बुधवार, 14 सितंबर 2022

साक्षात्कार: भाषा साहित्य लेखन का माध्यम नहीं, बल्कि एक रचना है: ज्ञानप्रकाश विवेक

राष्ट्रीय हिंदी साहित्यकार के रूप में मिली पहचान व्यक्तिगत परिचय 
नाम: ज्ञान प्रकाश विवेक 
जन्म: 30 जनवरी 1949 
जन्म स्थान: बहादुरगढ़, हरियाणा 
शिक्षा: एम.ए.(हिन्दी) 
संप्रत्ति: ओरिएंटल इंश्योरेंश कंपनी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, अब पूर्णकालीक स्वतंत्र लेखन 
--ओ.पी. पाल 
 हिंदी साहित्य के क्षेत्र में ज्ञानप्रकाश विवेक ऐसे बहुयामी लेखक एवं साहित्यकार हैं, जिन्होंने कहानी, उपन्यास, आलोचना, कविता और ग़ज़ल जैसी विधाओं में हिंदी साहित्य जगत को समृद्ध किया। यही नहीं वे कागज और कलम के रिश्ते को बरकरार रखते हुए अपनी गद्य और पद्य में समान अधिकार से अपने रचना संसार को जिन नए आयामों के साथ आगे बढ़ा रहे हैं, उसमें वे आत्मीय सरोकार और इंसानियत के होते क्षरण को पुनर्जीवित कर समाज को नई दिशा देने का बेहतरीन और प्रशंसनीय रचनात्मक लेखन का प्राय बन रहे हैं। उन्होंने उपन्यासकार और कहानीकार के रूप में प्रसिद्धि हासिल करने के साथ एक गजलकार के रूप में इतनी ज्यादा लोकप्रियता हासिल की हैं, कि हिंदी गजलों के क्षेत्र में उनका नाम दुष्यंत कुमार के साथ लिया जाता है। आधुनिक युग के लोकप्रिय व बहुचर्चित रचनाकारों में शुमार प्रख्यात गजलकार एवं कथाकार ज्ञानप्रकाश विवेक ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया, जिनकी वजह से उन्हें एक राष्ट्रीय हिंदी साहित्यकार के रूप में पहचान मिली है। 
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हरियाणा में झज्जर जिले के बहादुरगढ़ में 30 जनवरी 1949 को जन्मे वरिष्ठ कहानीकार, उपन्यासकार, गजलकार और कवि ज्ञानप्रकाश विवेक उन साहित्यकारों में शामिल हैं, जिनके पास हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं के संस्कार हैं। उनके पिता प्रीतम लाल एक शायर थे, जिनकी प्रेरणा से उन्हें साहित्य में रुचि पैदा हुई और वे गजले लिखने लगे। पहली बार वर्ष 1971 में उन्होंने गजल प्रतियोगिता में द्वितीय पुरस्कार मिला तो उनका साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के साथ गजल के अलावा लघुकथाएं, उपन्यास, कहानियां भी लिखना शुरू कर दिया। उनकी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होने लगी, तो आत्म विश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। हरेक लेखक की भांति समाज में सामाजिक विडंबनाएं खत्म करके इंसानियत को बचाने के मकसद से ज्ञानप्रकाश विवेक भी ग़ज़ल या हिन्दी ग़ज़ल को नया आयाम देते हुए अपनी रचनाओं को नवीन सामाजिक-साहित्यिक चेतनाओं से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। अपने बेहद सहज, सरल और संवेदनशील लेखक के रूप में वे कहने में कम लिखने में ज्यादा यकीन रखते हैं। हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में अपने रचनात्मक अवदान और अपने समालोचक व्यक्तित्व के धनी ज्ञानप्रकाश विवेक के कहन, शिल्प, कथ्य का एक ऐसा ढंग है कि जो यह भी साबित करता है कि भाषा का वैभव बिना शब्दकोष के भी हासिल किया जा सकता है। साहित्य जगत में उनका हिंदी को सर्वोपरि रखने का ही नतीजा है कि हिंदी गजल ने अपनी कथ्यात्मकता और विशिष्ट अभिव्यंजना से पिछले दशकों में जो पहचान बनाई है, उसमें हिंदी गजलकार के रूप में चर्चित ज्ञानप्रकाश विवेक के अहम योगदान है। खासबात ये भी है कि उनकी रचनाओं के लफ़्ज़ों की दुनिया शोर से उकताए हुए मन के लिए किसी शरण-स्थली से कम नहीं है। साहित्य के क्षेत्र में विभिन्न विधाओं पर पकड़ रखने के बावजूद एक गजलकार के रूप में चर्चित होने पर उनका कहना है कि गजल पर उन्होंने बड़ा काम किया है। हिंदी गजल के लिए भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने उन्हें वर्ष 2014-15 में सीनियर फैलोशिप भी प्रदान की। सुप्रसिद्ध साहित्यकार ज्ञानप्रकाश का मानना है कि लेखन में भाषा केवल साहित्य लिखने का माध्यम नहीं है, बल्कि वह अपने आप में एक रचना है। उसी प्रकार लिखना कोई मंजिल नहीं, बल्कि एक रास्ता है, जो ऊबड़-खाबड़ होने से अड़चने भी पेश करता है। हरियाणा के लेखकों में प्रसिद्धि हासिल करने की होड़ को लेकर उन्होंने कहा कि प्रसिद्धि हासिल करने से पहले साहित्य को बचाए रखने के लिए सिद्धि चाहिए। किताबे पढ़ना लिखना बहुत बड़ी बात है, लेकिन उसकी सार्थकता को कायम रखने की चुनौती भी है। उन्होंने भूमंडलीकरण की व्याख्या करते हुए कहा कि आज समाज आत्मनिर्वासित है और अकेलापन एक ऐसा रोग है, जिसने कोरोनाकाल के दौरान सोशल डिस्टेंस जैसा घातक शब्द का प्रभाव भी समाज पड़ा। जहां तक आधुनिक युग में साहित्य पर भी प्रभाव का है तो हर दौर में अभिरुचि बदलती है। लेकिन समाज और संबन्धों के बिखराव चिंतनीय है। कहने का तात्पर्य है कि आज समाज तकनीकी की गिरफ्त में है और अधिक से अधिक सुविधावादी होने लगा है। ऐसे में इंसान में निठ्ठलापन आना स्वाभाविक है और बाजारी तंत्र समाज को छल रहा है। उन्होंने तर्क दिया कि हर दिन सूरज का निकला सबसे बड़ी घटना है, जहां से दिनचर्चा यानी जीवन की रोशनी शुरू होती है। हालांकि कुछ घटनाएं अंधरे में भी होती है। इस वैज्ञानिक युग में साहित्य के प्रति युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए लेखकों को गंभीरता के साथ रचानाओं का लेखन यह सोचकर करना है कि जो मैं लिख रहा हूं, वह मेरा नहीं, बल्कि हमारा है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के साहित्यकार ज्ञानप्रकाश विवेक की हाल ही में ‘विस्थापित’ नामक उपन्यास एक ऐसी पहली किताब सामने आई है, जो विस्थापन की पीड़ा के किसी महाकाव्य से कम नहीं है। इसके अलावा उनके गली नंबर तेरह, अस्तितत्व तथा दिल्ली दरवाज़ा जैसे उपन्यास भी सुर्खियों में हैं। उनके गजल संग्रह में ‘धूप के हस्ताक्षर, आँखों में आसमान, इस मुश्किल वक़्त में’ गुप्तगू अवाम से है और घाट हजारों इस दरिया के चर्चाओं में हैं। वहीं आलोचना में हिन्दी ग़ज़ल की विकास यात्रा, हिन्दी ग़ज़ल: दुष्यंत के बाद और ‘हिन्दी ग़ज़ल की नई चेतना बहुचर्चित कृतियों का हिस्सा हैं। उनके कहानी संग्रह में अलग अलग दिशाएँ, शहर गवाह है, जोसफ़ चला गया, इक्कीस कहानियाँ, शिकारगाह, सेवानगर कहाँ है, बदली हुई दुनिया, मुसाफ़िरखाना, उसकी ज़मीन, पिताजी चुप रहते हैं जैसी पुस्तक हैं, तो वहीं कविता संग्रह दीवार से झाँकती रोशनी और प्यास की ख़ुश्बू उनकी प्रमुख कृतियों में शामिल है। जबकि उनके उपन्यास ‘व्हील चेयर’, कहानी संग्रह ‘छोटी सी दुनिया’ और गजल आलोचना न्याय विमर्श प्रकाशाधीन हैं। 
पुरस्कार सम्मान 
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में ज्ञानप्रकाश विवेक एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्हें साहित्यिक योगदान के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी से तीन बार उनकी पुस्तकों पर कृति सम्मान दे चुका है। हरियाणा साहित्य अकादमी ने उन्हें साल 2021 के आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजा है। इससे पहले साल 2010 में उन्हें बाबू बालमुकंद गुप्त सम्मान से नवाजा है। इससे पहले उन्हें राजस्थान पत्रिका द्वारा ‘सेवानगर कहां है’ कहानी पर सर्वश्रेष्ठ कहानी सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है। वैसे तो विभिन्न मंचों और साहित्यक संस्थाएं भी उन्हें सम्मानित करती आ रही है। संपादन के साथ उनकी कहानियों पर उनके फिल्मांकन तथा नाट्य रुपांतरण का राष्ट्रीय चैनल दूरर्शन और रेडियो पर प्रसारण भी उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है।
पता: 1875, सेक्टर-6, बहादुरगढ़ हरियाणा, मो. 9813491654
ई मेल-aspl_rishi@hotmail.com 
12Sep-2022

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