सोमवार, 9 सितंबर 2024

साक्षात्कार: साहित्य, संगीत एवं कला के फनकार विपिन सुनेजा ‘शायक़’

इंटरनेट युग में साहित्य के क्षेत्र में बढ़ी चुनौतियांं                            व्यक्तिगत परिचय 
नाम: विपिन सुनेजा 'शायक़’ 
जन्मतिथि: 6 दिसम्बर 1954 
 जन्म स्थान: रेवाड़ी (हरियाणा) 
शिक्षा: एम.ए., एम.एड. 
संप्रत्ति: सेवानिवृत प्राध्यापक (अंग्रेज़ी), गजलकार, कवि, निर्देशक 
संपर्क: 24, सिविल लाइन्स, कृष्णा नगर,
रेवाड़ी(हरियाणा)। मोबा. :09991110222 
BY-- ओ.पी. पाल 
रियाणा धरती पर साहित्यिक और लोक कला संस्कृति के संवर्धन करने वाले लेखकों, साहित्यकारों, कवियों, गजलकारों, कलाकारों, गीतकारों, रंगकर्मियों जैसी बहुआयामी शख्सियतों का गढ़ बनता जा रहा है, जिन्होंने राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है। ऐसे ही बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी वरिष्ठ रचनाकार विपिन सुनेजा ‘शायक़’ भी शुमार हैं। सुनेजा ने अपने जीवन को करीब आधी सदी से मंच पर रहकर साहित्य के साथ ही संगीत एवं रंगमंच की अनूठी साधना और अपनी मौलिक प्रयोगधर्मिता से निरंतर नये आयाम रचे हैं। एक शिक्षक के साथ कवि, गजलकार, लोक कला एवं संगीत कला के जैसी विभिन्न विधाओं के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में वरिष्ठ रचनाकार विपिन सुनेजा 'शायक़’ ने कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनका भारतीय संस्कृति को जीवंत रखने और अच्छे काव्य को संगीत में पिरोकर उसे लोकप्रिय बनाने का ध्येय स्पष्ट नजर आता है। 
सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ साहित्यकार एवं लोक कलाकर विपिन सुनेजा का जन्म 6 दिसम्बर 1954 को हरियाणा के रेवाडी  में रामनाथ सुनेजा तथा सावित्री सुनेजा के घर में हुआ। उनकी माता सावित्री सुनेजा हिंदी की शिक्षका थी, इसलिए उन्हें भी बचपन से ही पत्रिकाओं और रेडियों से साहित्यिक रचनाओं पढ़ने और सुनने का शौंक था। उनकी माता चूंकि एक कलाकार और रंगकर्मी भगवानदान भूटानी की बेटी थी, तो वे बेटे विपिन को भी एक कलाकार के रुप में देखना चाहती थी। मसलन साहित्य, कला एवं संस्कृति के संस्कार उन्हें विरासत में मिले। साहित्य, संगीत एवं रंगकर्म तीनों क्षेत्रों में विपिन सुनेजा बचपन से ही सक्रिय रहे। बकौल सुनेजा उन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान ही कई नाटकों में काम करके अपनी गायन व अभिनय की प्रतिभा का अहसास कराया। विपिन सुनेजा ने माता के प्रोत्साहन और प्रेरणा से महज चार साल की आयु में जब एक विशाल मंच पर कविता पढ़ी। हिंदू स्कूल में छात्र काल में ही उन्हें शिक्षक एवं प्रख्यात उर्दू शायर नंदलाल नैरंग ‘सरहदी’ के मार्गदर्शन में साहित्य की बारीकियां समझने को मिलीं तथा उनसे प्रेरित होकर उनकी गजले गाने और लिखना शुरु कर दिया। लेकिन उनका कहना था कि पहले सीखो और फिर लिखों। इसके बाद वह बड़े बड़े शायरों की गजले गाते रहे और उन्होंने साहित्यिक विधाओं के नियम सीखे और लिखने का जमकर अभ्यास किया। साल 1980 में पहली बार रेडियो से उनकी रचनाएं प्रसारित हुई, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। सुनेजा का पहला ग़ज़ल संग्रह 2001 में प्रकाशित हुआ। यही नहीं रेडियो व टीवी प्रसारण और मंचों पर कवि नीरज, उदयभानु हंस, बालस्वरूप राही, कुंवर बेचैन, अल्हड़ बीकानेरी, राणा गन्नौरी, कालिया हमदम जैसे नामवर शायरों के साथ मंच साझा करके उनका आशीर्वाद हासिल किया। हालांकि इस साहित्यिक सफर में स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियों ने बार बार रुकावटे डाली। उनके संस्मरण पर उनकी नव प्रकाशित पुस्तक 'ठहरे हुए पल 'में भी विद्यमान हैं। उनकी रचनाओं में भाषा और सुरों की शुद्धता बनाये रखने के लिए अपनी त्रुटियों को देखना और दूर करने का भी प्रयास रहा है। मसलन मानव मन का विश्लेषण विपिन सुनेजा की रचनाओं का मुख्य विषय रहा है। शिक्षा विभाग में बतौर अंग्रेजी प्राध्यापक होते हुए करीब दो दशकों तक उन्होंने जिला स्तरीय स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों के सांस्कृतिक पक्ष का निर्देशन किया है। शिक्षा विभाग से सेवानिवृति के बाद भी वे विभिन्न संस्थाओं एवं मंचों के माध्यम से साहित्य, संगीत एवं रंगमंच की निष्काम सेवा में जुटे हैं। श्रीजी एंटरटेनमेंट नामक यू-ट्यूब चैनल के जरिए उनके संगीत एवं स्वर में सजी ग़ज़लों एवं अन्य रचनाओं की बहुमुखी प्रतिभा का लाभ युवा पीढ़ी उठा रही हैं। सुनेजा के कृतित्व पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से तीन बार शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं और एक दर्जन से ज्यादा कृतियों के लेखक के अलावा उन्होंने राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में साहित्यिक रचनाओं एवं शोध आलेखों के माध्यम से साहित्य साधना की है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर सुनेजा की प्रस्तुतियों का निरंतर प्रसारण के साथ उनके कृतियों पर इंग्लैंड के रेडियो चैनल से भी प्रसारण हुआ है। सुनेजा कला परिषद के मान्यता सदस्य भी रहे हैं। 
साहित्य के क्षेत्र बढ़ी चुनौतियां 
सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार विपिन सुनेजा का आधुनिक युग में साहित्य और लोक कलाओं की चुनौतियों को लेकर कहना है कि आज भी साहित्य खूब लिखा जा रहा है और प्रकाशित भी हो रहा है, लेकिन पाठकों में कमी के कारण वह पढ़ा नहीं जा रहा है, जिसका कारण इंटरनेट युग में सोशल मीडिया, टीवी और स्मार्टफोन ने लोगों की रुचि बिगाड़ दी है। उनका कहना है कि सीबीएससी के पाठ्यक्रम में हिन्दी की अनिवार्यता समाप्त होना, बड़ी-बड़ी साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद होना, समाचार पत्रों में साहित्य स्तम्भों का संकुचित होना, रेडियो व टीवी से साहित्यिक कार्यक्रमों का नदारद होने का अर्थ स्पष्ट समझा जा सकता है कि देश में साहित्यकारों को उचित सम्मान न मिलना भी है। मसलन आज युवा पीढ़ियों ओं को रोज़गार और मनोरंजन चाहिए, जो साहित्य में उन्हें नहीं मिला। साहित्य व लोक कलाओं से युवा पीढ़ियों के दूर होने से वह अपनी संस्कृति से भी दूर होते जा रही है। इसलिए उन्हें सांस्कारिक बनाने और सामाजिक मर्यादाओं में ढालने के लिए स्तरीय साहित्य तक उनकी पहुंच बनाना आवश्यक है। इसके लिए शिक्षण संस्थाओं में साहित्यिक आयोजन और साहित्यिक रचनाओं को संगीतबद्ध करके वीडिओ की शक्ल में पेश किया जाए, तो युवाओं को सामाजिक और अपनी संस्कृति से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाना संभव है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
गजलों में विशेषज्ञ के रुप में लोकप्रिय विपिन सुनेजा की साहित्य के क्षेत्र में अब तक प्रकाशित पन्द्रह पुस्तकों में प्रमुख रुप से संस्मरण 'ठहरे हुए पल’, गजल संग्रह पीड़ा का स्वयंवर, बाल कविता संग्रह नन्ही मशालें, नन्हे पंख, नाटक संग्रह पर्दा उठने दो, विवेचनात्मक ग्रन्थ सरल सुरीले काव्यसूत्र, मालकौंस विशेष रुप से सुर्खियों में हैं। इसके अलावा उन्होंने छह पुस्तकों का संपादन भी किया। सुनेजा का संगीत के क्षेत्र में अब तक ग़ज़लों, भजनों और बालगीतों के ग्यारह संगीत एल्बम, एक हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'दूसरी लड़की ‘तथा अनेक नाटकों में गीत-संगीत तथा अनेक नाटकों में अभिनय और निर्दॅशन भी उनकी उपलब्धियां हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं गजलकार विपिन सुनेजा को हंस कविता पुरस्कार के अलावा प्रमुख रुप से बाबू बालमुकुंद पुरस्कार, हिन्दी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार, श्रेष्ठ कवि सम्मान, राष्ट्र किंकर संस्कृति सम्मान, छन्द शिरोमणि, चेतन काव्य पुरस्कार, अब्र सीमाबी पुरस्कार, प्रज्ञा शिक्षक सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान, सुरुचि सम्मान, साहित्य परिषद सम्मान से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें देशभर में राजकीय एवं निजी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंचों से अनेक पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। 
  09Sep-2024

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