मंगलवार, 30 जुलाई 2013

दागी सांसदों व विधायकों की ही ज्यादा बढ़ी संपत्ति!

आपराधियों की कमाई का जरिया बनी राजनीति
ओ.पी. पाल
सुप्रीम कोर्ट के जेल में रहते या आरोपी तय होने वाले नेताओं पर चुनाव न लड़ने पर पाबंदी लगाने पर जहां शुरू ही बहस में राजनीतिक दलों में खलबली देखी जा रही है। लेकिन पिछले दस साल के राजनीतिक इतिहास में जिस तरह के तथ्य उभर कर सामने आए हैं उनमें पाया गया है कि जिस सांसद या विधायक का जितना बड़ा आपराधिक रिकार्ड रहा उसकी संपत्ति में उतना ही ज्यादा इजाफा हुआ है। देश में वर्ष 2004 से अब तक हुए लोकसभा व विधानसभा के चुनावों में उम्मीदवारों द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष दिये गये शपथपत्रों के अध्ययन से ये चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। देशभर में सामान्यत: सांसदों और विधायकों की औसत संपत्ति की तुलना में दागी जनप्रतिधियों की औसत संपत्ति में औसतन 25 प्रतिशत ज्यादा इजाफा सामने आया है। यहां यह भी बता दें कि संपत्ति के इस इजाफे को पिछले दस साल से लगातार चुनाव लड़ते आ रहे विभिन्न दलों के जनप्रतिधियों ने नामांकन के साथ दाखिल शपथपत्र में स्वयं यह आकार दिया है। देश में चुनाव सुधार में जुटी गैर सरकार संस्था एसोसिएशन फॉर
डेमोक्रेटिक रिफार्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच द्वारा प्रत्याशियों के शपथपत्रों को खंगालने के बाद यह अध्ययन किया है। इस अध्ययन के आधार पर एडीआर के राष्ट्रीय समन्वयक अनिल बैरवाल और संस्थापक जगदीश छोकर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले दागियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने व केंद्रीय सूचना आयोग द्वारा राष्ट्रीय दलों को आरटीआई के दायरे में लाने जैसे कदमों से राजनीतिक दलों में खलबली मची हुई है। ऐसे में चुनाव सुधार और लोकतंत्र की मजबूती के लिए उन्होंने जनता में जागरूकता लाने के लिए यह अध्ययन किया है। इस अध्ययन से साफा जाहिर है कि गंभीर अपराध में शामिल रहने वाले जनप्रतिधि संपत्ति बढ़ाने के मामले में भी सामान्य जनप्रतिनिधियों पर भारी हैं। इस खुलासे में यह तथ्य भी सामने आए हैं कि देश के बड़े राजनीतिक दलों ने ज्यादा ऐसे प्रत्याशियों को गले लगाकर टिकट थमाए हैं जिन पर ज्यादा गंभीर आपराधिक मामले हैं और धन-बल के जरिए वह जीतकर संसद या विधानसभाओं में दाखिल हुए हैं। राजनीति दलों के अपराधियों पर ज्यादा भरोसा करने का ही नतीजा यह है कि पिछले दस सालों में चुनाव लड़ने वालों में 62847 यानि 18 फीसदी उम्मीदवार आपराधिक रिकार्ड वाले थे, जिसमें से 5027 के खिलाफ तो हत्या, बलात्कार और डकैती, अवैध वसूली व धोखाधड़ी जैसे संगीन आरोप लंबित हैं।
इस रफ्तार से बढ़ी संपत्ति
वर्ष 2004 से अब तक जिन 62847 लोगों ने चुनाव लड़ा और उनकी औसत संपत्ति 1.37 करोड़ रुपये थी। जबकि इस दौरान चुनाव जीतने वाले 8790 सांसदों-विधायकों की औसत संपत्ति 3.83 करोड़ पहुंच गई। इन तथ्यों से यही माना जा रहा है कि
चुनाव लड़ना अब साधारण लोगों का काम नहीं है। एडीआर के सदस्य त्रिलोचन शास्त्री ने इसी बात पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि तथ्यों से सामने आ चुका है कि सामान्य उम्मीदवार के मुकाबले आपराधिक रिकार्ड वाले उम्मीदवारों की जीत का औसत भी ज्यादा रहा है। यही कारण है कि राजनीतिक दल आपराधिक रिकार्ड वाले लोगों को बार-बार टिकट देने में किसी तरह की कोताही नहीं बरतते और न ही कोई संकोच करते है। इस खुलासे से यह भी तथ्य सामने आए हैं इन दस सालों में 4181 प्रत्याशियों ने दोबारा चुनाव लड़ते समय जो शपथ पत्र दिये उसमें इनमें से 3173 लोगों की 1.74 करोड़ रुपये की औसत संपत्ति में 4.08 करोड़ का इजाफा देखने को मिला।
शिवसेना का दागियों पर ज्यादा भरोसा
इस खुलासे में जहां तक आपराधिक रिकार्ड वाले सांसदों और विधायकों का सवाल है तो इसकी सबसे अधिक संख्या शिवसेना में है। इस दल के 75 फीसदी प्रतिनिधि दागी रिकार्ड वाले हैं। इसके बाद राजद 46 प्रतिशत के साथ दूसरे और जदयू 44 प्रतिशत के साथ तीसरे पायदान पर रहा। सपा के 43 प्रतिशत, बसपा के 35 प्रतिशत, कांग्रेस के 31 प्रतिशत और भाजपा के 22 प्रतिशत सांसदों-विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज पाये गये हैं।
30July-2013

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