सादा जीवन-उच्च विचार को मानवता की अवधारणा की मिसाल
व्यक्तिगत परिचय
नाम: रामबीर सिंह ‘राम’
जन्मतिथि: 01 जनवरी 1972
जन्म स्थान: नांगल ठाकरान (दिल्ली)
शिक्षा: एम.ए., बी एड.
संप्रत्ति: प्राचार्य, लेखक, कवि
संपर्क: ब्रह्मशक्ति सी. से. स्कूल थाना कलां सोनीपत । मोबा. 9315650750
BY-ओ.पी. पाल
साहित्य एवं लोक साहित्य के क्षेत्र में हरियाणा के लेखक, साहित्यकार, लोक कलाकार साहित्य एवं लोक संस्कृति को संजोने में जुटे हैं। ऐसी शिक्षा, साहित्य एवं लोक कला के क्षेत्र में लेखक रामबीर सिंह राम सादा जीवन-उच्च विचार को मानवता की अवधारणा की मिसाल पेश करते हुए सामाजिक और शैक्षणिक रुप से समाज को नई ऊर्जा का संचार करने में जुटे हैं। खासतौर से युवा पीढ़ी में शिक्षा की अलख जगाने के साथ उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति जागरुक तो कर ही रहे हैँ। वहीं वह सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर अपनी लेखनी के जरिए साहित्य एवं लोक संस्कृति का संवर्धन करके पूर्वजों की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को भी आगे बढ़ा रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान शिक्षक, लेखक एवं कवि रामबीर सिंह ‘राम’ ने अपने साहित्यिक एवं लोक सांस्कृतिक सफर को लेकर कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिनके बिना सामाजिक जीवन का संस्कारिक होना संभव नहीं है।
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हरियाणा के साहित्यकार एवं लेखक रामबीर सिंह ‘राम’ का जन्म 01 जनवरी 1972 को गांव नांगल ठाकरान (दिल्ली) में शिवचरण एवं श्रीमती कपूरी देवी के घर में हुआ। उनके दादा निहालचंद 'निहाल' हरियाणा के उस जमाने में जाने-माने लोकनाट्यकार (सांगी) थे, जो हरियाणा ही नहीं उत्तर भारत में होने वाले सांगों में हिस्सा लेते थे। खासबात ये थी कि उनके सांग मंचन का उद्देश्य केवल धनोपार्जन नहीं था, बल्कि सांगों में मिलने वाले चंदे के धन से उन्होंने सामाजिक सेवा को सर्वोपरि रखते हु अनेक कुएं, जोहड़, गौशाला, पाठशाला, धर्मशाला आदि के निर्माण में सहयोग दिया है। मसलन वे एक क्रांतिकारी लोककवि के नाम से लोकप्रिय रहे और सांगों के माध्यम से अपने राष्ट्र प्रेम से संबंधित रचनाओं द्वारा लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने का आह्वान तक किया, जिनकी अमर रचना 'भाइयों हो ज्याओ सब त्यार, देश मांगता कुर्बानी' ने स्वतंत्रता संग्राम में एक मशाल का काम किया। सूर्यकवि पंडित लखमीचंद जैसे युगकवि इनसे प्रेरणा पाते थे। इसलिए उनकी ख्याति केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों तक व्याप्त थी, जिसका उल्लेख हिंदू विश्वकोष कोलंबिया (यूएसए) में मिलता है। ऐसी संस्कारों का उनके पिताजी पर भी गहरा प्रभाव पड़ा, जो उस समय के एक प्रसिद्ध लोककवि एवं भजनोपदेश के रुप में लोकप्रिय हुए। ब्रह्मशक्ति सी. से. स्कूल थाना कलां सोनीपत में प्राचार्य के पद पर कार्यरत रामबीर सिंह ने बताया कि यह सौभाग्य है कि उनका जन्म साहित्य साधना में लीन एक प्रसिद्ध कविकुल में हुआ। दादा व पिता के के पदचिह्नों पर उन्होंने भी विरासत में मिले संस्कारों के चलते बचपन से ही सांग देखना, रागनी सुनना और लोकगीतों का आनंद लेना उनकी अभिरुचि रही है। उसी का नतीजा है कि वह साहित्य सृजन करते हुए गायन यानी कवि में भी विशेष अभिरुच रखते हैं। वह अपनी लिखित कविताओं के अलावा दादा व पिता समेत हरियाणा के लोक कवियों की कविताएं मंच पर सुनते भी हैं और सुनाते भी हैं। एक शिक्षक के रुप में बच्चों के भविष्य निर्माण में उनकी रुचि होना स्वाभाविक है, यही कारण है कि बच्चों में साहित्यिक संस्कारों का संचार करने के मकसद से उन्होंने उनको प्रेरित करने वाली 'प्रकाश-पुंज' नामक पुस्तक के रूप में लिखी। साहित्यिक संस्कार डालने का प्रयास करता उसके बाद वह हरियाणा के वरिष्ठ लोक साहित्यकार डॉ. पूर्णचंद शर्मा के संपर्क में आए, जिन्होंने उनके दादाजी का उल्लेख अपनी लख्मीचंद ग्रंथावली में किया। उन्होंने उनकी लोकसाहित्य साधना एवं उनके ज्ञान कौशल से उत्प्रेरित होकर अपने दादा के सांगों का संकलन करके उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक पुस्तक लिखी, जिसे श्रेष्ठ कृति के रुप में पुरस्कृत करते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी ने 31,000 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया। इससे बढ़े आत्मविश्वास की बदौलते उन्होंने हरियाणा के कई लोककवियों पर पुस्तक लिखी हैं। उनके साहित्यिक रचनाओं का फोकस विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण, समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना और लोक कल्याण तथा युवा पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़ने पर रहा है, ताकि सकारात्मक रुप से सामाजिक चेतना कायम रहे। दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर स्कूली बच्चों द्वारा मेरी बात कार्यक्रम कई बार नेतृत्व करने के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विविध विषयों पर अनेक कार्यक्रमों में विशेष प्रवक्ता के रुप में उन्हें भागीदारी करने का भी मौका मिला है। उनके विभिन्न विषयों पर लेख एवं कविताएं कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती आ रही हैं।
बच्चों को संस्कारिक बनाना आवश्य
साहित्यकार एवं शिक्षाविद् रामबीर सिंह ने बच्चों में राष्ट्र प्रेम और संस्कारों के प्रति प्रेरित करने की दिशा में अपने नेतृत्व में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविद तथा प्रणव मुखर्जी के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से स्कूली बच्चों की प्रेरक भेंट भी कराई है। इसके अलावा देशभर के शिक्षाविद्, समाजसेवी, चिकित्सक, राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी जैसी विभूतियों ने स्कूल का भ्रमण कर बच्चों से भेंट की है।
प्रकाशित पुस्तकें
साहित्यकार रामबीर सिंह की प्रकाशित आधा दर्जन पुस्तकों में लोककला-सिरमौर: निहालचंद-शिवचरण हरियाणा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत रही। उन्होंने लोकसंगीत-पुरोधा: निहालचंद ‘निहाल’, पंडित सरुपचंद: व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा सुखबीर सिंह: एक परिशोलन के अलावा प्रकाश-पुंज और प्रेरक प्रसंग जैसी कृतियों का लेखन कर हरियाणवी संस्कृति को समर्पित की है।
पुरस्कार व सम्मान
साहित्य, लोक संस्कृति एवं शिक्षा के संवर्धन करने जैसी साधना के लेखक, कवि एवं शिक्षक रामबीर सिंह को अभ्युदय अंतर्राष्ट्रीय सर्वपल्ली डा. राधाकृष्ण सम्मान तथा राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें सदाचार भूषण सम्मान, अवंतिका शिक्षा सम्मान, उद्वव मानव सेवा सम्मान के अलावा शिक्षक दिवस पर पीएम मोदी का शुभकामना संदेश भी मिल चुका है। वहीं शैक्षिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंचों से भी उन्हें अनेक पुरस्कार के साथ सम्मानित किया जा चुका है।
साहित्य का महत्व कम नहीं
आज के आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौती को लेकर शिक्षाविद् एवं साहित्यकार रामबीर सिंह का कहना है कि साहित्य मनुष्य की सर्वोत्तम कृति है और मानव की असली भावनाएं और उनका निर्माण साहित्य की दृष्टि से ही होता है। समाज को नई ऊर्जा देने में साहित्य जगत का अहम योगदान होता है। लेकिन आज के इंटरनेट व मोबाइल युग में लोगों में साहित्य के प्रति कम रुझान के कारण स्थिति कमजोर तो हुई, लेकिन साहित्य का महत्व कभी कम नहीं हुआ। साहित्य मनुष्य की सर्वोत्तम कृति है और मानव की असली भावनाएं और उनका निर्माण साहित्य की दृष्टि से ही होता है। खासतौर से युवा पीढ़ियों को अपनी संस्कृति के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए उन्हें साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने की नितांत आवश्यकता है, क्यों कि युवाओं में साहित्य व संस्कृति के प्रति कम होती रुचि का प्रभाव समाज पर पड़ रहा है। इसलिए लेखकों, साहित्यकारों और लोक कलाकारों की ऐसी कला को पाठकों, श्रोताओं व दर्शकों के सामने ऐसी कला प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी कि समाज में कम होते पारस्परिक सद्भाव को सकारात्मक ऊर्जा मिल सके।
07Oct-2024
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