सोमवार, 28 अप्रैल 2025

साक्षात्कार: साहित्य के बिना समाज की कल्पना संभव नहीं: डा. शिवकांत शर्मा

चिकित्सा पेशे के वावजूद विरासत में मिले साहित्य के संवर्धन में जुटे 
           व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. शिवकान्त शर्मा 'शिव' 
जन्मतिथि: 23 जून 1958 
जन्म स्थान: गॉंव पेटवाड़ (हिसार) 
शिक्षा: एम.बी.,बी. एस, एम.डी. 
सम्प्रति:चिकित्सक,साहित्यकार एवं कवि 
संपर्क: कान्त हस्पताल, नजदीक रोहतक गेट, भिवानी, मोबा. 9896364315 
--BY-ओ.पी. पाल 
भारतीय संस्कृति और सामाजिक परंपराओं को इस आधुनिक युग में जीवंत रखने की चुनौतियों से निपटने के लिए लेखक, कवि, गजलकार और साहित्यकार अपनी अलग अलग विधाओं में साहित्य संवर्धन करने में जुटे हैं। साहित्य से जुड़े विद्वानों में ऐसे ही साहित्यकारों में डा. शिवकांत शर्मा भी शुमार है, जो समाज को नई दिशा देने के मकसद से चिकित्सक होने के साथ साहित्यिक साधना करते आ रहे हैं। उन्होंने सामाजिक सरोकार, समसामयिक चिंतन, व्यवस्था से जूझते मानवीय संघर्ष व भारतीय मूल्यों के संरक्षण व संवर्धन जैसे गंभीर मुद्दे अपने लेखन के मूल भाव में समाहित किये हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में चिकित्साविद् एवं कवि व गजलकार डा. शिवकांत शर्मा 'शिव' ने कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं का जिक्र किया है, कि साहित्य के बिना समाज की कल्पना करना बेमाने है। 
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रियाणा में छोटी काशी के नाम से पहचाने जाने वाले भिवानी में पेशे से चिकित्सक एवं साहित्यकार व कवि के रुप में लोकप्रिय डॉ. शिवकान्त शर्मा का जन्म हिसार जिले के गॉंव पेटवाड़ में मदनगोपाल शास्त्री और श्रीमती शशि देवी के घर में 23 जून 1958 को हुआ। उनके दादा पंडित रामप्रसाद उस समय के सुप्रसिद्ध लोककवि के रुप में प्रसिद्ध रहे हैं, जिन्होंने अनेक खंडकाव्य लिखे और वे सनातन के प्रबल प्रचारक व लोकप्रिय भजनोपदेशक भी थे। जबकि उनके पिता मदन गोपाल शास्त्री भी हरियाणवी संस्कृति के पुरोधा के रुप में हरियाणा के शीर्षस्थ साहित्यकारों में शुमार रहे हैं, जिनकी हिन्दी व हरियाणवी में 10 पुस्तकें सभी लेखन विधाओं में प्रकाशित हुई हैं। हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा उन्हें पंडित लखमीचंद सम्मान (2009)व महाकवि सूरदास सम्मान(2013) से विभूषित किया गया। श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार से भी उनके पिता को अलंकृत किया जा चुका है। पारिवारिक परम्परा और संस्कारों से सिक्त साहित्य के क्षेत्र में भी हैं। परिवार से मिली साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ा रहे डा. शिवकांत शर्मा भी बचपन से ही इस क्षेत्र में अभिरुचि रखने लगे थे, जिसके कारण आज वह खुद पारिवारिक परम्परा और संस्कारों को लेकर साहित्य के क्षेत्र में अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ा रहे हैं। हिंदी गीत, हरियाणवी गीत, कविता, दोहे और ग़ज़लों के साथ उनकी कहानी लेखन में भी गहन अभिरुचि रखने वाले डा. शिवकांत शर्मा ने अपनी पहली रचाना एक कविता के रुप में महज 16 साल की आयु में लिख ड़ाली थी। मेडिकल कॉलेज में प्रवेश के बाद शुरु हुई उनकी साहित्यिक यात्रा अनवरत जारी है। उनकी सर्वप्रिय विधा गीत लेखन है। अपनी विलक्षण प्रतिभा के बल पर एमबीबीएस, एमडी की शैक्षणिक डिग्रियां हासिल करके एक छाती रोग भिवानी में अस्पताल का संचालन करके वरिष्ठ छाती रोग विशेषज्ञ के रुप में स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे हैं। बकौल डा. शिवकांत शर्मा, साहित्य जगत की शुरुआत में उन्होंने नीरज के गीतों से प्रेरित होकर अनेक गीत व कुछ कविताएं लिखीं, जिनका प्राणतत्व प्रेम भाव व प्रणय केन्द्रित रहा है। उनकी रचनाए कॉलेज मैगजीन में भी छपती रही। इसी बीच रोहतक से डॉ श्याम सखा श्याम के संपादन में प्रकाशित श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका 'मसि-कागद' में एक गीत छपा। उन्हीं दिनों छोटी बहन की ताज़ा कही दो ग़ज़लें भी छपीं, जिन्हें कई स्थापित व वरिष्ठ साहित्यकारों ने बहुत सराहा। उनका साहित्य क्षेत्र में लेखन के प्रति ऐसे में आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था, जब कुछ बेहद वरिष्ठ ग़ज़लकारों व लेखकों ने व्यक्तिगत पत्र लिखकर उनकी रचनाओं की प्रशंसा करके प्रोत्साहित किया। ऐसे पत्रों को वे आज भी धरोहर के रुप में संजोए हुए हैं। वर्ष 1985 में उनकी नियुक्ति भिवानी के सरकारी अस्पताल में हुई, जिसके बाद उन्हें अनेक साहित्यिक अनुष्ठानों में भाग लेने का मौका मिलने लगा। यहां के शायरों के सम्पर्क व प्रभाव में आकर उनकी ग़ज़ल लेखन में रुचि और गहराती चली गई, हालांकि उनका गीत लेखन भी निरंतर चलता रहा। साहित्यिक मंच मिलने से अपनी रचनाएं सुनाने व और गुणी मित्रों की रचनाएं सुनने से लेखन में सुधार व निखार आया। उन्होंने बताया कि प्रारंभिक प्रेम भाव केन्द्रित रचनाओं के बाद उनके लेखन के मूल भाव में मुख्यतया: सामाजिक सरोकार, समसामयिक चिंतन, व्यवस्था से जूझते मानवीय संघर्ष व भारतीय मूल्यों के संरक्षण व संवर्धन जैसे गंभीर विषय रहे हैं। वहीं पिछले कुछ समय से हरियाणवी ग़ज़ल में विशेष रुचि होने पर उन्होंने कुछ ग़ज़लें ठेठ हरियाणवी भाषा में भी लिखी और साहित्यिक मंचों से सुनाए जाने पर उन्हें लोकप्रियता मिली, जिन्हें सराहना भी मिली। मसलन आकाशवाणी हिसार से प्रसारित हरियाणवी ग़ज़ल 'बाबा बणज्या' को एक सप्ताह में ही करीब 30 हजार प्रशंसक सामने आए। डा. शिवकांत ने आकाशवाणी, हिसार दूरदर्शन, जनता टीवी आदि चैनलों पर आयोजित विभिन्न मुशायरों व कवि सम्मेलनों में सहभागिता की है और अखिल भारतीय 'ग़ज़ल कुम्भ' में कई बार ग़ज़ल पाठ किया। 
आधुनिक युग में विमुख हुआ साहित्य 
प्रसिद्ध साहित्यकार और कवि डा. शिवकांत शर्मा का आधुनिक युग में साहित्य के सामने आ रही चुनौतियों को लेकर कहना है कि हमारे साहित्य का बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है, जो आज का दौर में अनेक कारणों से उपेक्षित है। इसका कारण सोशल मीडिया की विस्तारित लोकप्रियता, बढ़ते पाश्चात्य प्रभाव, मनोरंजन प्रधान मानसिकता आदि है, जिसकी वजह से समाज के बड़े हिस्से को स्तरीय व संस्कारित साहित्य से विमुख किया है। मंचों से कुछ कवि मित्रों की सस्ती लोकप्रियता हेतु की गई फ़ूहड़ चुटकुलेबाजी व विकृत मनःस्थिति के कुछ श्रोताओं द्वारा उन्हें सराहना देने से सामाजिक सरोकारों से जुड़े कवियों का मन उद्वेलित होता है और वे भीतर ही भीतर कुंठित महसूस करने लगते हैं। जहां तक युवा पीढ़ी में साहित्य के प्रति अनुराग पैदा करने का सवाल है उसके लिए स्कूल स्तर पर उन्हें अपनी समृद्ध सांस्कृतिक व साहित्यिक धरोहर से परिचित करवाना आवश्यक है। ऐसे में युवा पीढ़ी को स्कूल व कॉलेजों स्तर पर कविता लेखन प्रतियोगिताएं और कार्यशाला आयोजित प्रोत्साहित करना होगा, जिससे आकाशवाणी व दूरदर्शन से युवा केन्द्रित साहित्यिक गतिविधियां बढ़ाने की आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
वरिष्ठ साहित्यकार एवं कवि डा. शिवकांत शर्मा की प्रकाशित पुस्तकों में हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से एक ग़ज़ल संग्रह 'दर्द की दहलीज़ से' प्रमुख रुप से सुर्खियों में है, जिसमें 84 गज़लें शामिल हैं। जबकि उनका एक ग़ज़ल संग्रह व गीत संग्रह प्रकाशाधीन हैं। ग़ज़ल संग्रह 'दर्द की दहलीज़ से' की भूमिका वरिष्ठ शायर ज़मीर दरवेश ने लिखी है। उनके लिखे गीत ग़ज़लें और अन्य रचनाएं राष्ट्रीय पत्र,पत्रिकाओं के अलावा काव्य संग्रहों में संकलित होकर प्रकाशित हुई हैं।
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य के क्षेत्र में श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए डॉ. शिवकान्त शर्मा को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा उनके ग़ज़ल संग्रह 'दर्द की दहलीज़ से' को सर्वश्रेष्ठ कृति सम्मान से नवाजा है। वहीं वे राज्यकवि उदयभानु 'हंस' कविता सम्मान से भी अलंकृत हो चुके है। इसके अलावा उन्हें विशिष्ट साहित्यिक अलंकरण, भिवानी रत्न, साहित्य कौस्तुभ सम्मान, ग़ज़ल-गौरव सम्मान, पं. देवराज संधीर स्मृति सम्मान, पंडित माधव मिश्र भिवानी गौरव सम्मान जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें साहित्यिक मंच से भी अनेक पुरस्कार मिले हैं। वहीं चिकित्सा के क्षेत्र में भी डा. शिवकांत को राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम के हरियाणा सरकार द्वारा सम्मानित व हरियाणा के 'ब्रांड एम्बेसडर' नियुक्त कर चुकी है और भारतीय छाती रोग सोसायटी की हरियाणा ईकाई द्वारा 'लीजैंड अवार्ड' से सम्मानित कर चुकी है। स्कूली शिक्षा के दौरान वैश्य सीनियर सेकेंडरी स्कूल के सर्वश्रेष्ठ छात्र सम्मान से तत्कालीन मुख्यमंत्री चौधरी बंसीलाल द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। 
28Apr-2025

सोमवार, 21 अप्रैल 2025

चौपाल: सामाजिक निर्माण में फिल्मों का अहम योगदान: अशोक वर्मा

फिल्म अभिनेता के साथ फिल्म निर्माता के रुप में बनाई पहचान 
             व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. अशोक वर्मा 
जन्मतिथि: 6 सितंबर 1982 
जन्म स्थान: गांव रामकली, जिला जींद(हरियाणा)
शिक्षा: ग्रेज्युएट 
संप्रत्ति: फिल्म निर्माता और अभिनेता 
संपर्क: सफीदो, जिला जींद(हरियाणा), मोबा. 9817605572 
-- BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी सिनेमा के दौर को जीवंत करने के लिए फिल्म और लोक कला से जुड़े कलाकारों ने अपनी संस्कृति एवं परंपराओं को जीवंत करने के लिए बॉलीवुड तक का सफर तय किया है। ऐसे कलाकारों में पिछले लंबे समय से हरियाणवीं फिल्म उद्योग से जुड़े अभिनेता अशोक वर्मा भी शुमार है, जिन्होंने समाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर फिल्मों, वेब सरीज और सीरियलों में अपनी अभिनय की कला के साथ फिल्म निर्माता के रुप में भी लोकप्रियता हासिल की है। हिंदी, पंजाबी और हरियाणवी सिनेमा में लेखन और अभिनय के साथ हास्य कलाकार के रुप में उन्होंने हिरयाणवी संस्कृति और सामाजिक सरोकार से जुड़ मुद्दों को सर्वपरि रखते हुए युवा पीढ़ी को भी सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। फिल्म निर्माता और अभिनेता अशोक वर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें फिल्मों की पटकथा का सकारात्मक दृष्टिकोण समाज के निर्माण में अहम भूमिका निभा सकता है। 
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 हरियाणवी फिल्म निर्माता और अभिनेता अशोक वर्मा का जन्म 6 सितंबर 1982 को जींद जिले के गांव रामकली में धर्मवीर वर्मा और ओमपति देवी के घर में हुआ। उनके पिता जींद के सफीदों में हरियाणा स्वास्थ्य विभाग में फोरमैन के पद पर तैनात रहे, जहां वह बचपन से ही परिवार के साथ रहते है। जबकि उनके बड़े भाई चिकित्सक के पेशे में है। घर परिवार में भले ही कोई सांस्कृतिक या कला का माहौल नहीं था, लेकिन अशोक वर्मा को बचपन से ही सांस्कृतिक गतिविधियों में रुचि थी। स्कूल के दौरान वह बाल सभाओं में होने वाले वाले कार्यक्रमों में हिस्सेदारी करते थे। उन्होंने बचपन में ही फिल्मों में काम करने का सपना देखा। यही कारण था कि जब भी वि टीवी पर प्रसारित होने वाली फिल्मों के डायलॉग बोलने का अभ्यास करके अपनी कला को अंजाम देने का प्रयास करते। बकौल अशोक वर्मा, साल 2001 में वह जब लैब तकनीशियन की परीक्षा देने चंडीगढ़ गया, तो पता चला कि पंजाबी हास्य कलाकार जसपाल भट्टी भी यहीं रहते हैं और उन्होंने उनसे मुलाकात करके अपनी कला को साझा किया। उन्होंने अपने साथ काम करने का मौका दिया और यहीं से उनका पंजाबी सीरियल प्रोफेसर मनी प्लांट से कला के क्षेत्र में करियर हुआ। फिल्म और कला के क्षेत्र में उनके माता पिता व भाई समेत परिवार के सभी सदस्यों ने उनको प्रोत्साहित किया और उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने में हर कदम पर सहयोग किया। अभिनेता अशोक वर्मा ने बचपन में फिल्मों में काम करने का जो सपना संजोया था उसी लक्ष्य के साथ वह 2005 में मुंबई पहुंच गये, जहां उन्होंने अपने एक दोस्त एवं टीवी सीरियल डायरेक्टर अभिषेक भोला के कहने पर हिंदी बॉलीवुड फिल्म 'गोल्डन बॉयज' के लिए ऑडिशन दिया, जिसके लिए उन्हें डॉक्टर के किरदार के रुप में असरानी और मुकेश तिवारी जैसे कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला। इसी दौरान उन्होंने स्टार प्लस टीवी धारावाहिक में बॉलीवुड अभिनेता के साथ भी अभिनय करने के अलावा हिंदी सीरियल लापतागंज में काम किया, लेकिन कुछ परिवारिक समस्याओं के कारण उन्हें वापस हरियाणा आना पड़ा। उसके बाद उन्होंने आयुर्वेदिक चिकित्सा की और उसके बाद साल 2010 में फिर बॉलीवुड फिल्मों में काम करने के जज्बे के साथ फिर मुंबई जाकर काम किया। उसके बाद साल 2018 से उन्होंने हरियाणा फिल्म उद्योग में काम करना शुरु कर दिया। उन्होंने हरियाणवी वेब सीरीज़ भूतां का बटेऊ, फिल्मी थाना, दो जुगाड़ी, पहलवान बहु, फंडू सरपंच, फंडू का स्कूल, टाइम पास, धर्मे का कुनबा आदि कई अन्य फिल्मों में हास्य कला का प्रदर्शन किया। तब से वह लगातार हरियाणवी फिल्म उद्योग में काम कर रहे हैं। उन्होंने फिल्म निर्माण और अभिनेता के रुप में हमेशा समाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर फोकस करते हुए ऐसी पटकथाओं पर आधारित फिल्मों का निर्माण और किरदार निभाया है, जिससे समाज को सकारात्मक संदेश दिया जा सके और समाज में अपनी संस्कृति, भाषा, रीति रिवाज, खान-पान और परंपराओं को संरक्षित रखा जा सके। ऐसी परिवारिक और प्रेरणा दायक फिल्मों को लोगों ने पसंद भी किया है और फिल्मों को अवार्ड भी मिले हैं। 
ऐसे मिली अभिनय को मंजिल 
हरियाणवीं फिल्म उद्योग से जुड़े अभिनेता अशोक वर्मा ने पिछले दो दशक से ज्यादा समय के दौरान हरियाणवी, पंजाबी और हिंदी सिनेमा में काम करते हुए फिल्म निर्माता और फिल्म पटकथा लेखक के रुप में भी लोकप्रियता हासिल की है। अब तक 15 से ज्यादा फिल्मों में अभिनय करने के साथ उन्होंने करीब 20 वेब सीरीज में भी प्रमुख अभिनेता का किरदार निभाया उनके द्वारा निर्मित हिट फिल्मों में पुनर्जन्म, रमेश रोशनी की लव स्टोरी, वीर किसान, स्वर्ग v/s नरक, भाई चारा आदि में हरियाणवी फिल्म पुनर्जन्म सुपर हिट फिल्म रही हैं, जिनमें उन्होंने अपने अभिनय की कला को भी दिखाया है। लोकप्रिय फिल्म निर्माता एवं अभिनेता की आने वाली फिल्मों में मासूम शर्मा, यशपाल शर्मा व सपना चौधरी के साथ फिल्म 'लाइसेंस' मुकेश दहिया के साथ फिल्म 'हलालपुर' के अलावा प्रीत पराई, कमीनो के सुपर स्टार, धीमा जहर, हैलो पुलिस, गडरिया, हॉरर, अनामिका होंगी। वहीं सुमन सेन और अनामिका बावा के साथ फिल्म 'एक रहस्य' और फिल्म 'रोहतक कब्ज़ा' हैं, जिसमें उन्होंने आशुमन प्रोडक्शन से खुद प्रोडूसर की भूमिका भी निभाई है। रोहतक कब्जा में विक्की काजला, अंजलि राघव और हरियाणा के बहुत से कलाकार अपने अलग अलग किरदार में नजर आएंगे। इसके अलावा अशोक वर्मा ने अमित सैनी रोहतकिया, मासूम शर्मा, एमडी, केडी, देव कुमार देवा, सुरेंदर रोमियो, मनीष मस्त, जीतू जी, विक्की काजला अन्नू कादयान, वीर साहू, सपना चौधरी आदि हरियाणवी टॉप सिंगरों के साथ भी करीब 400 हरियाणवी गानो में बतौर मॉडल व अभिनेता काम किया है। वहीं सरकार, राजनीतिक और विभिन्न कंपनियों के विज्ञापन फिल्मों में भी एक्टिंग की है। 
जीवंत हुआ हरियाणवी फिल्म उद्योग 
इस सोशल मीडया और आधुनिक युग में अभिनय, लोक कला, संगीत आदि की क्या स्थिति को लेकर अशोक वर्मा का कहना है कि हरियाणवी म्यूजिक इंडस्ट्री ने पूरे देश और विदेशो में अपनी छाप छोड़ी है और हर जगह हरियाणवी गाने बजते नजर आते हैं। यदि अगर हरियाणवी फिल्म इंडस्ट्री की बात करे, तो बहुत पहले हरियाणवी फिल्मो का दौर था, फिर बीच में कुछ धीमा हो गया, लेकिन फिल्म अभिनेता यशपाल शर्मा के निर्देशन बनी हरियाणवी फिल्म 'दादा लख्मी' ने हरियाणवी फिल्मों को ऐसी दिशा दी है कि अब लगातार अलग अलग प्लेट फार्म पर फिल्मों, सीरियल व वेब सीरीज ने हरियाणवी फिल्म उद्योग को जीवंत कर दिया है। यही कारण है कि अपनी संस्कृति को लेकर आज का युवा भी सोशल मीडिया रील के जरिए इस क्षेत्र मंय अपनी पहचान बनाने का प्रयास करने लगा है। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणवी फिल्म निर्माता एवं अभिनेता अशोक वर्मा को उनकी फिल्म 'धीमा जहर' को हाल ही में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने रोहतक के एमडीयू में आयोजित हरियाणा फिल्म महोत्सव में बेस्ट एडिटर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। ल 2022 में ग्लोबल आईकोनिक अवार्ड से भी नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें स्कूल, कालेज और अन्य कार्यक्रमों में अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। 
21Apr-2025

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

साक्षात्कार: समाजहित में साहित्यक अध्ययन का खास महत्व: डा. अशोक अत्री

बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक की समस्याओं को बनाया रचनाओं का हिस्सा 
           व्यक्तिगत परिचय
 नाम: डा. अशोक कुमार अत्री 
जन्मतिथि: 09 जनवरी 1974 
जन्म स्थान: गांव ऐंचरा खूर्द, जींद (हरियाणा) 
शिक्षा: बी.ए, बी.एड. एमए, एम.फिल, पीएच.डी. 
संप्रत्ति: असिस्टेंट प्रोफेसर(राजनीतिक शास्त्र), लेखक, साहित्यकार 
सपंर्क: मकान न 704, सैक्टर 19, हुड्डा, कैथल, मोबा. 9416558150/7015589827 
BY--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में साहित्य साधना करते आ रहे लेखकों ने समाज को नई दिशा देने के मकसद से अपने रचना संसार को दिशा दे रहे हैं। ऐसे ही साहित्यकारों में शिक्षाविद् डा. अशोक कुमार अत्री भी अपनी लेखनी से सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों के अलावा प्रकृति, पर्यावरण और सभ्यता तथा रीति रिवाजों को लेकर बच्चों से लेकर बुजुर्गो तक की समस्याओं को अपनी रचनाओं में समाहित करके संस्कृति के संवर्धन करने में जुटे हुए हैं। एक शिक्षक के रुप में वे कालेज में सांस्कृतिक गतिविधियों की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए युवा पीढ़ी को साहित्य से जुड़े रहने सीख देकर उन्हें विशेष रुप से हरियाणवी संस्कृति के देश विदेशों में बढते प्रचार एवं प्रभाव का मौका दे रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान शिक्षाविद् एवं साहित्यकार डा. अशोक कुमार अत्री ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर कुछ ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें साहित्य समाज को सकारात्मक संदेश देने में सक्षम है।
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रियाणा के कैथल स्थित आरकेएसडी कॉलेज में सहायक प्रोफेसर के रुप में कार्यरत डा. अशोक कुमार अत्रि का जन्म 09 जनवरी 1974 को जींद जिले के गांव ऐचरा खुर्द में मामन राम व श्रीमती शांति देवी के घर में हुआ। उनका यह गांव साहित्यिक चेतना के स्थल के रूप में समृद्ध एवं प्रसिद्ध रहा है। यहां गांव की सबसे बड़ी हस्ती के रुप में पं जगदीश चन्द्र वत्स हरियाणवी कथा एवं सांग लेखन में शास्त्रीय स्वरुप के आधार माने जा सकते हैं। अशोक के दादा पं ज्ञानीराम हमारे क्षेत्र के प्रसिद्ध गायक रहे हैं, तो उनकी दादी भी लोक सत्संग में लीन रहती थी। उनके पिता पं मामनराम एवं चाचा पं राजेंद्र शास्त्री रामलीला के मंजे हुए कलाकार रहे हैं। मसलन उनके परिवार में साहित्य और सांस्कृतिक माहौल रहा है। लेकिन उनका साहित्यिक सफर बहुत बाद में शुरू हुआ यानी शिक्षण कार्य में आने के बाद ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि उन्हें लेखन करना चाहिए। हालांकि वह तुकबंदी कर लेते थे अर्थात कोई शेर या कविता करता था तो वह उसी लहजे में कुछ लाईने जोड़ लेते थे। उन्होंने पहली बार अपनी भतीजी मन्नू के लिए पहली कविता लिखी थी। बकौल डा. अशोक अत्रि, उन्हें पढाई के दौरान से ही कविताएं पंसद रही हैं, जिसमें अयोध्या सिंह उपाध्याय की 'एक बूँद' उनकी पंसदीदा कविता रही। उसके बाद पढते हुए अंग्रेजी कविता रोड नोट टेकन, डेफोडिल्स एवं गो एंड कैच ए फालिंग स्टार उन्हें बहुत पसन्द आई। उनका पहला कविता संग्रह 'दिल चाहता कुछ बताना था' जिसमें उनके जीवन संघर्ष से जुडी यादें समाहित है और इसकी थीम कविता 'वो दिन' एक लम्बी कविता है। इस संग्रह में जीवन के विभिन्न आयामों से सम्बंधित कविताएं शामिल हैं। विशेषरूप से हरियाणावी संस्कृति एवं उसके विभिन्न पक्षों को भी इसमें समायोजित किया गया है। उन्होंने बताया कि जब उनके चचेरे भाई आनंद को उनके द्वारा लेखन करने का पता लगा, तो उन्होंने अपना पब्लिकेशन ही शुरू किया एवं उनके कविता संग्रह की हजारों प्रतियाँ छाप दी। उन्होंने विशेष रुप से गांव का तालाब कविता का जिक्र करते हुए बताया कि ग्रामीण समाज में तालाब गांव की जीवन रेखा होते थे, कपडे धोना, नहाना, पशुओं को नहलाना, महिलाओं के द्वारा रीति रिवाज़ सभी इससे जुड़े होते थे, लेकिन अब ये ऊझाड, बेजान पडे हैं, कब्जाग्रस्त हैं इसलिए यह मुद्दा भी सामाजिक सरोकार से जुड़ा है। इसी प्रकार बदलते परिवेश में सामाजिक और तीज त्यौहार व रीति रिवाज की चर्चा को लेकर भी उनके लेखन का फोकस रहा है, जिसके लिए उन्होंने उन्होंने ग्रामीण जीवन, सामूहिक परिवार, त्यौहारों का परम्परावादी रूप, हरियाणवी वेशभूषा, खानपान, उभरती समस्याओ पर फोकस करते हुए कविता एवं कहानी लिखने का प्रयास किया है। मसलन महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित कविता 'गांधी अकेला' एक और अन्य महत्वपूर्ण रचना में उन्होंने समकालीन समय में गांधी के आदर्शो के प्रति जनता की उदासीनता को उजागर किया है। इसके अलावा प्रकृति से जुड़ी कविताओं में पर्यावरण की समस्या को उठाया गया है। वहीं समाज की सजगता के लिए पति-पत्नी सम्बन्धों, नौजवानों और बच्चों पर भी उन्होंने कविताएं लिखी हैं। उन्होंने बताया कि जीवन में उतार चढ़ाव आना भी स्वाभाविक है और उनके सामने भी स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याएं उभरी और घबराहट से बचने का अलग अलग तरीका ढूंढने लगा। इसके बाद उन्होंने कविता लेखन के साथ कहानी भी लिखना शुरू किया, तो उन्हें राहत व शांति मिली। इसके बाद उनका कहानी संग्रह 'फिर सुबह' और उसके बाद कविता संग्रह 'आ अब लौट चलें प्रकृति की ओर' प्रकाशित हुआ। उनके साहित्य में हरियाणवी संस्कृति के अनछुए पहलूओं को महत्व दिया गया है। उन्होंने अपने कश्मीर, गोवा, शिमला, नैनीताल, इंदौर, आईजोल, रांची, मनाली, पांडीचेरी, जयपुर, मुम्बई, भोपाल, कलकत्ता, लखनऊ, अमृतसर, वैष्णो देवी, रामेश्वरम एवं अजमेर आदि यानी भारत भ्रमण को भी हास्य प्रदान अनुभवों से जोड़कर यात्रा वर्तांत के रुप में पाठकों तक एक कृति को पहुंचाया है। वहीं एक शिक्षक के रूप में महाविद्यालय में आज भी उनके पास सास्कृतिक गतिविधियों की जिम्मेदारी हैं, जिसमें महाविद्यालय राज्यस्तरीय रत्नावली कार्यक्रम का विजेता होने के कारण वह हरियाणवी संस्कृति पर ज्यादा जोर देते आ रहे हैं। नई पीढ़ी को वे विशेषरूप से सांग, रिचवल, चौपाल, नृत्य को विशेष तव्वजो एवं फुलझड़ी एवं बिंदरवाल बनाना जैसी विधाएं सीखा रहें हैं। खासबात ये भी है कि डॉ. अशोक कुमार अत्री हरियाणा के एक मात्र ऐसे साहित्यकार एवं लेखक हैं, जिन्होंने तुर्की के एसआईआईआरटी विश्वविद्यालय सिरट में हुई अंतर्राष्ट्रीय कांफ्रेंस में अपना शोध-पत्र ‘ट्रैड रूट पालिटिक्स:द इंडियन व्यू’ प्रस्तुत किया था, जिसमें ग्रुप-20 सम्मेलन में भारत द्वारा प्रस्तावित ‘इंडिया मिडल ईस्ट यूरोप कोरिडोर’ पर सहमति एवं इससे संबंधित उभरी राजनीति को जानने की कोशिश शामिल है। 
बदलाव के दौर मे हरियाणवी साहित्य 
साहित्यकार एवं कवि डा. अशोक अत्री का इस आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौती को लेकर कहना है कि आज खासतौर से हरियाणवी साहित्य बदलाव के दौर से गुजर रहा है। हालांकि इसके दोनों ही पक्ष हैं, जसमें हरियाणवी संस्कृति को बढावा भी मिला है, लेकिन वहीं कुछ अप्रासांगिक तथ्य शामिल होने से विशेष रुप से जातिय श्रेष्ठता, गन संस्कृति का समर्थन एवं लोक परम्परा का अभाव एक नकारात्मक पहलु के रूप कहे जा सकते हैं। ऐसे में इस बात की आवश्यकता है कि साहित्य में गहन अध्ययन मनन करने से ही समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करने पर फोकस होना चाहिए, ताकि समाज में तेजी से उभरती कुरीतियों को दूर करने में मदद मिल सके। इसके लिए हरियाणा के साहित्यकारों एवं कलाकारों को अपनी जड़ो को पहचानने एवं टिके रहने की आवश्यकता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
डा. अशोक कुमार अत्री की प्रकाशित प्रमुख पुस्तकों में कविता संग्रह 'दिल चाहता कुछ बताना था' और 'आ अब लौट चलें प्रकृति की ओर', कहानी संग्रह 'फिर सुबह' के अलावा पुस्तक 'भारत एवं मध्य एशिया के गणराज्य' हैं। जबकि उनकी दो कृति यानी रचना 'ये कौन छायाकार है' और एवं 'यात्रा वृत्तांत' प्रकाशनाधीन है। उनके साहित्य में हरियाणवी संस्कृति के अनछुए पहलूओं को महत्व दिया गया है। वहीं उनकी महात्मा गांधी के दर्शन पर आधारित कविता 'गांधी अकेला' भी सुर्खियों में रही है। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
साहित्यकार डा. अशोक अत्री को साहित्य क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें हरियाणा साहित्य अकादमी ने उनकी पुस्तक के लिए प्रकाशन प्रोत्साहन के लिए नकद राशि दी है, तो वहीं उन्हें साहित्य सभा कैथल से बीबी भारद्वाज समृति सम्मान, हरियाणा संस्कृत अकादमी से प्रशस्ति पत्र, जिला प्रशासन कैथल से जनगणना 2011 में उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र और कोरोना काल में उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मान, अग्रवाल सभा कैथल से साहित्य सम्मान, डीएवी महाविधालय करनाल से सांग विधा के प्रचार प्रसार के लिए सम्मान और एसडी महाविद्यालय पानीपत से विकसित भारत युवा संसद में योगदान के लिए सम्मान जैसे अनेक पुरस्कार व सम्मान से नवाजा गया है। 
14Apr-2025

सोमवार, 7 अप्रैल 2025

चौपाल: सामाजिक व सांस्कृति क्षेत्र में कला का अहम योगदान: चेतना

अभिनय क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ अवार्ड ने दिलाई अभिनेत्री की पहचान 
        व्यक्तिगत परिचय 
नाम: चेतना सारसर 
जन्मतिथि: 25 अक्टूबर 1999 
जन्म स्थान: गांव तलाव, जिला झज्जर (हरियाणा)
शिक्षा: ग्रेजुएट, एक्टिंग एवं एडिटिंग कार्स (सुपवा) 
संप्रत्ति: अभिनय, लेखन 
 संपर्क: गांव तलाव, जिला झज्जर (हरियाणा)। मोबा. 9996523991 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा की समृद्ध संस्कृति के संवर्धन के लिए समाज को सजग करने की दिशा में साहित्यकारों, लेखकों, लोक कलाकारों और गीतकारों जैसी शख्सियतों ने जिस रुप में अपना अहम योगदान दिया है, उससे हरियाणा की पहचान राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बनी है। ऐसे ही हरियाणा की युवा पीढ़ी भी यह साबित करती नजर आ रही है कि कला किसी की मोहताज नहीं है। ऐसी ही कहानी ग्रामीण परिवेश से निकलकर फिल्म जगत में एक अभिनेत्री के रुप में पहचान बनाकर हरियाणा की बेटी चेतना सारसर अपनी अभिनय कला के जुनून को अंजाम दे रही है। खास बात है कि वह केवल एक अभिनेत्री ही नहीं, बल्कि कविताएं और कहानियां तथा फिल्मों की पटकथा लिखकर समाज को सकारात्मक संदेश भी दे रही है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में प्रतिभाशाली अभिनेत्री चेतना सारसर ने कुछ ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें कला सकारात्मक पक्ष समाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में अपना अहम योगदान दे सकता है और वहीं इसी सोच, लगन और मेहनत के बल पर हर इंसान के लिए अपना लक्ष्य को हासिल करना भी संभव है। 
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रियाणा की प्रतिभाशाली अभिनेत्री चेतना सारसर का जन्म 25 अक्टूबर 1999 को झज्जर जिले के तलाव गांव में रोहतास और सुमन लता के घर में हुआ। ग्रामीण परिवेश में लड़कियों के लिए परिवारिक माहौल अलग ही होता है, लेकिन उनके पिता दुकानदार हैं, जो सामाजिक कार्यो में सक्रीय हैं और एक सामाजिक कार्यकर्ता के रुप वे मजदूरों, किसानों और वंचित वर्गों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं। घर परिवार में आर्थिक तंगी और हालातों के कारण चेतना के माता-पिता खुद ज्यादा पढ़ाई नहीं कर सके, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी चेतना को पढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास किया। चेतना की प्रारंभिक शिक्षा झज्जर के एक सरकारी स्कूल में हुई। उन्होंने छठी कक्षा से ही खेलों खासकर ताइक्वांडो में रुचि लेना शुरू किया और बाद में वह राष्ट्रीय स्तर की ताइक्वांडो खिलाड़ी बनकर उभरी। उस समय वह अपने करियर में पुलिस अधिकारी या कोच बनने का सपना देखती थी। उन्होंने झज्जर के ही सरकारी कन्या सीनियर सेकैंडरी स्कूल से 12वीं कक्षा उत्तीर्ण की। बकौल चेतना, सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों यानी अंधविश्वास व कुरीतियों के खिलाफ सामाजिक चेतना जगाने के लिए कुछ कलाकार गांव में आकर नुक्कड नाटक करते थे, तो उनकी एक्टिंग को देखकर उसने भी अभिनय के क्षेत्र में एक्टिंग करने का सपना संजोया। गांव में नाटक मंडलियों के कार्यक्रमों से उनकी अभिनय जैसी कला के प्रति अभिरुचि इतनी गहराती गई कि उसने एक अभिनेत्री बनने का लक्ष्य तय करके जो सपना देखा था, वह आज अभिभूत होता दिख रहा है और वह एक अभिनेत्री के रुप में अपनी पहचान बनाती जा रही है। हालांकि उनके परिवार या सगे संबन्धियों में कहीं तक भी कोई कला या सांस्कृतिक माहौल नहीं था। चेतना ने स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद जब घर में एक्टिंग का कोर्स करने के लिए एक्टिंग इंस्टीट्यूट में दाखिला लेने की इच्छा जताई, तो उनके माता-पिता ने कला के क्षेत्र में जाने के लिए उसका हौंसला बढ़ाया। परिवार के मिले प्रोत्साहन के बाद उसने साल 2017 में रोहतक स्थित पंडित लखमी चंद सुपवा में प्रवेश ले लिया। उन्होंने बताया कि उसे स्कूली समय से ही टीवी सीरियल्स देखना बहुत पसंद रहा और जब भी वह कोई अच्छा सीन देखतीं, तो बाद में आईने के सामने खड़े होकर उसी किरदार निभाने की कोशिश करती रही। धीरे-धीरे उन्हें एक्टिंग करने में अपना वह करियर नजर आने लगा, जो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। सुपवा यूनिवर्सिटी, रोहतक प्रवेश लेने के बाद उनके अभिनय करियर की असली शुरुआत हुई। हालांकि उनका कहना है कि उसने एक्टिंग कोर्स के लिए सुपवा में प्रवेश लिया था, लेकिन कुछ कारणों से उन्हें कोर्स बदलकर एडिटिंग में प्रवेश लेना पड़ा। लेकिन उन्होंने मन में ठान लिया था कि वह अभिनय की कला को कतई नहीं छोड़ेंगी। खास बात ये भी है कि चेतना स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स में लगातार अभिनय करती रहीं, जिससे उन्हें इंडस्ट्री में बाहरी प्रोजेक्ट्स में भी काम करने के मौके मिलने लगे और इसी लगन व मेहनत का नतीजा है कि अभिनय के प्रति जुनून के चलते वह आज उस मुकाम पर है, जो उनका लक्ष्य का रास्ता है।
हरियाणा सिनेमा में योगदान
हरियाणवी सिनेमा में योगदान देकर गौरवान्वित महसूस करती चेतना का कहना है कि वह अब पूरी तरह अपने अभिनय करियर पर फोकस कर रही है और भविष्य में फिल्मों व वेब सीरीज में अपने दमदार अभिनय के जरिए ऐसी सकारात्मक किरदार निभाने का लक्ष्य है, जिससे उनकी भूमिका समाज को अपनी संस्कृति के प्रति संदेशवाहक बन सके। इसके लिए चेतना सारसर सिर्फ एक अभिनेत्री के रुप में ही नहीं, बल्कि वह एक लेखिका के रुप में भी छोटी-छोटी कविताएं और कहानियां लिखती हैं। वहीं उन्होंने कई लघु फिल्मों की पटकथा भी लिखकर अपने करियर को फिल्म निर्देशक और प्रोड्यूसर तक बुलंद करने की योजना को भी आगे बढ़ाया है। 
यहां से मिली मंजिल 
हरियाणा की अभिनेत्री चेतना सारसर ने सुपवा में प्रवेश के दौरान ही फिल्म स्कूल के स्टूडेंट प्रोजेक्ट्स, शॉर्ट फिल्मों और गानों में काम करना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे उसने अपने अभिनय कौशल को निखारने की मुहिम को आगे बढ़ाया। मसलन उसे हरियाणा के चर्चित मिर्चपुर कांड पर आधारित राजेश अमरलाल बब्बर ने निर्देशित वेब सीरीज 'कांड 2010' में अभिनय करने का मौका मिला, जिसमें उसने दलित युवती रीता का किरदार निभाया। सच्ची घटना पर आधारित यह वेब सीरीज खूब देखी गई, जिसमें चेतना की मुख्य भूमिका को दर्शकों ने खूब सराहा। 
बेस्ट एक्टिंग अवार्ड
हरियाणा की उभरती सिने तारिका चेतना को एक अभिनेत्री के रुप में ऐसी पहचान मिली, कि पिछले दिनो ही मुंबई में आयोजित 5वें बॉलीवुड इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल (बीआईएफएफ) में मशहूर अभिनेता मनोज जोशी और सीमा पाहवा के हाथों उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का अवॉर्ड मिला। इस अवार्ड को चेतना ने अपनी माता सुमन लता को समर्पित किया है। चेतना ने मेवात वेब सीरीज के केई एपिसोड में अभिनय करके अपनी कला का लोहा मनवाया है। उन्होंने वेबसीरीज अखाडा, क्राइम पेट्रोल में भी प्रमुख किरदार निभाया है। 
07Apr-2025