चिकित्सा पेशे के वावजूद विरासत में मिले साहित्य के संवर्धन में जुटे
व्यक्तिगत परिचय
नाम: डॉ. शिवकान्त शर्मा 'शिव'
जन्मतिथि: 23 जून 1958
जन्म स्थान: गॉंव पेटवाड़ (हिसार)
शिक्षा: एम.बी.,बी. एस, एम.डी.
सम्प्रति:चिकित्सक,साहित्यकार एवं कवि
संपर्क: कान्त हस्पताल, नजदीक रोहतक गेट, भिवानी, मोबा. 9896364315
--BY-ओ.पी. पाल
भारतीय संस्कृति और सामाजिक परंपराओं को इस आधुनिक युग में जीवंत रखने की चुनौतियों से निपटने के लिए लेखक, कवि, गजलकार और साहित्यकार अपनी अलग अलग विधाओं में साहित्य संवर्धन करने में जुटे हैं। साहित्य से जुड़े विद्वानों में ऐसे ही साहित्यकारों में डा. शिवकांत शर्मा भी शुमार है, जो समाज को नई दिशा देने के मकसद से चिकित्सक होने के साथ साहित्यिक साधना करते आ रहे हैं। उन्होंने सामाजिक सरोकार, समसामयिक चिंतन, व्यवस्था से जूझते मानवीय संघर्ष व भारतीय मूल्यों के संरक्षण व संवर्धन जैसे गंभीर मुद्दे अपने लेखन के मूल भाव में समाहित किये हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में चिकित्साविद् एवं कवि व गजलकार डा. शिवकांत शर्मा 'शिव' ने कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं का जिक्र किया है, कि साहित्य के बिना समाज की कल्पना करना बेमाने है।
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हरियाणा में छोटी काशी के नाम से पहचाने जाने वाले भिवानी में पेशे से चिकित्सक एवं साहित्यकार व कवि के रुप में लोकप्रिय डॉ. शिवकान्त शर्मा का जन्म हिसार जिले के गॉंव पेटवाड़ में मदनगोपाल शास्त्री और श्रीमती शशि देवी के घर में 23 जून 1958 को हुआ। उनके दादा पंडित रामप्रसाद उस समय के सुप्रसिद्ध लोककवि के रुप में प्रसिद्ध रहे हैं, जिन्होंने अनेक खंडकाव्य लिखे और वे सनातन के प्रबल प्रचारक व लोकप्रिय भजनोपदेशक भी थे। जबकि उनके पिता मदन गोपाल शास्त्री भी हरियाणवी संस्कृति के पुरोधा के रुप में हरियाणा के शीर्षस्थ साहित्यकारों में शुमार रहे हैं, जिनकी हिन्दी व हरियाणवी में 10 पुस्तकें सभी लेखन विधाओं में प्रकाशित हुई हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें पंडित लखमीचंद सम्मान (2009)व महाकवि सूरदास सम्मान(2013) से विभूषित किया गया। श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार से भी उनके पिता को अलंकृत किया जा चुका है। पारिवारिक परम्परा और संस्कारों से सिक्त साहित्य के क्षेत्र में भी हैं। परिवार से मिली साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ा रहे डा. शिवकांत शर्मा भी बचपन से ही इस क्षेत्र में अभिरुचि रखने लगे थे, जिसके कारण आज वह खुद पारिवारिक परम्परा और संस्कारों को लेकर साहित्य के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ा रहे हैं। हिंदी गीत, हरियाणवी गीत, कविता, दोहे और ग़ज़लों के साथ उनकी कहानी लेखन में भी गहन अभिरुचि रखने वाले डा. शिवकांत शर्मा ने अपनी पहली रचाना एक कविता के रुप में महज 16 साल की आयु में लिख ड़ाली थी। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के बाद शुरु हुई उनकी साहित्यिक यात्रा अनवरत जारी है। उनकी सर्वप्रिय विधा गीत लेखन है। अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर एमबीबीएस, एमडी की शैक्षणिक डिग्रियां हासिल करके एक छाती रोग भिवानी में अस्पताल का संचालन करके वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ के रुप में स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे हैं। बकौल डा. शिवकांत शर्मा, साहित्य जगत की शुरुआत में उन्होंने नीरज के गीतों से प्रेरित होकर अनेक गीत व कुछ कविताएं लिखीं, जिनका प्राणतत्व प्रेम भाव व प्रणय केन्द्रित रहा है। उनकी रचनाए कॉलेज मैगजीन में भी छपती रही। इसी बीच रोहतक से डॉ श्याम सखा श्याम के संपादन में प्रकाशित श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका 'मसि-कागद' में एक गीत छपा। उन्हीं दिनों छोटी बहन की ताज़ा कही दो ग़ज़लें भी छपीं, जिन्हें कई स्थापित व वरिष्ठ साहित्यकारों ने बहुत सराहा। उनका साहित्य क्षेत्र में लेखन के प्रति ऐसे में आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था, जब कुछ बेहद वरिष्ठ ग़ज़लकारों व लेखकों ने व्यक्तिगत पत्र लिखकर उनकी रचनाओं की प्रशंसा करके प्रोत्साहित किया। ऐसे पत्रों को वे आज भी धरोहर के रुप में संजोए हुए हैं। वर्ष 1985 में उनकी नियुक्ति भिवानी के सरकारी अस्पताल में हुई, जिसके बाद उन्हें अनेक साहित्यिक अनुष्ठानों में भाग लेने का मौका मिलने लगा। यहां के शायरों के सम्पर्क व प्रभाव में आकर उनकी ग़ज़ल लेखन में रुचि और गहराती चली गई, हालांकि उनका गीत लेखन भी निरंतर चलता रहा। साहित्यिक मंच मिलने से अपनी रचनाएं सुनाने व और गुणी मित्रों की रचनाएं सुनने से लेखन में सुधार व निखार आया। उन्होंने बताया कि प्रारंभिक प्रेम भाव केन्द्रित रचनाओं के बाद उनके लेखन के मूल भाव में मुख्यतया: सामाजिक सरोकार, समसामयिक चिंतन, व्यवस्था से जूझते मानवीय संघर्ष व भारतीय मूल्यों के संरक्षण व संवर्धन जैसे गंभीर विषय रहे हैं। वहीं पिछले कुछ समय से हरियाणवी ग़ज़ल में विशेष रुचि होने पर उन्होंने कुछ ग़ज़लें ठेठ हरियाणवी भाषा में भी लिखी और साहित्यिक मंचों से सुनाए जाने पर उन्हें लोकप्रियता मिली, जिन्हें सराहना भी मिली। मसलन आकाशवाणी हिसार से प्रसारित हरियाणवी ग़ज़ल 'बाबा बणज्या' को एक सप्ताह में ही करीब 30 हजार प्रशंसक सामने आए। डा. शिवकांत ने आकाशवाणी, हिसार दूरदर्शन, जनता टीवी आदि चैनलों पर आयोजित विभिन्न मुशायरों व कवि सम्मेलनों में सहभागिता की है और अखिल भारतीय 'ग़ज़ल कुम्भ' में कई बार ग़ज़ल पाठ किया।
आधुनिक युग में विमुख हुआ साहित्य
प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि डा. शिवकांत शर्मा का आधुनिक युग में साहित्य के सामने आ रही चुनौतियों को लेकर कहना है कि हमारे साहित्य का बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है, जो आज का दौर में अनेक कारणों से उपेक्षित है। इसका कारण सोशल मीडिया की विस्तारित लोकप्रियता, बढ़ते पाश्चात्य प्रभाव, मनोरंजन प्रधान मानसिकता आदि है, जिसकी वजह से समाज के बड़े हिस्से को स्तरीय व संस्कारित साहित्य से विमुख किया है। मंचों से कुछ कवि मित्रों की सस्ती लोकप्रियता हेतु की गई फ़ूहड़ चुटकुलेबाजी व विकृत मनःस्थिति के कुछ श्रोताओं द्वारा उन्हें सराहना देने से सामाजिक सरोकारों से जुड़े कवियों का मन उद्वेलित होता है और वे भीतर ही भीतर कुंठित महसूस करने लगते हैं। जहां तक युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति अनुराग पैदा करने का सवाल है उसके लिए स्कूल स्तर पर उन्हें अपनी समृद्ध सांस्कृतिक व साहित्यिक धरोहर से परिचित करवाना आवश्यक है। ऐसे में युवा पीढ़ी को स्कूल व कॉलेजों स्तर पर कविता लेखन प्रतियोगिताएं और कार्यशाला आयोजित प्रोत्साहित करना होगा, जिससे आकाशवाणी व दूरदर्शन से युवा केन्द्रित साहित्यिक गतिविधियां बढ़ाने की आवश्यकता है।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि डा. शिवकांत शर्मा की प्रकाशित पुस्तकों में हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से एक ग़ज़ल संग्रह 'दर्द की दहलीज़ से' प्रमुख रुप से सुर्खियों में है, जिसमें 84 गज़लें शामिल हैं। जबकि उनका एक ग़ज़ल संग्रह व गीत संग्रह प्रकाशाधीन हैं। ग़ज़ल संग्रह 'दर्द की दहलीज़ से' की भूमिका वरिष्ठ शायर ज़मीर दरवेश ने लिखी है। उनके लिखे गीत ग़ज़लें और अन्य रचनाएं राष्ट्रीय पत्र,पत्रिकाओं के अलावा काव्य संग्रहों में संकलित होकर प्रकाशित हुई हैं।
पुरस्कार व सम्मान
साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए डॉ. शिवकान्त शर्मा को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा उनके ग़ज़ल संग्रह 'दर्द की दहलीज़ से' को सर्वश्रेष्ठ कृति सम्मान से नवाजा है। वहीं वे राज्यकवि उदयभानु 'हंस' कविता सम्मान से भी अलंकृत हो चुके है। इसके अलावा उन्हें विशिष्ट साहित्यिक अलंकरण, भिवानी रत्न, साहित्य कौस्तुभ सम्मान, ग़ज़ल-गौरव सम्मान, पं. देवराज संधीर स्मृति सम्मान, पंडित माधव मिश्र भिवानी गौरव सम्मान जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें साहित्यिक मंच से भी अनेक पुरस्कार मिले हैं। वहीं चिकित्सा के क्षेत्र में भी डा. शिवकांत को राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के हरियाणा सरकार द्वारा सम्मानित व हरियाणा के 'ब्रांड एम्बेसडर' नियुक्त कर चुकी है और भारतीय छाती रोग सोसायटी की हरियाणा ईकाई द्वारा 'लीजैंड अवार्ड' से सम्मानित कर चुकी है। स्कूली शिक्षा के दौरान वैश्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल के सर्वश्रेष्ठ छात्र सम्मान से तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है।
28Apr-2025