सोमवार, 28 अक्तूबर 2024

चौपाल: सपेरा बीन की परंपरा को जीवंत रखने में जुटे हरपाल नाथ

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कला के प्रदर्शन हासिल की लोकप्रियता 
         व्यक्तिगत परिचय 
नाम: हरपाल नाथ 
जन्मतिथि: 30 नवंबर 1975 
जन्म स्थान: गांव वजीरपुर टिटाना, जिला पानीपत
शिक्षा: हाई स्कूल 
संप्रत्ति: लोक कलाकार, बीन वादक, 
संपर्क: गांव वजीरपुर टिटाना, जिला पानीपत (हरियाणा), मोबा. 9466095998 
By--ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक कलाकार भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल के संगीत वाद्यों के रुप में विलुप्त होती बीन, तुम्बा, ढोलक, ढेरु गायन, बाजीगर जैसी कला को जीवंत करने में जुटे हैं। ऐसे ही बीन वादक कलाकार हरपाल, नाथ संप्रदाय की धरोहर बीन जोगी कला को संजोने के मकसद से विभिन्न सांस्कृतिक, सामाजिक और अन्य कार्यक्रमों में बीन वादन की कला का प्रदर्शन कर रहे हैं। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी कला से लोकप्रिय हासिल करने वाले बीन वादक कलाकार हरपाल नाथ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में ऐसी कलाओं को पुनजीर्वित करने के समाज से अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दिया है। 
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति में लुप्त होती सपेरा बीन जैसी विद्या को जीवंत करने में जुटे कलाकार हरपाल नाथ का जन्म 30 नवंबर 1975 को पानीपत जिले के गांव वजीरपुर टिटाना में प्रेमनाथ और श्रीमती नंदी नाथ के घर में हुआ। नाथ संप्रदाय का पुस्तैनी रोजगार बीन बजाकर सांप का खेल दिखाना रहा है। हरपाल नाथ को पूर्वजों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही बीन जैसे संगीत वाद्य की धरोहर को संजोने में लगे है यानी बीन जैसी लोक कला उन्हें विरासत में मिली है। उनके एक भाई मुकेश नाथ कला एवं संस्कृतिक विभाग में बतौर बीन वादक के पद पर कार्यरत रहे हैं। उनकी माता श्रीमती नंदी नाथ गांव की दो बार सरपंच रही हैं तो दसवीं तक शिक्षा ग्रहण कर चुके खुद हरपाल नाथ भी पंचायत सदस्य रहे। माता के अस्वस्थ्य होने पर सर्वसम्मिति से हरपाल भी सरपंच का कार्यभार संभाल चुके हैं। बकौल हरपाल नाथ, लोक कला में संगीत वाद्यों के रुप में बीन, तुम्बा, ढोलक, ढेरु गायन गाथा, बाजीगर कला और कच्ची घोड़ी, खंजरी बजा कर जोगी नाथ बीन सपेरा जैसी परम्परा को बढ़ाने के लिए हरियाणा प्रदेश में बहुत कम ही कलाकार हैं। जहां तक बीन जैसे वाद्य यंत्र बजाकर सांप का खेल दिखाकर प्राचीन काल से ही अपने परिवार का पालन पोषण करते आ रहे नाथ संप्रदाय के लोग जोगी नाथ सपेरा जाति से संबन्ध रखते हैं। इनके गुरु कानीफानाथ एक बड़ी शक्ति के रुप में माने जाते हैं जिन्होंने जंगलों में सांप पकड़ने के लिए बीन जैसे संगीत वाद यंत्र की उत्पत्ति की। बीन वादक कलाकार हरपाल नाथ का कहना है कि इस आधुनिक युग में ऐसी पारंपरिक कलाओं को विलुप्त होने से कुछ हद तक रोकने के लिए यदि भारत सरकार और संस्कृतिमंत्रालय या दूसरी सरकारीसंस्थाएं सचमुच ऐसे कलाकारों का सरंक्षण चाहती हैं, तो मनोरंजन के लिए विदेश जाने वाले हर ग्रुप को कम से कम एक ऐसे कलाकार को ले जाना आवश्यक है, पारंपरिक कला से जुड़ा हो। यदि ऐसा हो सके तो हम अपनी विलुप्त विरासतों को संरक्षित किया जा सकता है। हरपाल नाथ ने बताया कि सरकार द्वारा कानून बनाकर बीन बजाकर सांप का खेल दिखाने पर प्रतिबंध लगाने से जोगी नाथ सपेरा वर्ग के सामने जीवन यापन को लेकर संकट पैदा हो गया, जिसकी वजह से सपेरा समाज भूख के कगार पर आ गया। इसके लिए सपेरा समाज सोशल वेलफेयर सोसायटी ने हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री को पुस्तैनी रोजगार से इस प्रतिबंध को हटाने के लिए मांग भी की है। इसके लिए सपेरा समाज धरना प्रदर्शन भी कर चुका है। हालांकि बीन बजाकर सांप का खेल दिखाने पर लगे प्रतिबंध के बाद बीन वादक कलाकार पारंपरिक वेश-भूषा में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर आयोजित होने वाले समारोह, त्यौहारों और सांस्कृतिक आयोजनों में बीन बजाने की कला का प्रदर्शन करते हुए इस विद्या को जीवंत करने में जुटे हैं। हालांकि हरियाणा सरकार भी विलुप्त होती सपेरा बीन जोगी लोक कला को बचाए रखने संस्कृति विभाग के माध्यम से प्रोत्साहित कर रही है। 
यहां से मिली मंजिल 
बीन वादक कलाकार हरपाल नाथ ने साल 1992 में लोक कला के क्षेत्र में प्रवेश किया। बीन वादक की विलुप्त होती कला को जीवंत करने के लिए उन्होंने एक लोक कलाकार के रुप में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता हासिल की। इसके लिए उन्होंने अपने नेतृत्व में सपेरा बीन जोगी ग्रुप तैयार किया, जिसमें सुल्तान नाथ, सुरेश नाथ, अनिल, रवि, प्रवीण और संदीप जैसे कई बीन विद्या के कलाकार शामिल है। बीन कलाकारों के इस ग्रुप ने आईसीसीआर के माध्यम से 1998 में इटली, दुबई, बांग्लादेश आदि कई देशों में भी बीन की धुन से अपनी कला का प्रदर्शन किया है। अंतर्राष्ट्रीय महोत्सवों के दौरान हरपाल नाथ बीन पार्टी ने जहां बीन की कला का प्रदर्शन करके स्वर्ण जयंती समारोह में पीएम मोदी, और कुरुक्षेत्र में गीता जयंती महोत्सव के दौरान राष्ट्रपति और अंतर्राष्ट्रीय सूरजकुंड मेले में विदेशी पर्यटकों को भी मंत्रमुग्ध किया है। इसके अलावा हरपाल नाथ के दल ने देश के विभिन्न राज्यों में आयोजित सांस्कृतिक व अन्य समारोह में बीन जोगी कला का प्रदर्शन किया। ऐसे समारोह में उन्हें व उनके कलाकारों को अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं। 
ऐसे हुई बीन की उत्पत्ति 
लोक संगीत के वाद्य यंत्र बीन को आमतौर पर सूखी लौकी और बाँस की नलियों से बनाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे 'महुदी' के नाम से जाना जाता है और इसका इस्तेमाल मुख्य रूप से सपेरे करते हैं। नाथ संप्रदाय के गुरु कानीफानाथ एक बड़ी शक्ति के रुप में माने गये हैं जिन्होंने जंगलों में सांप पकड़ने के लिए बीन जैसे संगीत वाद यंत्र की उत्पत्ति की। उन्होंने जहां मधुमक्खी के छत्ते से मोम पैदा करने के साथ जंगल बांस के वृक्ष से पेरी और नरसल के पत्ते बनाए। ऐसे ही घासफूंस का बाजा कहे जाने वाली बीन तैयार की। अभी तक पूरे भारत में बीन बनाने की कोई फैक्ट्री या कंपनी नहीं है। इसलिए बीन तैयार करने का काम भी जोगीनाथ सपेरा वर्ग का ही है। इसी बीन की धुन पर नाथ संप्रदाय के पूर्वज जंगलों से सांप पकड़ने के बाद गांव गांव तथा नगर बस्तियों में घूमकर बीन बजाकर सांप का खेल दिखाकर अपनी रोजी रोटी कमाते आ रहे हैं। 
28Oct-2024

सोमवार, 7 अक्तूबर 2024

साक्षात्कार: समाज को नई दिशा देने में साहित्य का अहम योगदान: रामबीर सिंह

सादा जीवन-उच्च विचार को मानवता की अवधारणा की मिसाल 
 व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रामबीर सिंह ‘राम’ 
जन्मतिथि: 01 जनवरी 1972 
जन्म स्थान: नांगल ठाकरान (दिल्ली) 
शिक्षा: एम.ए., बी एड. 
संप्रत्ति: प्राचार्य, लेखक, कवि 
संपर्क: ब्रह्मशक्ति सी. से. स्कूल थाना कलां सोनीपत । मोबा. 9315650750 
BY-ओ.पी. पाल 
साहित्य एवं लोक साहित्य के क्षेत्र में हरियाणा के लेखक, साहित्यकार, लोक कलाकार साहित्य एवं लोक संस्कृति को संजोने में जुटे हैं। ऐसी शिक्षा, साहित्य एवं लोक कला के क्षेत्र में लेखक रामबीर सिंह राम सादा जीवन-उच्च विचार को मानवता की अवधारणा की मिसाल पेश करते हुए सामाजिक और शैक्षणिक रुप से समाज को नई ऊर्जा का संचार करने में जुटे हैं। खासतौर से युवा पीढ़ी में शिक्षा की अलख जगाने के साथ उन्हें अपनी संस्कृति के प्रति जागरुक तो कर ही रहे हैँ। वहीं वह सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर अपनी लेखनी के जरिए साहित्य एवं लोक संस्कृति का संवर्धन करके पूर्वजों की साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत को भी आगे बढ़ा रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत के दौरान शिक्षक, लेखक एवं कवि रामबीर सिंह ‘राम’ ने अपने साहित्यिक एवं लोक सांस्कृतिक सफर को लेकर कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिनके बिना सामाजिक जीवन का संस्कारिक होना संभव नहीं है। 
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रियाणा के साहित्यकार एवं लेखक रामबीर सिंह ‘राम’ का जन्म 01 जनवरी 1972 को गांव नांगल ठाकरान (दिल्ली) में शिवचरण एवं श्रीमती कपूरी देवी के घर में हुआ। उनके दादा निहालचंद 'निहाल' हरियाणा के उस जमाने में जाने-माने लोकनाट्यकार (सांगी) थे, जो हरियाणा ही नहीं उत्तर भारत में होने वाले सांगों में हिस्सा लेते थे। खासबात ये थी कि उनके सांग मंचन का उद्देश्य केवल धनोपार्जन नहीं था, बल्कि सांगों में मिलने वाले चंदे के धन से उन्होंने सामाजिक सेवा को सर्वोपरि रखते हु अनेक कुएं, जोहड़, गौशाला, पाठशाला, धर्मशाला आदि के निर्माण में सहयोग दिया है। मसलन वे एक क्रांतिकारी लोककवि के नाम से लोकप्रिय रहे और सांगों के माध्यम से अपने राष्ट्र प्रेम से संबंधित रचनाओं द्वारा लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने का आह्वान तक किया, जिनकी अमर रचना 'भाइयों हो ज्याओ सब त्यार, देश मांगता कुर्बानी' ने स्वतंत्रता संग्राम में एक मशाल का काम किया। सूर्यकवि पंडित लखमीचंद जैसे युगकवि इनसे प्रेरणा पाते थे। इसलिए उनकी ख्याति केवल भारत में ही नहीं अपितु विदेशों तक व्याप्त थी, जिसका उल्लेख हिंदू विश्वकोष कोलंबिया (यूएसए) में मिलता है। ऐसी संस्कारों का उनके पिताजी पर भी गहरा प्रभाव पड़ा, जो उस समय के एक प्रसिद्ध लोककवि एवं भजनोपदेश के रुप में लोकप्रिय हुए। ब्रह्मशक्ति सी. से. स्कूल थाना कलां सोनीपत में प्राचार्य के पद पर कार्यरत रामबीर सिंह ने बताया कि यह सौभाग्य है कि उनका जन्म साहित्य साधना में लीन एक प्रसिद्ध कविकुल में हुआ। दादा व पिता के के पदचिह्नों पर उन्होंने भी विरासत में मिले संस्कारों के चलते बचपन से ही सांग देखना, रागनी सुनना और लोकगीतों का आनंद लेना उनकी अभिरुचि रही है। उसी का नतीजा है कि वह साहित्य सृजन करते हुए गायन यानी कवि में भी विशेष अभिरुच रखते हैं। वह अपनी लिखित कविताओं के अलावा दादा व पिता समेत हरियाणा के लोक कवियों की कविताएं मंच पर सुनते भी हैं और सुनाते भी हैं। एक शिक्षक के रुप में बच्चों के भविष्य निर्माण में उनकी रुचि होना स्वाभाविक है, यही कारण है कि बच्चों में साहित्यिक संस्कारों का संचार करने के मकसद से उन्होंने उनको प्रेरित करने वाली 'प्रकाश-पुंज' नामक पुस्तक के रूप में लिखी। साहित्यिक संस्कार डालने का प्रयास करता उसके बाद वह हरियाणा के वरिष्ठ लोक साहित्यकार डॉ. पूर्णचंद शर्मा के संपर्क में आए, जिन्होंने उनके दादाजी का उल्लेख अपनी लख्मीचंद ग्रंथावली में किया। उन्होंने उनकी लोकसाहित्य साधना एवं उनके ज्ञान कौशल से उत्प्रेरित होकर अपने दादा के सांगों का संकलन करके उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर एक पुस्तक लिखी, जिसे श्रेष्ठ कृति के रुप में पुरस्कृत करते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी ने 31,000 रुपये का पुरस्कार प्रदान किया। इससे बढ़े आत्मविश्वास की बदौलते उन्होंने हरियाणा के कई लोककवियों पर पुस्तक लिखी हैं। उनके साहित्यिक रचनाओं का फोकस विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण, समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना और लोक कल्याण तथा युवा पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़ने पर रहा है, ताकि सकारात्मक रुप से सामाजिक चेतना कायम रहे। दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर स्कूली बच्चों द्वारा मेरी बात कार्यक्रम कई बार नेतृत्व करने के अलावा आकाशवाणी और दूरदर्शन पर विविध विषयों पर अनेक कार्यक्रमों में विशेष प्रवक्ता के रुप में उन्हें भागीदारी करने का भी मौका मिला है। उनके विभिन्न विषयों पर लेख एवं कविताएं कई राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती आ रही हैं। 
बच्चों को संस्कारिक बनाना आवश्य 
साहित्यकार एवं शिक्षाविद् रामबीर सिंह ने बच्चों में राष्ट्र प्रेम और संस्कारों के प्रति प्रेरित करने की दिशा में अपने नेतृत्व में तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविद तथा प्रणव मुखर्जी के अलावा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से स्कूली बच्चों की प्रेरक भेंट भी कराई है। इसके अलावा देशभर के शिक्षाविद्, समाजसेवी, चिकित्सक, राजनीतिज्ञ, स्वतंत्रता सेनानी, राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी जैसी विभूतियों ने स्कूल का भ्रमण कर बच्चों से भेंट की है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार रामबीर सिंह की प्रकाशित आधा दर्जन पुस्तकों में लोककला-सिरमौर: निहालचंद-शिवचरण हरियाणा साहित्य अकादमी से पुरस्कृत रही। उन्होंने लोकसंगीत-पुरोधा: निहालचंद ‘निहाल’, पंडित सरुपचंद: व्यक्तित्व एवं कृतित्व तथा सुखबीर सिंह: एक परिशोलन के अलावा प्रकाश-पुंज और प्रेरक प्रसंग जैसी कृतियों का लेखन कर हरियाणवी संस्कृति को समर्पित की है। 
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य, लोक संस्कृति एवं शिक्षा के संवर्धन करने जैसी साधना के लेखक, कवि एवं शिक्षक रामबीर सिंह को अभ्युदय अंतर्राष्ट्रीय सर्वपल्ली डा. राधाकृष्ण सम्मान तथा राष्ट्रीय शिक्षक गौरव सम्मान से नवाजा जा चुका है। उन्हें सदाचार भूषण सम्मान, अवंतिका शिक्षा सम्मान, उद्वव मानव सेवा सम्मान के अलावा शिक्षक दिवस पर पीएम मोदी का शुभकामना संदेश भी मिल चुका है। वहीं शैक्षिक, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंचों से भी उन्हें अनेक पुरस्कार के साथ सम्मानित किया जा चुका है। 
साहित्य का महत्व कम नहीं 
आज के आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौती को लेकर शिक्षाविद् एवं साहित्यकार रामबीर सिंह का कहना है कि साहित्य मनुष्य की सर्वोत्तम कृति है और मानव की असली भावनाएं और उनका निर्माण साहित्य की दृष्टि से ही होता है। समाज को नई ऊर्जा देने में साहित्य जगत का अहम योगदान होता है। लेकिन आज के इंटरनेट व मोबाइल युग में लोगों में साहित्य के प्रति कम रुझान के कारण स्थिति कमजोर तो हुई, लेकिन साहित्य का महत्व कभी कम नहीं हुआ। साहित्य मनुष्य की सर्वोत्तम कृति है और मानव की असली भावनाएं और उनका निर्माण साहित्य की दृष्टि से ही होता है। खासतौर से युवा पीढ़ियों को अपनी संस्कृति के प्रति जिम्मेदार बनाने के लिए उन्हें साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने की नितांत आवश्यकता है, क्यों कि युवाओं में साहित्य व संस्कृति के प्रति कम होती रुचि का प्रभाव समाज पर पड़ रहा है। इसलिए लेखकों, साहित्यकारों और लोक कलाकारों की ऐसी कला को पाठकों, श्रोताओं व दर्शकों के सामने ऐसी कला प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी कि समाज में कम होते पारस्परिक सद्भाव को सकारात्मक ऊर्जा मिल सके। 
07Oct-2024