सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

साक्षात्कार: साहित्य में मानवीय रिश्तों को सर्वोपरि रखना जरुरी: भावना सक्सैना

महिला रचनाकार ने प्रवासी साहित्य में हासिल की लोकप्रियता 
            व्यक्तिगत परिचय 
नाम: भावना सक्सैना 
जन्म तिथि: 20 जनवरी 1973 
जन्म स्थान: दिल्ली 
शिक्षा: स्नातकोत्तर, अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक व एमए अंग्रेज़ी 
संप्रति: सहायक निदेशक, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार 
संपर्क: फरीदाबाद (हरियाणा), मोबा.-9560719353 
-BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में समाज के परिदृश्य को सकारात्मक ऊर्जा देने के मकसद से लेखक एवं साहित्यकार अपनी विभिन्न विधाओं में साहित्य साधना से हिंदी, संस्कृति और सभ्यता का संवर्धन करने में जुटे हैं। हरियाणा के ऐसे लेखकों में शुमार महिला साहित्यकार भावना सक्सैना ने संपूर्ण शिक्षा अंग्रेजी में पूरी करने के बावजूद भारत में ही नही, बल्कि विदेश में भी हिंदी के प्रचार-प्रसार को महत्ता दी है। खासतौर से हरियाणा में ऐसे चुनिंदा लेखकों में शायद महिला लेखक के रुप में भावना सक्सैना ऐसी साहित्यकार हैं, जिन्होंने विदेश में रहते हुए प्रवासी साहित्य पर शोध के जरिए अपनी लेखनी से कहानी, आलेख, लघुकथा, कविता औऱ हाइकु जैसी विधाओं में अपने रचना संसार का परचम लहराया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग में सहायक निदेशक एवं लेखिका भावना सक्सैना ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को साझा किया है, जिन्होंने अपनी रचनाओं में मानवीय रिश्तों को सर्वोपरि माना है, जो उनके लेखन की अनुभूतियों की अभिव्यक्ति को प्रकट करता है। 
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सात समुंदर पार तक हिंदी साहित्य की अलख जगाने वाली हरियाणा की वरिष्ठ महिला साहित्यकार भावना सक्सैना का जन्म 20 जनवरी 1973 को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक शिक्षित परिवार में सुरेंद्र कुमार कौशिक और श्रीमती दर्शन कौशिक के घर में हुआ। उनके पिता दिल्ली में बैंकर थे, तो माता भी प्रशासनिक क्षेत्र में सेवारत थी। इसलिए उनका बचपन दादा-दादी के स्नेह की छांव में गुज़रा और यह उनकी अमूल्य पूंजी है। बचपन से ही दादी को नियमित रूप से गीता और सुखसागर पढ़ते हुए देखा। वह काम करते हुए अनेक भजन भी गुनगुनाती रहती थी। मेरा सबसे पसंदीदा भजन था ‘धन्य हो महिमा तेरी भगवन नहीं पार किसी ने पाया है, ओ निराकर भगवान मेरे ये जाग साकार बनाया है’। घर का वातावरण बहुत सात्विक और स्नेह से पूर्ण था। उस समय मझली और छोटी बुआ संस्कृत में स्नातक व स्नातकोत्तर कर रही थीं और साथ ही पास-पड़ोस के बच्चों को निःशुल्क पढ़ाया करती थीं । पिताजी ने उनका प्रवेश प्रथम कक्षा में ही सेंट मेरी कॉन्वेंट स्कूल में करा दिया था, जहाँ छोटा मगर अच्छा पुस्तकालय था। अंग्रेज़ी हिंदी की खूब पुस्तकें उपलब्ध रहीं। जो बच्चे बुआ से पढ़ने आते थे उनका पाठ्यक्रम कुछ अलग था। वह उन सबकी पुस्तकें लेकर पढ़ती, अपने से बड़ी कक्षाओं की भी। पुस्तकों की सहज उपलब्धता और परिवार में सभी की प्रेरणा से पढ़ने में रुचि उत्पन्न हुई। उनकी कुछ तुकबंदियाँ तो सातवीं-आठवीं कक्षा में आरम्भ हुई थीं, लेकिन उन्होंने अपनी पहली पूर्ण कविता कक्षा नौ में अंग्रेज़ी भाषा में लिखी। उनके फूफाजी उस समय अंग्रेज़ी प्राध्यापक थे, जिन्होंने उस रचना को काफ़ी सराहा। फिर गाहे बगाहे वह अपने विचारों को कविताओं के रूप में कलमबद्ध करती रही। कॉलेज के समय काफ़ी कविताएँ लिखी, लेकिन कभी प्रकाशित नहीं कराईं। आज भी वे डायरी और रजिस्टरों के पन्नों में कैद हैं, वे मन की अनगढ़ अनुभूतियाँ हैं और बेहद निजी संपदा हैं। स्नातकोत्तर, अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातक व एमए अंग्रेज़ी में करने के बाद उनकी भी केंद्र की सरकारी नौकरी मिल गई, जिनकी नियुक्ति केंद्रीय गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग के केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में वरिष्ठ अनुवादक पद पर हुई, जिन्हें वर्ष 2007 में सूरीनाम में प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया। उन्होंने सूरीनाम में भी साहित्यिक साधना पर ध्यान केंद्रित रखा। मसनल वहाँ के बारे में जानने का प्रयास किया, लेकिन उस समय इंटरनेट पर इतनी सूचना सामग्री उपलब्ध नहीं थी। लेकिन वह सूरीनाम के हिंदुस्तानियों की भाषा और संस्कृति के प्रति प्रेम से बेहद प्रभावित हुई और उन्होंने सूरीनाम के भारतवंशी हिंदी लेखकों के साहित्य का आलोचनात्मक अध्ययन करते हुए उन पर आलेख लिखने शुरू कर दिये। दरअसल 2012 में सूरीनाम पर ही प्रवासी साहित्य के रुप में उनकी पहली पुस्तक प्रकाशित हुई। कुछ वर्ष पहले एक कहानी संग्रह नीली तितली प्रकाशित हुआ, जिसकी कई कहानियाँ सूरीनाम की पृष्ठभूमि पर हैं। इसके बाद एक हाइकु संग्रह और दूसरा कहानी संग्रह भी आया। बकौल भावना सक्सैना, साहित्य हो या काई अन्य क्षेत्र, हर क्षेत्र में उतार चढ़ाव मनुष्य की जिंदगी का हिस्सा है, जिसमें हताश होने के बजाए सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने वालों के मार्ग को कोई परास्त नहीं कर सकता। महिला साहित्यकार भावना सक्सैना ने साहित्य के क्षेत्र में जीवन की अनुभूतियाँ और समाज के घटनाक्रम ही रहे हैं। इनमें लेखन की सार्थकता होना आवश्यक है कि वह मानव जीवन और समाज के लिए मार्गदर्शन का सबब बने। उन्होंने ऐसी ही कहानी और कविताएं लिखकर महसूस किया है कि यह लेखन उनके लिए भावनाओं का सहज स्फूर्त प्रवाह है। खासबात ये है कि भावना सक्सैना ने अंग्रेजी माध्यम से पूरी शिक्षा ग्रहण करने के बावजूद देश और विदेश में हिंदी भाषा के लिए बहुत कार्य किया है। उन्होंने बताया कि जब वह एमए अंग्रेजी कर रही थी तो तब त्रिनदाद व टोबैगो में पाँचवा विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन की खबर सुनकर मन में विचार उठता था कि वह हिंदी में अध्ययन कर रही होती तो वह अपने देश और भाषा की सेवा बेहतर कर सकती थी। यह भी संयोग रहा कि एमए का परिणाम लेने विश्विद्यालय गयी तो अनुवाद पाठ्यक्रम सम्बन्धी सूचना देखी और वहीं निर्णय किया कि यह उनके लिए हिंदी सेवा करने का जरिया हो सकता है। तत्काल ही अनुवाद पाठ्यक्रम का फॉर्म लेकर पाठ्यक्रम पूरा किया और एसएससी की परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसका नतीजा यह रहा कि उनकी तैनाती भारत सरकार के केंद्रीय अनुवाद ब्यूरो में हो गई और अपनी मातृभाषा की सेवा करने का सपना पूरा हुआ, जिसके बाद उन्होंने हिंदी में भी एमए किया। केंद्रीय सेवा के दौरान वर्ष 2008 में विदेश मंत्रालय में प्रतिनियुक्ति के परिणामस्वरूप उनका चयन सूरीनाम जाने के लिए हुआ। सूरीनाम में तैनाती के दौरान वह हिंदी के एक अलग संसार से रूबरू हुई। वर्ष 2023 में 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन से जुड़े कार्यों के लिए अस्थायी तैनाती कर दी गई, तो पुनः देश से दूर फिजी जाकर अपनी भाषा की सेवा करने का अवसर मिला। वहीं उनकी 'सूरीनाम में हिंदुस्तानी, भाषा, साहित्य व संस्कृति' तथा 'सूरीनाम का सृजनात्मक हिंदी साहित्य' नामक पुस्तकें दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक पाठ्यक्रम में भी शामिल हैं। 
प्रवासी साहित्य पर शोध 
लेखिका भावना सक्सैना के अनुसार साल 2008 में सूरीनाम में हिंदी अताशे के रूप में प्रतिनियुक्त हुई तो उन्होंने सूरीनाम पदभार ग्रहण करने के बाद सूरीनाम के हिंदी लेखकों के बारे में जानकारियां जुटाना शुरु कर दिया, जहां हम वहां के बहुत कम कवियों व लेखकों से परिचित हैं। उसी दौरान सूरीनाम में पंडित हरिददेव सहतू के साथ मिलकर 'एक बाग के फूल' र्ग्षक से एक काव्य संकलन तैयार किया, जिसमें 27 कवियों की कविताओं का संकलन है। सूरीनाम में हिंदुस्तानी वंशजों के द्वारा बोली जाने वाली भाषा, उनकी रचित साहित्य और सहेजी गई संस्कृति जैसे अन्य पहलुओं पर भी अध्ययन किया और अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साक्षात्कार किये। इस प्रकार के शोध के बाद उन्होंने 'सूरीनाम में हिंदुस्तानी भाषा, साहित्य व संस्कृति' नामक पुस्तक तैयार की। साल 2012 में वापस भारत लौटने पर उनकी साहित्य साधना रुकी नहीं, बल्कि तमाम एकत्र जानकारियों और साहित्य को मूर्त रुप दिया। उन्होंने प्रतिष्ठित भाषा-वैज्ञानिक डॉ.विमलेशकान्ति वर्मा के सह-संपादन में 'सूरीनाम का सृजनात्मक हिंदी साहित्य' नामक पुस्तक लिखी। इसके बाद डॉ. विमलेशकान्ति वर्मा के ही प्रवासी भारतीय हिंदी साहित्य ग्रंथ पर भी कार्य किया, जिसमें सूरीनाम, मॉरिशस, दक्षिण अफ्रीका और फीजी के लेखकों की रचनाएँ संकलित हैं। उनकी एक एक पुस्तक राष्ट्रीय पुस्तक न्यास से प्रकाशित हुई, जिसमें सरनामी हिंदी यानी सूरीनाम में बोली जाने वाली हिंदी पर शोध कार्य भी समाहित है। 
आधुनिक युग में साहित्य की चुनौतियां 
आधुनिक युग में साहित्य को लेकर भावना सक्सैना का कहना है कि साहित्य की हर युग में अपनी महत्ता है चाहे वह प्राचीन साहित्य हो या फिर वर्तमान में लिखा गया साहित्य। आज के समय में भी साहित्य को नए आयाम मिले हैं। पॉडकास्ट व अन्य डिजिटल माध्यमों से इसकी पहुंच बढ़ी है। इस युग में हर व्यक्ति के पास अच्छे साहित्य का भंडार उपलब्ध हो सकता है, बस उसे सतर्क रहने की आवश्यकता है। भारत में साहित्य के पाठक तो बहुत हैं, लेकिन हिंदी साहित्य के पाठक अपेक्षाकृत कम हैं। जहां तक युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करने का सवाल है इसके लिए हिंदी के लेखकों को ऐसी रचनाओं पर फोकस करना होगा, जो युवा पीढ़ी को पढ़ने के लिए प्रेरित कर सके। लेकिन देखा जा रहा है कि आज संभवतः मौलिकता का अभाव है। आजकल हिंदी के बहुत से लेखक मानो फैक्ट्री में साहित्य सृजन कर रहे हैं, ताकि सोशल मीडिया पर आने वाली प्रतिक्रिया उन्हें लोकप्रिय बना सके। जबकि समाज को अपनी संस्कृति के प्रति सकारात्मक ऊर्जा देने के लिए साहित्यकारों और लेखकों को सजग रहने की आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
महिला लेखक एवं साहित्यकार भावना सक्सैना की प्रकाशित पुस्तकों में सूरीनाम में हिन्दुस्तानी, भाषा, साहित्य व संस्कृति, कहानी संकलन नीली तितली सुर्खियों में है। उन्होंने सूरीनाम का सृजनात्मक हिंदी साहित्य, प्रवासी हिंदी साहित्य, एक बाग के फूल, अभिलाषा, हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा के मार्च 2018 महिला विशेषांक का संपादन भी किया है। यही नहीं उन्होंने कलाकारों का जीवन सरनामी(रोमन) से हिंदी में अनुवाद भी किया है। 
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य के माध्यम से हिंदी के संवर्धन एवं प्रचार प्रसार के लिए साहित्यकार भावना सक्सैना को अमेरिका के द्वीव सूरीनाम में सूरीनाम हिंदी परिषद, सूरीनाम साहित्य मित्र संस्था और ऑर्गेनाइज़ेशन हिंदू मीडिया, सूरीनाम द्वारा श्रेष्ठ हिंदी सेवाओं प्रचार प्रसार के लिए सम्मानित किया जा चुका है। वहीं हरियाणा साहित्य अकादमी से ने उन्हें साल 2014 में उनकी लिखित कहानी 'तिलिस्म' को प्रथम पुरस्कार से नवाजा है। उन्होंने नवंबर 2008 से जून 2012 तक भारत के राजदूतावास, पारामारिबो, सूरीनाम में अताशे पद पर रहकर हिंदी का प्रचार-प्रसार किया है।
03Feb-2025

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