार को स्कूल में होने वाली बालसभाओं में वह कविताएं सुनाती थी। ऐसे में साहित्य के प्रति अभिरुचि होना स्वाभाविक ही था। मसलन बचपन में ही उन्होंने रचनाओं के रुप में लेखन कार्य शुरु कर दिया था। हालांकि वास्तविक रुप से उनका लेखन कार्य कालेज की शिक्षा के दौरान साल 1972 से शुरु हुआ और कालेज की मैगज़ीन में उनकी कविता छपी। जबकि से भोपाल से प्रकाशित एक अखबार में 20 जनवरी 1984 को गणतंत्र दिवस परिशिष्ट में उनकी छपी तो उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। लेकिन नवंबर 1978 में विवाह के बाद परिवार की जिम्मेदारी सर्वोपरि रही और लेखन कार्य नगण्य सा हो गया। बाद में बच्चों की शादी के बाद अकेलापन में उनके पति व बच्चों के प्रोत्साहित करने पर फिर लेखन कार्य ही शुरु नहीं किया, बल्कि कुछ सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ गई। साहित्यिक सफर में उतार चढ़ाव भी जीवन का अंग है और उनके सामने में भी इस दौरान कई ऐसे दिलचस्प व परेशानी भरे मोड़ आए, जिन्हें सोच कर वह आज भी चेहरे पर मुस्कान या कभी मन दुखी होता है। वह कभी कभार जब समाज में घटित किसी घटना से मन उद्वेलित हो जाता, तो अपने भावों को काव्य रूप में डायरी में कलम-बद्ध कर लेती थी। राजश्री ने बताया कि उनकी रचनाएं प्रेम, भाईचारा व सामाजिक सरोकार को लेकर होती, जिसमें सामाजिक बुराईयों को उजाकर कर समाज को नई दिशा देने पर कलम चलना लाजिमी था। 
साहित्य की महत्ता कायम 
हरियाणा की महिला साहित्यकार राजश्री गौड़ का आधुनिक युग में हिन्दी साहित्य के महत्त्व और उपयोगिता को लेकर कहना है कि आरंभ में जहां पद्यात्मक शैली में साहित्य की रचनाएँ की गई, जिसके बाद बदलते समय-काल के अनुसार काव्य, गद्य में कहानी, एकांकी, लेख, उपन्यास लघुकथा और राष्ट्रवादी रचनाओं में राजनीतिक प्रभाव नजर आने लगा है। इसके बावजूद आज भी स्वस्थ साहित्य का विशेष स्थान है और रहेगा। इसका कारण है कि साहित्य की महत्ता को नकारा नहीं जा सकता, क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण और पथ-प्रदर्शक भी है। बेशक आज साहित्यक पुस्तकें कम पढ़ी जाती हैं, लेकिन पाठक कम नहीं हैं। इस इंटनेट और सोशल मीडिया के युग में अपनी पसंद से पाठक ऑनलाइन साहित्य पढ़ते हैं, जो सामाजिक दृष्टि से सकरात्मक पहलु है। वहीं यह भी सच है कि सोशल मीडिया मोबाइल के कारण फेसबुक, इंट्राग्राम व कई अन्य साइट्स पर साहित्य के अलावा देश दुनिया की बहुत सारी चीजें, यूट्यूब पर बहुत कुछ मिल जाता है। इस आधुनिकीकरण की दौड़ में समाजिक विकास तो हो रहा है, लेकिन संस्कृति और संस्कारों में कमी होती नजर आ रही है। इसलिए आज की युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति स्कूल व कालेज स्तर पर भी प्रेरित करने की ज्यादा जरुरत है। वहीं कवि, शायरों और लेखकों को स्तरहीन रचनाओं की अपेक्षा ज्यादा अच्छे साहित्य सृजन करने की जरुरत है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला साहित्यकार राजश्री गौड़ की प्रकाशित 15 पुस्तकों में 12 साझा संग्रह और 3 एकल काव्य-संग्रह शामिल हैं। उनके काव्य संग्रह में 'धनक', ग़ज़ल-संग्रह 'तुमको भुलाया कहाँ है' और 'मत कहो ज़िन्दगी थमी है' शामिल है। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशन हेतू पांडुलिपि तैयार है। इसके अलावा उन्होंने कोरोना काल में ई काव्य संकलन भी लिखा, वहीं ई-लघुकथा संकलन में हरियाणा के प्रमुख लघुकथा कार भी शामिल है। इसके अलावा उनकी पुस्तकों की लेखन विधा में कविता, ग़ज़ल, लेख, व्यंग्य लेख, लघुकथा, कहानी, बाल कविताएं भी शामिल हैं। कविता-कोश, साहित्य-पीडिया, क़ागज-दिल.कॉम पर भी उनकी रचनाएं उपलब्ध हैं।
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य क्षेत्र में विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट योगदान देती आ रही साहित्यकार, कवियत्री एवं गजलकार राजश्री गौड़ को हिन्दी प्रचार प्रसार साहित्य अकादमी, भोपाल द्वारा तीन बार सम्मानित किया जा चुका है। प्रमुख रुप से उन्हें नारी गौरव सम्मान, श्रेष्ठ हिन्दी रचनाकार सम्मान, प्रेम-काव्य सम्मान, भारत के प्रतिभाशाली रचनाकार सम्मान, साहित्य-शिरोमणि सम्मान, सिद्धी साहित्य सम्मान, जैमिनी अकादमी सम्मान, भारत गौरव सम्मान के अलावा अंतरराष्ट्रीय ब्राह्मण मंच, जिया साहित्य मंच बैंगलोर, हिन्दी प्रचार प्रसार साहित्य अकादमी भोपाल, कागज-दिल साहित्य संस्था और जैमिनी साहित्य अकादमी पानीपत आदि साहित्यिक मंचों से पुरस्कार के साथ सम्मानित किया जा चुका है। वहीं अंतरराष्ट्रीय क्राईम रिफोर्म समिति द्वारा सम्मान भी उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। उनकी अन्य उपलब्धियों में दो ग्रेट वूमेन ऑफ द ईयर और एक लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड भी शामिल है। 
01July-2024