हास्य व्यंग्य, काव्य और लघु कथाओं से समाज को दे रहे सकारात्मक संदेश
व्यक्तिगत परिचय
नाम: प्रो. शामलाल कौशल
जन्मतिथि: 9 दिसंबर 1943
जन्म स्थान: डेरा ग़ाज़ी खान(पाकिस्तान)
शिक्षा: एम.ए. (अर्थशास्त्र, अंग्रेज़ी तथाराजनीति शास्त्र)
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त प्रोफेसर( अध्यक्ष, अर्थशास्त्र), राजकीय महाविद्यालय, गोहाना सोनीपत( हरियाणा)।
सम्पर्कः मकान न.975-बी/20, राजीव निवास, शक्ति नगर, ग्रीन रोड, रोहतक। मोबा-मे. 09416359045
BY-ओ.पी. पाल
साहित्य जगत में समाज को नई दिशा देने के मकसद से ही लेखक साहित्य साधना करते आ रहे हैं। मूर्घन्य विद्वानों ने साहित्य को समाज का दर्पण माना है। इसलिए लेखक और साहित्यकार अपनी विभिन्न विधाओं में समाजिक सरोकार के मुद्दों पर साहित्य साधना करके समाज को अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति सकारात्मक संदेश देते आ रहे हैं। हरियाणा की समृद्ध संस्कृति के संवर्धन में जुटे शिक्षाविद् एवं लेखक शामलाल कौशल भी सामाजिक सरोकार के मुद्दों पर आलेख, काव्य, हास्य व्यंग्य और लघु कथओं जैसी विधाओं से अपने रचना संसार को बढ़ाकर साहित्य और समाज को एक दूसरे के पूरक होने की सार्थकता को सिद्ध करने में जुटे हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. शामलाल कौशल ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसमें आजकल सामाजिक विसंगतियों के कारण दूर होती सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता और बड़ों के प्रति आदर जैसी परंपराओं को जीवंत करने में साहित्य एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का माध्यम है।
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हरियाणा में रोहतक के वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. शामलाल कौशल का जन्म 9 दिसंबर 1943 को पाकिस्तान के डेरा ग़ाज़ी खान में एक साधारण परिवार में तोताराम तथा श्रीमती यशोदा बाई के घर में हुआ था। जब वह बहुत छोटे थे तो भारत के विभाजन के समय शोर शराबा होने लगा था और अलग से पाकिस्तान बनने पर हिंदू परिवार दंगाईयों के भय से अलग अलग स्थानों से होते हुए हिंदुस्तान की तरफ पलायन करने लगे। जहां उन्हें याद है वे पाकिस्तान से अपने माता पिता और भाई बहन और अन्य लोगों के साथ रेलगाड़ी की छत पर सवारी करके हिंदुस्तान पहुंचे। आखिरकार हमारा परिवार रेलगाड़ी से पंजाब मे संगरूर शहर में उतरा, जहां रेलवे स्टेशन के बार लगे एक हैंडपंप का पानी पीकर कई दिन के बाद अपनी प्यास बुझाई। उनके परिवार के अन्य सदस्य तथा रिश्तेदार भी वहां पहुंच गए, तो उन्हें दो-तीन कैंपो में बारी-बारी कुछ दिन के लिए रखा गया और बाद में हमें संगरूर की सलीम खान की कोठी में रहने के लिए जगह दी गई, 40- या 50 परिवारों ने शरण ली। हालांकि शरणार्थियों की जिस तरह देखभाल की जा सकती थी वह यथासंभव की गई। मसलन हिंदुस्तान आने के बाद प्रारंभिक दिन बहुत कठिन और संघर्ष के बीच बीते। लोगों ने कोई न कोई काम करके बड़ी मेहनत की और हिंदुस्तान आकर अपने आपको सभी परिवारों ने पैरों पर खड़े होकर पालन पोषण किया। इसी संघर्षशील जिंदगी के बीच साल 1953 में पिता के निधन के कारण पढ़ाई करना बहुत मुश्किल था, लेकिन फिर भी उन्होंने किसी तरह संगरूर के राज हाई स्कूल से मैट्रिक पास की। गवर्नमेंट रणबीर कॉलेज से बीए पास किया, जहां उन्हें अर्थशास्त्र पढ़ाने वाले शिक्षक तथा समाजसेवी प्रोफेसर मुंशी राम वर्मा ने उनके लिए एक अभिभावक की भूमिका निभाई और हरसंभव सभी तरह की सहायता करके मार्गदर्शन किया। प्रोफेसर मुंशीराम वर्मा की वजह से ही वह इस मुकाम पर हैं। बाद में उन्होंने पंजाबी यूनिवर्सिटी पटियाला से एमए (अर्थशास्त्र) उत्तीर्ण की। प्रो. वर्मा के लिए उनका एहसान वह सारी उम्र नहीं भूल सकते, जिसके बाद 1966 में हरियाणा में गोहाना में हरियाणा वार हीरोज मेमोरियल कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के तौर पर उनकी नौकरी लगी। 1981 में यही कॉलेज सरकारी कॉलेज बन गया और यही से करीब 36 साल अध्यापन करने के बाद 2001 में वह सेवानिवृत्ति हुए, कॉलेज के विभिन्न प्राचार्यों, प्रोफेसरों तथा विद्यार्थियों से खूब मान सम्मान मिला। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि जीवन की इस यात्रा में जब कभी भी उन्हें किसी कठिनाई का सामना करना पड़ा, तो परमात्मा ने किसी न किसी को अपना प्रतिनिधि भेज कर उनकी मुश्किल आसान कराई। बकौल शामलाल कौशल, हमारे परिवार में किसी की भी साहित्य में रुचि नहीं रही है। परिवार में शायद वह अकेले सदस्य थे, जिन्हें बचपन से ही अखबार पढ़ने की रुचि रही है। वह अपने कॉलेज की पत्रिका का संस्कृत खंड का स्टूडेंट एडिटर थे और जब वह प्रोफेसर बने, तो अपने कॉलेज की पत्रिका में भी उनके लेख भी नियमित तौर पर लेख प्रकाशित होते रहते थे। बचपन से ही उनका व्यवहार हंसी मजाक का रहा है। इसलए छात्र जीवन में वह साथियों को चुटकुले सुना कर पहले उनका ध्यान आकर्षित करता था और फिर पढ़ता था। मसलन मन में जो आता है वह लिख लेते थे और इसी कारण अब लिखने की आदत बन गई है। बेशक वह कविताएं, कहानियाँ तथा लघु कथाएं लिखते हैं, लेकिन उनका फोकस लेख तथा हास्य व्यंग्य लिखने में रहता है, जिसमें वह सामयिक तथा सामाजिक विषयों को तरजीह सर्वोपरि रखते हैं। हास्य व्यंग्य लिखने में उनका मकसद किसी का व्यक्तिगत उपवास करना नहीं,बल्कि किसी विषय विशेष को लेकर वह हंसी-हंसी में भ्रष्टाचार, पुरस्कारों का मिलना, सामाजिक रिश्ते, राजनेताओं का व्यवहार जैसी समस्याओं का विश्लेषण करके समाज को सकारात्मक संदेश दने का प्रयास करते हैं।
ऐसे बने साहित्यकार
प्रो. शामलाल ने बताया कि सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने लेखन कार्य शुरु किया, जिसके लिए उन्हें डॉ. श्याम शाखा शाम, प्रख्यात साहित्यकार, समाजसेवी, शिक्षक डॉ मधुकांत जैसे कई ऐसे मूर्घन्य विद्वान और साहित्यकारों की प्रेरणा और मार्गदर्शन में साहित्य संवर्धन में कई विधाओं उन्होंने अपने रचना संसार को लगातार दिशा दी। इसमें उन्होंने सबसे पहले एक हास्य व्यंग्य लिखा, जिसके बाद लघु कथाएं लिखनी शुरू की। लेकिन साहित्य के क्षेत्र में उन्हें बड़े बड़े साहित्यकारों से परिचय करवाने का बहुमूल्य कार्य प्रख्यात साहित्यकार डॉ. मधु कांत ने करवाया, जिनसे आज तक बहुत मान सम्मान मिल रहा है। जो उन्हें लिखी गई रचनाएं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कराने के लिए भेजने के लिए प्रोत्साहित करते आ रहे हैं। खास बात ये भी है कि सेवानिवृत्ति के बाद साहित्य लेखन से ही उनका समय बहुत आसानी से गुजर जाता है और वरिष्ठ साहित्यकारों से मुलाकात और कार्यक्रमों में हिस्सेदारी से उनके ज्ञान में वृद्धि तथा सम्मान मिल रहा है।
आधुनिक युग में अच्छे साहित्य का अभाव
वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफेसर शामलाल कौशल का इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने आई चुनौतियों को लेकर कहना है। साहित्य समाज का दर्पण है, अगर समाज में अच्छे संस्कार होंगे, तो संस्कृति होगी। मसलन साहित्य का प्रभाव समाज पर पड़ता है और समाज भी साहित्य को प्रभावित करता है। लेकिन आज के समय में अच्छे साहित्य का अभाव इसलिए पनपा है कि हमारा समाज भी आजकल सभ्यता, संस्कृति, नैतिकता और बड़ों के प्रति आदर व ईमानदारी से दूर होते जा रहे हैं। हालांकि जिन्हें साहित्य का जुनून है वह अभी साहित्य साधना में जुटे हैं, लेकिन भौतिकतावाद के इस युग में साहित्य के प्रति पाठकों की रुचि पहले के मुकाबले में बहुत कम हो रही हैं। युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति रूझान न होने का कारण वह अपने करियर को लेकर इंटरनेट का ज्यादा सहारा ले रहे हैं। समाज के ताने बाने को संस्कृति के अनुरुप संजोने के लिए युवा पीढ़ी को साहित्य के लिए प्रेरित करने की बहुत जरुरत है। इसके लिए शिक्षण संस्थानों में साहित्य से संबंधित सामग्री पाठ्यक्रमों में शामिल करके शिक्षक साहित्य की विभिन्न विधाओं के बारे में छात्रों को संस्कारी बना सकते है। युवाओं को साहित्य संबन्धित प्रतियोगिताओं में शामिल करके उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है। वहीं साहित्य में आई गिरावट का कारण शॉर्टकट के रास्ते लोकप्रियता हासिल करने के प्रयास में लेखकों को भी बदलते सामाजिक परिवेश के अनुसार साहित्य संवर्धन करने की आवश्यकता है, तभी समाज और संस्कृति को जीवंत रखने की क्ल्पना की जा सकती है।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. शामलाल कौशल की प्रकाशित 15 पुस्तकों में लेख संग्रह-जीना एक कला है तथा खुश कैसे रहें, काव्य संग्रह-यही तो जिंदगी है, हास्य व्यंग्य संग्रह-यह दुनिया पागलखाना, कुवारों का संडे बाजार व आज्ञाकारी पति होने के फायदे, लघुकथा संग्रह-अगर मां होती, हास्य व्यंग्य-ऐ बेशर्मी? तेरी सदा ही जय हो, लघु कविता संग्रह- जिनकी नहीं होती मां, अभी तो मैं जवान हूं और मेरे हीरो मेरे मां बाप, कहानी संग्रह-पिंजरे के पंछी सुर्खियों में हैं। वहीं संयुक्त लेखक डा. मधुकांत के साथ काव्य संग्रह- ऐ! जिन्दगी! तथा लेख संग्रह- तनाव ही तनाव भी उनकी कृतियों में शामिल है।
पुरस्कार व सम्मान
शिक्षाविद् एवं साहित्यकार प्रो. शामलाल कौशल को साहित्य साधना के लिए अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। हरियाणा साहित्य अकादमी ने उन्हें हास्य व्यंग्य संग्रह 'आज्ञाकारी पति होने के फायदे' को सर्वश्रेष्ठ कृति सम्मान से अलंकृत किया। वहीं लाल बहादुर शास्त्री 'साहित्य रत्न' पुरस्कार, निर्मला स्मृति आजीवन हिंदी साहित्य साधना सम्मान के अलवा दिल्ली, हरियाणा, यूपी आदि विभिन्न राज्यों की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अनेक बार सम्मान देकर पुरस्कृत कर चुकी हैं।
17Feb-2025
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