सोमवार, 30 सितंबर 2024

साक्षात्कार: विश्वभर में बसे भारतीयों को अपनी संस्कृति से जुड़ा रहना चाहिए: इंदु नांदल

साहित्य जगत में भारत के लिए विश्व रिकार्ड बनकार बनाई अंतर्राष्ट्रीय पहचान 
       व्यक्तिगत परिचय
नाम: इन्दु नांदल 
जन्मतिथि: 15 अगस्त 1973 
जन्म स्थान: रोहतक (हरियाणा) 
शिक्षा: स्नातकोत्तर(सामाजिक विज्ञान), स्पोर्ट्रस डिप्लोमा 
संप्रत्ति: शिक्षिका, लेखक, कवियत्रि 
संपर्क: जकार्ता(इंडोनेशिया) मोबा.- +6281519431695 
By-ओ.पी. पाल 
रियाणा के साहित्यकारों और लेखकों के साथ लोक कलाकारों ने अपनी अपनी विधाओं में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहचान बनाई है। ऐसी ही हरियाणा की बेटी इंदु नांदल ने साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी से काव्य जगत में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी पहचान ही नहीं बनाई, बल्कि वे अपनी लेखनी से साहित्य के साथ हरियाणवी संस्कृति को नया आयाम देते हुए पिछले तीन दशक से ज्यादा समय से विदेश में रहते हुए भी हिंदुस्तान की माटी से ऐसे जुड़ी हुई है, कि उन्होंने रामायण, देशभक्ति, भारतीय त्यौहारों और चन्द्रयान-3 पर कविता संग्रह लिखकर विश्व रिकार्ड बनाकर इतिहास रच ड़ाला है। विदेश में रहते हुए भी अपनी मातृभूमि और संस्कृति जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय कवयित्री इंदु नांदल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में यहां तक कहा कि विश्वभर में बसे भारतीयों को अपनी संस्कृति की मूल जड़ो से जुड़ा रहना चाहिए, क्योंकि हिंदी भाषा और संस्कृति ही भारत की पहचान है। 
---- 
दुनियाभर में भारतीय संस्कृति की अलख जगाने वाली साहित्यकार एवं कवियत्रि इंदु नांदल का जन्म 15 अगस्त 1973 को रोहतक में उम्मेद सिंह व विद्या देवी के घर में हुआ। उनके परिवार में कोई भी साहित्यिक माहौल नहीं था। उन्हें आस पास की चीजे प्रेरित करती थी, तो उन्हें कविता व दोहे के रुप में लिखने में अभिरुचि होने लगी। यही कारण रहा कि उन्होंने हिंदी व अंग्रेजी भाषा में सामाजिक शास्त्र में शिक्षा ग्रहण की। यहीं से उनका रुझान साहित्य के क्षेत्र में बचपन यानी स्कूली दौर से ही रहा है, जहां शिक्षकों ने भी उसे प्रोत्साहित किया। इंदु नांदल ने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से स्नातकोत्तर की शिक्षा ग्रहण की। इसके अलावा उन्होंने मोतीलाल नेहरु स्कूल ऑफ राई(सोनीपत) से स्पोर्ट्स कोर्स किया। उन्होंने इंटरमीडिए तक की शिक्षा चंडीगढ़ में हासिल की। जब वह यहां दसवीं कक्षा में थी तो उनका बास्केटबाल के लिए साईं में चयन हो गया था। इंदु बास्केटबाल की नेशनल प्लेयर रह चुकी है। वहीं वे एक चित्रकार भी हैं। इंदु नांदल हिंदी व अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ कई विदेशी भाषाओं का ज्ञान भी ज्ञान है, जो वर्तमान में जकार्ता इंडोनेशिया में रहती है। बैकौल इंदु नांदल उन्होंने साल 1996 में भारत छोड़ दिया था और वह साल 2008 से 2020 तक इंडोनेशिया के रामा इंटरनेशनल स्कूल पूर्बा वार्ता में एक शिक्षिका के रुप में कार्य कर चुकी है, जहां उन्होंने इस दौरान पांच साल तक बच्चों को हिंदी पढ़ाई है। उन्होंने कहा कि इंडोनेशिया में हिंदी दिवस मनाया जाता है, जहां उन्हें कई बार काव्य पाठ करने का मौका मिला है। इसके बाद वह कुछ दिन जर्मनी में रही, जहां उन्होंने कोरोना काल में रामायण पर कविता लिखकर पहला विश्व रिकार्ड भी बनाया। उसके बाद फिर वे इंडोनेशिया आ गई, जहां उनके पति संजीव नांदल टेक्टाइल इंजीनियर हैं। जबकि उनका बेटा साहिल कनाडा बुक डिजाइनर है, जिनका हर कदम पर उनके काव्य लेखन में प्रोत्साहन और सहयोग रहता है। इंदु नांदल विदेश में रहते हुए भी उन्हें भारत और भारतीय संस्कृति पर लिखना वह अपनी जिम्मेदारी मानती हैं। उन्होंने बताया कि भारत के लिए वह ऐसे ही और विश्व रिकॉर्ड बनाकर साहित्य व संस्कृति का संवर्धन करती रहेंगी। देश भक्ति की कविताओं पर विश्व रिकॉर्ड बनाकर उन्हें ऐसा प्रतीत हुआ कि जैसे तिरंगा सिर्फ़ लाल क़िले पर नहीं, बल्कि पूरे विश्व में फहरा दिया हो। इंदु नांदल पांच साल तक आल इंडिया रेडियो पर युवा संसार प्रोग्राम में स्वरचित कविताओं का पाठ भी कर चुकी हैं। इंडोनेशिया भारतीय दूतावास में आठ वर्ष स्कूल के बच्चों के साथ स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति गीतों को भी प्रस्तुत करती रही हैं। उन्होंने जर्मनी, इंडोनेशिया, कनाडा और भारत में रहकर समाज, संस्कृति और प्रकृति के विभिन्न विषयों पर आधारित कविताओं की रचना की है। उनकी रचनाएं देश-विदेश की राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है। पचास से अधिक लेख तो उनके इंडोनेशिया के अखबारों में प्रकाशित हो चुके हैं। वह महिला काव्य मंच जर्मनी इकाई की अध्यक्ष, जर्मनी अशाफनवरंग इकाई केमहिला काव्य मंच की अध्यक्ष भी हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कवियत्रि इंदु नांदल ने अपनी कविताओं का काव्य संग्रह ‘काव्य सागर’ लिखा है। इसके अलावा उन्होंने ‘वंदे मातरम्’ शीर्षक से ‘रामायण’ पर 665 पंक्तियों, देशभक्ति पर 72 रचनाकारों की 154 कविताओं, भारतीय त्यौहारों पर 132 कविताओं तथा चंद्रयान-3 पर 116 कविताओं का काव्य संग्रह लिखे हैं, जो विश्व रिकार्ड में दर्ज हुए हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
इंदु के विश्व रिकार्ड बने चार काव्य संग्रह के लिए गोल्डन उन्हें विश्व रिकार्ड में दर्ज चार काव्य संग्रहों के लिए उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड लंदन से सर्टिफिकेट ऑफ कमिटमेंट से सम्मानित किया गया। हिंदी दिवस पर उन्हें जर्मनी दूतावास ने कांस्युलेंट ऑफ जनरल मुनिक जर्मनी दूतावास ने पुरस्कार देकर सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें जर्मनी में भारतीय दूतावास् ने निबंध के लिए सम्मानित किया है। इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में इंटरनेशन इंडियन नेशनल डांस कंपीटिशन में उन्हें द्वितीय पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा चुका है। 
युवाओं को प्रेरित करना आवश्यक 
कवियत्रि इंदु नांदल का कहना है कि समाज, संस्कृति और शिक्षा का समावेश से परिपूर्ण साहित्य में सकारात्मक विचारधारा भरी होती है। लेकिन यह चिंता का विषय है कि आज के आधुनिक युग में युवा पीढ़ी साहित्य और संस्कृति से दूर भाग रही है। ऐसे में लेखकों और साहित्यकारों की नैतिक जिम्मेदारी है कि वे देशभक्ति, संस्कृति, आध्यात्मिक, प्रकृति और भारतीय सभ्यता जैसे विषयों पर ऐसी सकारात्मक रचनाओं का लेखन करें, ताकि युवा पीढ़ी को देशभक्ति और अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरित किया जा सके। 
23Sep-2024

सोमवार, 16 सितंबर 2024

चौपाल: संस्कृति के संवर्धन में समाज को समर्पित कला अहम: अशोक मेहता

थिएटर से बॉलीवुड तक अभिनय के क्षेत्र में बनाई बड़ी पहचान 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: अशोक मेहता ऊर्फ बीर सिंह 
जन्मतिथि: 30 नवंबर 1975 
जन्म स्थान: मूल गांव खानक, जिला भिवानी 
शिक्षा: इंटरमिडिएट संप्रत्ति: अभिनय, रंगकर्मी, लेखक संपर्क: गांधीनगर कृष्णा कॉलोनी भिवानी(हरियाणा), मोबा.9812342041 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणवी संस्कृति के संवर्धन की दिशा में सूबे के लेखकों, कलाकारों, गायकों एवं साहित्यकारों ने अपनी कलाओं के प्रदर्शन से समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया। यही नहीं ऐसी शख्सियतों ने हरियाणवी संस्कृती को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान दी है। हरियाणवी फिल्मों के साथ अभिनय के क्षेत्र में कलाकारों ने वॉलीवुड तक अपनी कला का हुनर दिखाते हुए अपनी संस्कृति को सर्वोपरि रखने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी। ऐसे ही कलाकारों में अशोक मेहता और बीर सिंह ने हरियाणवी, भोजपुरी और हिंदी फिल्मों में अपने लेखन और अभिनय के हुनर से लोकप्रियता हासिल की है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में वॉलीवुड अभिनेता अशोक मेहता उर्फ बीर सिंह ने अपने थिएटर से लेकर वॉलीवुड़ तक के सफर को लेकर कहा कि समाज को समर्पित कोई भी कला संस्कृति और संस्कारों के संवर्धन में अहम भूमिका निभाती है। 
रियाणा के लोक कलाकार अशोक मेहता का जन्म 30 नवंबर 1975 को भिवानी जिले के गांव खानक में मध्यमवर्गीय परिवार के छिनकू राम मेहता व शकुंतला देवी के घर में हुआ। परिवार का गांव में ही खेती-बाड़ी और स्टोन क्रेशर माइंस गांव खानक में काम है। इसमें उनके पिता व उसके भाई अभी भी काम करते हैं, लेकिन अशोक ने स्टोन क्रेशर का काम छोड़ कलाकार को अपना करियर बना रखा है। उन्होंने बताया कि 30 वर्ष के खानक माइंस के काम के अनुभव से फिल्मों में बहुत फायदा हुआ, क्योंकि वह साइकिल से लेकर ट्रक तक सभी वाहन चलाने लगे थे। वहीं खनन में काम करने वाले विभिन्न राज्यों के लोगों के कारण राजस्थानी, भोजपुरी, यूपी, बिहार की भाषा का भी ज्ञान हो गया। अशोक मेहता जब कक्षा चार व पांच में थे तो उन्हें मंच पर नृत्य और अभिनय करने के अलावा कॉमिक्स पढ़ने शौंक था। जबकि उनके परिवार में किसी प्रकार का साहित्यिक या सांस्कृतिक माहौल नहीं रहा है। इसके बावजूद उन्हें लोक कला और सांस्कृतिक क्षेत्र में अभिरुचि रही है। फिल्म इंडस्ट्री में बीर सिंह के नाम से पहचाने जा रहे अशोक मेहता ने बताया कि साल 2017 में उनके एक दोस्त ने उसे किस्तामें पर एक होंडा एक्टिवा दिलवाई, तो उसकी सर्विस के लिए फोन आने लगे। इसलिए वह गूगल पर सर्च करता तो एक्टिंग सर्विस मुंबई ज्वाइन साइट खुल जाती और उस फिल्म की वीडियो आने लगती है। इसके बाद वह दिल्ली में थिएटर करने लगे। वह दिल्ली थिएटर करने गये, वहां की बहुत मोटी फीस होने से उनके सामने बड़ी दिक्कत थी। इसके बाद वह मुंबई चले गये और नालासोपरा में उन्होंने स्क्रिप्ट लिखना सीखा और आठ माह बाद महसूस किया कि लेखन का काम आसान नहीं है और इससे इतनी कमाई भी नहीं होगी। फिर से एक दिन वह गांव में बैठे थे तो दिल्ली मून लाइट फिल्म और थिएटर फाउंडर महेश भट्ट के ऑफिस से फोन आया कि उनका चयन हो गया है। इस पर वह दिल्ली की कैलाश कालोनी स्थित अरुण जेटली के घर के सामने थिएटर में मिला और डबल बैच में सुबह और शाम थिएटर करना शुरू कर दिया। यहां उन्होंने अभिनय की बारीकियों को सीखा और इमोशन,फिजिकल कैरक्टराइजेशन, एटीट्यूड, बॉडी लैंग्वेज, सिचुएशन, सराउंडिंग जैसी चीजों को समझा। उन्होंने पहली बार साल 2019 में 60 के पार जीवन के आधार पर बॉलीवुड अभिनेता यशपाल शर्मा कहने से लेखन का काम किया, जिसमें उन्हें मोरनी में फिल्म निर्देशक उषा श र्मा ने तृतीय अवार्ड दिया। मोरनी में उषा शर्मा द्वारा और इस वर्ष बॉलीवुड की फिल्म हरियाणा जो सिनेमा की फिल्म थी और जोगी कास्टिंग कंपनी के कास्टिंग डायरेक्टर हरिओम कौशिक ने पहली बार मौका दिया और 32 दिन तक शूटिंग की। मुंबई में संघर्ष करते हुए उन्होंने बड़ी परेशानी झेली और परिवार वालों के खर्च पर ही जीवन काटा, क्योंकि अभी आमदनी कुछ नहीं थी। इस पर परिजनों की बहुत सुनने को मिला, लेकिन मुंबई में धक्के खाकर अभिनय के फॉस् पर कुछ जरुरी चीजें सीखने में सफल रहे। उन्होंने बताया कि कला या अभिनय के क्षेत्र में पेशवर तरीके से अनुशासन को सर्वोपरि रखा है। वहीं उन्होंने स्वास्थ्य, अनुशासन, फॉक्स जैसे संस्कारों का पालन किया है। एक कलाकार के लिए अपने व्यवहार और आचार विचार का ध्यान भी रखना आवश्यक है, तभी उसे आगे की मंजिल मिल सकती है। 
यहां से मिली मंजिल 
लोक कलाकार व अभिनेता अशोक मेहता ने पहली सिनेमा के लिए बसवाना फिल्मस मुंबई द्वारा बनाई गई ‘हरियाणा’ फिल्म भूमिका निभाई। महेन्द्रगढ़ के गांव पाली जाट के कास्टिंग डायरेक्टर हरि ओम कौशिक ने उन्हें फिल्मों में पहली बार मौका दिया। उन्होंने नेशनल अवार्ड से सम्मानित फिल्म फौजा में खलनायक का किरदार निभाया। हरियाणवी फिल्म मैं भी सरपंच और कुर्बानी एक प्रेम कथा में अभिनय किया। उनकी लघु फिल्म राइट स्टेप और व्हेयर इज गोड में भी काम किया। इसके अलावा अशोक मेहता ने हरियाणवी वेबसीरीज की फिल्म ‘ग्रुप डी’, पुनर्जनम, जानलेवा इश्क जैसी फिल्मों में अभिनय करके अपनी पहचान बनाई। संगीत के क्षेत्र में उन्होंने सपना चौधरी के संगीत यूट्यूब पर सपना चौधरी के ससुर का किरदार निभाया है। वहीं वे टीवी में भोजपुरी सीरियल डॉक्टर का किरदार निभा रहे हैं। इसके अलावा उन्होंने विज्ञापनों में भी विभिन्न उत्पादों के लिए अभिनय किया है। लोक कला, संगीत और अभिनय के क्षेत्र में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले अशोक मेहता को को अभिनय,हरियाणा नाटय कला मंच, फिल्म राइटिंग लेखन अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। वहीं हरियाणवी फिल्म चंद्रावल की नायिका एवं निर्देशक उषा शर्मा उन्हें कहानी 60 के पार जीवन का आधार पर लेखन सम्मान में आईफा अवार्ड से नवाज चुकी हैं। 
अध्ययन के बिना सब अधूरा 
इस आधुनिक युग में साहित्य और लेखन पर युवा पीढ़ी बहुत ज्यादा ध्यान दे रही है, लेकिन जल्द से जल्द लोकप्रियता हासिल करके पैसा कमाना चाहते हैं। साहित्य या एक्टिंग जैसी कलाओं में बिना सीखे कोई आगे नहीं बढ़ सकता। इसके लिए किताबों को पढ़ने और लिखने के लिए अध्ययन करना आवश्यक है यानी बिना किसी साधना के सब कुछ अधूरा है। वहीं आज अभिनय के क्षेत्र में कलाकार नशे की गिरफ्त में फंसते जा रहे हैं, जिसका समाज पर बुरा असर पड़ता है। यह बात भी सही है कि आज संगीत और कला में गिरावट आ रही है और द्विअर्थी गीत, डायलॉग और लेखन को जरिया बनाकर शोहरत हासिल नहीं की जाती, बल्कि समाजिक पतन ज्यादा होता है। इसके लिए कलाकारो, लेखकों और साहित्यकारों को अच्छे लेखन और अच्छी कला को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि युवा अपनी सभ्यता और संस्कृति के प्रति जागरुक होकर समाज में फैली कुरितियों को दूर करने में अपना योगदान दे सके। 
16Sep-2024

सोमवार, 9 सितंबर 2024

साक्षात्कार: साहित्य, संगीत एवं कला के फनकार विपिन सुनेजा ‘शायक़’

इंटरनेट युग में साहित्य के क्षेत्र में बढ़ी चुनौतियांं                            व्यक्तिगत परिचय 
नाम: विपिन सुनेजा 'शायक़’ 
जन्मतिथि: 6 दिसम्बर 1954 
 जन्म स्थान: रेवाड़ी (हरियाणा) 
शिक्षा: एम.ए., एम.एड. 
संप्रत्ति: सेवानिवृत प्राध्यापक (अंग्रेज़ी), गजलकार, कवि, निर्देशक 
संपर्क: 24, सिविल लाइन्स, कृष्णा नगर,
रेवाड़ी(हरियाणा)। मोबा. :09991110222 
BY-- ओ.पी. पाल 
रियाणा धरती पर साहित्यिक और लोक कला संस्कृति के संवर्धन करने वाले लेखकों, साहित्यकारों, कवियों, गजलकारों, कलाकारों, गीतकारों, रंगकर्मियों जैसी बहुआयामी शख्सियतों का गढ़ बनता जा रहा है, जिन्होंने राष्ट्रीय ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है। ऐसे ही बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी वरिष्ठ रचनाकार विपिन सुनेजा ‘शायक़’ भी शुमार हैं। सुनेजा ने अपने जीवन को करीब आधी सदी से मंच पर रहकर साहित्य के साथ ही संगीत एवं रंगमंच की अनूठी साधना और अपनी मौलिक प्रयोगधर्मिता से निरंतर नये आयाम रचे हैं। एक शिक्षक के साथ कवि, गजलकार, लोक कला एवं संगीत कला के जैसी विभिन्न विधाओं के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में वरिष्ठ रचनाकार विपिन सुनेजा 'शायक़’ ने कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें उनका भारतीय संस्कृति को जीवंत रखने और अच्छे काव्य को संगीत में पिरोकर उसे लोकप्रिय बनाने का ध्येय स्पष्ट नजर आता है। 
सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ साहित्यकार एवं लोक कलाकर विपिन सुनेजा का जन्म 6 दिसम्बर 1954 को हरियाणा के रेवाडी  में रामनाथ सुनेजा तथा सावित्री सुनेजा के घर में हुआ। उनकी माता सावित्री सुनेजा हिंदी की शिक्षका थी, इसलिए उन्हें भी बचपन से ही पत्रिकाओं और रेडियों से साहित्यिक रचनाओं पढ़ने और सुनने का शौंक था। उनकी माता चूंकि एक कलाकार और रंगकर्मी भगवानदान भूटानी की बेटी थी, तो वे बेटे विपिन को भी एक कलाकार के रुप में देखना चाहती थी। मसलन साहित्य, कला एवं संस्कृति के संस्कार उन्हें विरासत में मिले। साहित्य, संगीत एवं रंगकर्म तीनों क्षेत्रों में विपिन सुनेजा बचपन से ही सक्रिय रहे। बकौल सुनेजा उन्होंने स्कूली शिक्षा के दौरान ही कई नाटकों में काम करके अपनी गायन व अभिनय की प्रतिभा का अहसास कराया। विपिन सुनेजा ने माता के प्रोत्साहन और प्रेरणा से महज चार साल की आयु में जब एक विशाल मंच पर कविता पढ़ी। हिंदू स्कूल में छात्र काल में ही उन्हें शिक्षक एवं प्रख्यात उर्दू शायर नंदलाल नैरंग ‘सरहदी’ के मार्गदर्शन में साहित्य की बारीकियां समझने को मिलीं तथा उनसे प्रेरित होकर उनकी गजले गाने और लिखना शुरु कर दिया। लेकिन उनका कहना था कि पहले सीखो और फिर लिखों। इसके बाद वह बड़े बड़े शायरों की गजले गाते रहे और उन्होंने साहित्यिक विधाओं के नियम सीखे और लिखने का जमकर अभ्यास किया। साल 1980 में पहली बार रेडियो से उनकी रचनाएं प्रसारित हुई, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। सुनेजा का पहला ग़ज़ल संग्रह 2001 में प्रकाशित हुआ। यही नहीं रेडियो व टीवी प्रसारण और मंचों पर कवि नीरज, उदयभानु हंस, बालस्वरूप राही, कुंवर बेचैन, अल्हड़ बीकानेरी, राणा गन्नौरी, कालिया हमदम जैसे नामवर शायरों के साथ मंच साझा करके उनका आशीर्वाद हासिल किया। हालांकि इस साहित्यिक सफर में स्वास्थ्य संबन्धी परेशानियों ने बार बार रुकावटे डाली। उनके संस्मरण पर उनकी नव प्रकाशित पुस्तक 'ठहरे हुए पल 'में भी विद्यमान हैं। उनकी रचनाओं में भाषा और सुरों की शुद्धता बनाये रखने के लिए अपनी त्रुटियों को देखना और दूर करने का भी प्रयास रहा है। मसलन मानव मन का विश्लेषण विपिन सुनेजा की रचनाओं का मुख्य विषय रहा है। शिक्षा विभाग में बतौर अंग्रेजी प्राध्यापक होते हुए करीब दो दशकों तक उन्होंने जिला स्तरीय स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस कार्यक्रमों के सांस्कृतिक पक्ष का निर्देशन किया है। शिक्षा विभाग से सेवानिवृति के बाद भी वे विभिन्न संस्थाओं एवं मंचों के माध्यम से साहित्य, संगीत एवं रंगमंच की निष्काम सेवा में जुटे हैं। श्रीजी एंटरटेनमेंट नामक यू-ट्यूब चैनल के जरिए उनके संगीत एवं स्वर में सजी ग़ज़लों एवं अन्य रचनाओं की बहुमुखी प्रतिभा का लाभ युवा पीढ़ी उठा रही हैं। सुनेजा के कृतित्व पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से तीन बार शोध कार्य संपन्न हो चुके हैं और एक दर्जन से ज्यादा कृतियों के लेखक के अलावा उन्होंने राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में साहित्यिक रचनाओं एवं शोध आलेखों के माध्यम से साहित्य साधना की है। आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर सुनेजा की प्रस्तुतियों का निरंतर प्रसारण के साथ उनके कृतियों पर इंग्लैंड के रेडियो चैनल से भी प्रसारण हुआ है। सुनेजा कला परिषद के मान्यता सदस्य भी रहे हैं। 
साहित्य के क्षेत्र बढ़ी चुनौतियां 
सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार विपिन सुनेजा का आधुनिक युग में साहित्य और लोक कलाओं की चुनौतियों को लेकर कहना है कि आज भी साहित्य खूब लिखा जा रहा है और प्रकाशित भी हो रहा है, लेकिन पाठकों में कमी के कारण वह पढ़ा नहीं जा रहा है, जिसका कारण इंटरनेट युग में सोशल मीडिया, टीवी और स्मार्टफोन ने लोगों की रुचि बिगाड़ दी है। उनका कहना है कि सीबीएससी के पाठ्यक्रम में हिन्दी की अनिवार्यता समाप्त होना, बड़ी-बड़ी साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन बंद होना, समाचार पत्रों में साहित्य स्तम्भों का संकुचित होना, रेडियो व टीवी से साहित्यिक कार्यक्रमों का नदारद होने का अर्थ स्पष्ट समझा जा सकता है कि देश में साहित्यकारों को उचित सम्मान न मिलना भी है। मसलन आज युवा पीढ़ियों ओं को रोज़गार और मनोरंजन चाहिए, जो साहित्य में उन्हें नहीं मिला। साहित्य व लोक कलाओं से युवा पीढ़ियों के दूर होने से वह अपनी संस्कृति से भी दूर होते जा रही है। इसलिए उन्हें सांस्कारिक बनाने और सामाजिक मर्यादाओं में ढालने के लिए स्तरीय साहित्य तक उनकी पहुंच बनाना आवश्यक है। इसके लिए शिक्षण संस्थाओं में साहित्यिक आयोजन और साहित्यिक रचनाओं को संगीतबद्ध करके वीडिओ की शक्ल में पेश किया जाए, तो युवाओं को सामाजिक और अपनी संस्कृति से जुड़ने के लिए प्रेरित किया जाना संभव है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
गजलों में विशेषज्ञ के रुप में लोकप्रिय विपिन सुनेजा की साहित्य के क्षेत्र में अब तक प्रकाशित पन्द्रह पुस्तकों में प्रमुख रुप से संस्मरण 'ठहरे हुए पल’, गजल संग्रह पीड़ा का स्वयंवर, बाल कविता संग्रह नन्ही मशालें, नन्हे पंख, नाटक संग्रह पर्दा उठने दो, विवेचनात्मक ग्रन्थ सरल सुरीले काव्यसूत्र, मालकौंस विशेष रुप से सुर्खियों में हैं। इसके अलावा उन्होंने छह पुस्तकों का संपादन भी किया। सुनेजा का संगीत के क्षेत्र में अब तक ग़ज़लों, भजनों और बालगीतों के ग्यारह संगीत एल्बम, एक हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म 'दूसरी लड़की ‘तथा अनेक नाटकों में गीत-संगीत तथा अनेक नाटकों में अभिनय और निर्दॅशन भी उनकी उपलब्धियां हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रसिद्ध साहित्यकार एवं गजलकार विपिन सुनेजा को हंस कविता पुरस्कार के अलावा प्रमुख रुप से बाबू बालमुकुंद पुरस्कार, हिन्दी साहित्य सम्मेलन पुरस्कार, श्रेष्ठ कवि सम्मान, राष्ट्र किंकर संस्कृति सम्मान, छन्द शिरोमणि, चेतन काव्य पुरस्कार, अब्र सीमाबी पुरस्कार, प्रज्ञा शिक्षक सम्मान, अभिव्यक्ति सम्मान, सुरुचि सम्मान, साहित्य परिषद सम्मान से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें देशभर में राजकीय एवं निजी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंचों से अनेक पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। 
  09Sep-2024

सोमवार, 2 सितंबर 2024

चौपाल: हरियाणवी लोक कला व संगीत को समर्पित अभिनेत्री डा. रमन नासा

फिल्म ‘दंगल’ में आमिर खान के साथ अभिनय से मिली लोकप्रियता 
              व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. रमन (हंस) नासा 
जन्मतिथि: 25 नवंबर1976 
जन्म स्थान: हिसार(हरियाणा) 
शिक्षा: पीएचडी(अंग्रेजी) 
संप्रत्ति: शिक्षिका, अभिनय, रंगमच
संपर्क: nassa.raman2511@gmail.com, मोबा. 9996702525 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला एवं समृद्ध संस्कृति की मिसाल देश में ही नहीं, विदेशों में भी कायम रखने के लिए लोक कलाकारों व गायकों की भूमिका अत्यंत महत्व रखती है। लोक कला, संगीत, संस्कृति या साहित्य के संवर्धन में जुटे ऐसे कलाकारों में बहुमुखी प्रतिभा डा. रमन नासा भी कला की विभिन्न विधाओं के जरिए समाज को सकारात्मक विचाराधारा के साथ नई ऊर्जा देने में सक्रीय है। खासतौर से दंगल जैसी बॉलीवुड फिल्म में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुकी रमन नासा की कला देश व समाज और हरियाणवी लोक कला को समर्पित नजर आती है। एक शिक्षिका होने के साथ लोक कला व संगीत के क्षेत्र में उन्होंने अभिनय की कला में लोकप्रियता हासिल की है। अपने थियेटर व रंगमंच से लेकर फिल्मों में एक अभिनेत्री के किरदार तक के सफर को लेकर डा. रमन नासा ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे अनछुए तथ्यों को उजागर किया है, जिसका सामाजिक और संस्कृति के हित में मानवता का संदेश मिलता है। 
रियाणवी फिल्मों से बॉलीवुड तक का सफर करने वाली फिल्म अभिनेत्री एवं हरियाणवी लोक कलाकार डॉ. रमन (हंस) नासा का जन्म हिसार में अमरनाथ हंस और निर्मल हंस के घर में हुआ। उनके दादा और चाचा यानी परिवार में अधिकांश सदस्यों की गायन में रुचि रही है। मसलन परिवार में ही लोक कला संगीत के माहौल के बीच रमन को भी बचपन से ही गायन में अभिरुचि रही और अभी भी गाती हैं। लेकिन परिवार में अभिनय करने के सफर के सफर की शुरुआत रमन से ही शुरु हुई। डीएवी पुलिस पब्लिक स्कूल हिसार में पिछले 14 साल से अंग्रेजी की शिक्षिका के रुप में कार्यरत डा. रमन नासा अपनी कला और अभिनय के कारण बच्चों में भी लोकप्रिय है। बकौल डा. रमन नासा उनके अभिनय की शुरुआत थियेटर से शुरु हुई और बगिया बच्चा राम की, कथा एक कंस की, माई बोरिंग डैडी, रामायण और कृष्णा सोबती द्वारा लिखित आई लड़की जैसे नाटकों में बहुत प्ले करके वह रंगमंच में सक्रीय हुई। हिसार के रंग प्रयास नाट्य मंच के दया प्रकाश सिन्हा द्वारा लिखित नाटक ‘कथा एक कंस की’ में लोकेश मोहन खट्टर के निर्देशन में रमन नासा ने कंस की प्रेमिका स्वाति का किरदार निभाया है। उन्होंने बताया कि साल 2016 में आमिर खान प्रोडक्शन के साथ ‘दंगल’ फिल्म रिलीज हुई, जिसमें उन्हें अभिनय करने का मौका मिला। मसलन इसी फिल्म से उनका अभिनय का रियल सफर शुरू हुआ, जो फिर अभी तक रुका नहीं, बल्कि बढ़ता चला गया। अभी तक उनकी करीब 15 फिल्में रिलीज हो चुकी है। उन्होंने भोजपुरी, पंजाबी और मुल्तानी फिल्म के अलावा कई वेब सीरीज फिल्मों में भी एक्टिंग की हैं। फिल्मों में अभिनय के अलावा वह लोक कला व संगीत में भी अपनी कला के जरिए हरियाणवी संस्कृति और सामाजिक समरसता को समृद्ध बनाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। नौकरी और अभिनय के बीच समय को लेकर कुछ परेशानी भी आती हैं, लेकिन चुनौतियों का सामना करके वह सामंजस्य बना लेती हैं। अभिनय और लोककला के क्षेत्र में उन्हें अपने पति प्रो. देवेन्द्र मोहन नासा और परिजनों का सहयोग व प्रोत्साहन भी मिल रहा है। लोक कला, संगीत और फिल्म में अभिनय के क्षेत्र के कारण वह दूरदर्शन से भी जुड़ी रही हैं। लोक कला, संगीत और अभिनय के क्षेत्र में डा. रमन नासा को श्रेष्ठ अभिनेत्री का यशस्वी गौरव सम्मान भी मिल चुका है। इसके अलावा उन्हें अनेक सामाजिक व सांस्कृतिक तथा अन्य मंचों व समारोह में अनेक सम्मान व पुरस्कारों से भी नवाजा जा चुका है। 
अभिनय को ऐसे मिली मंजिल 
हरियाणवी लोक कलाकार श्रीमती रमन नासा ने थिएटर से अभिनय की शुरुआत करने के बाद फ़िल्मों, लघु फ़िल्मों वेब श्रृंखला, वृत्तचित्र, हरियाणवी गानों में ही नहीं, बल्कि विज्ञापनों के लिए भी अपने अभिनय की कला का प्रदर्शन कर लोकप्रियता हासिल की है। उनका कहना है कि थिएटर ही अभिनय सीखने का मंच है, जहां से फिल्मों तक की मंजिल मिलती है। उन्होंने रंगमंच के क्षेत्र में थिएटर शो बगिया बचा राम की, कथा एक कंस की, आई लड़की, (स्वांग) शिव पार्वती, (स्वांग) हीर रांझा, मेरे बोरिंग डैडी, रामायण(मामदोदरी), रामायण(केकई) जैसे नाटकों के अभिनय करके ऐसा कदम बढ़ाया कि उसके बाद उन्होंने बॉलीवुड अभिनेता और फिल्म निर्देशक आमिर खान प्रोडक्शन के साथ ‘दंगल’ फिल्म में भी अपने अभिनय से सबको चौंकाया। इसी प्रकार उनकी हरियाणवी फिल्म गौरव की स्वीटी’ और वेब सीरीज फिल्म ‘मेरे यार की शादी’ भी सुर्खियों में रही है। वहीं उनकी लघु फिल्म जन्नत, बूल, गाना बहु नई नवेली और रेल की भंबीरी, चटक मटक के अलावा विज्ञापन फिल्म ‘कानून सीखो’ के लिए भी किरदार निभाया है। अभिनेत्री रमन नासा की हरिओम प्रोडक्शंस के साथ ‘टोट्टा’, योगेंदर राठी के साथ ‘योग’ कुलदीप कुणाल के साथ ‘मोटर माचिस कटर’ एडमेक प्रोडक्शंस, बॉम्बे के साथ ‘द लॉस्ट गर्ल’ में भी अपने किरदार का प्रदर्शन किया है। 
आधुनिक युग में बढ़िया काम 
अभिनेत्री डा. रमन नासा का इस आधुनिक युग में साहित्य व लोक कला की स्थिति को लेकर कहना है कि हरियाणा में अब इस क्षेत्र में अच्छे तरीके से मुड़ रहा है, केवल प्रोत्साहन देकर इसे आगे बढ़ाने की जरुरत है, ताकि कलाकार अपनी अच्छी और बड़ी भूमिका को निभा सके। लोक कला व फिल्म के क्षेत्र में प्रोड्यूशरों को हरियाणा में निवेश करने की भी जरुरत है, ताकि लोक कला व संगीत की स्थिति को और ज्यादा मजबूत किया जा सके। नई युवा पीढ़ी भी साहित्य व कला के क्षेत्र में रुचि ले रही है, लेकिन उन्हें साहित्य और कला से जुड़े लोगों को अच्छे कंटेट देकर प्रोत्साहन देना बहुत आवश्यक है। अभिनय के क्षेत्र में भी अच्छे कंटेट की पटकथा के लेखन होना चाहिए, क्योंकि बच्चों से लेकर बुजुर्ग भी लोक कला व संगीत और फिल्में देखते हैं। आज के युग में यूट्यूब का दायरा बढ़ा है, जिनमें पहले की तरह अब द्विअर्थी कंटेट कम ही नजर आता है। यानी हरियाणा की बात करें तो अच्छे अच्छे गाने ही ज्यादा पसंद किये जा रहे हैं, जिनमें और बेहतर सुधार के साथ समाज को साहित्य, कला और संगीत के जरिए नई दिशा देना संभव है। 
02Sep-2024