रविवार, 6 जून 2010

सोनिया गांधी की जिंदगी पर किताब में कई राज


एक ऐसी किताब की जिसके आने से पहले ही बवाल मच गया है। क्योंकि इस किताब के साथ सोनिया गांधी का नाम जुड़ा है। स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो की एक किताब ‘द रेड साड़ी’ सोनिया गांधी की जिंदगी पर लिखी गई है। कांग्रेस पार्टी को किताब की कुछ लाइनों पर ऐतराज है और पार्टी चाहती है कि देश में किताब पर बैन लगा दिया जाए। पार्टी की तरफ से इस किताब के लेखक को कानूनी नोटिस भी भेजा गया है। सोनिया गांधी पर लिखी गई इस किताब के कुछ खास अंश हैं। 24 मई 1991 को राजीव का पार्थिव शरीर तीन मूर्ति हाउस के बड़े हॉल में रखा था। ये वक्त अलविदा कहने का था। सोनिया ने राजीव के पार्थिव शरीर पर श्रद्धांजलि अर्पित की। टेलीविजन कैमरों की नज़र से पूरी दुनिया ने सोनिया को देखा सोनिया ने लोगों को जैक्वेलीन केनेडी की याद दिला दी। राजीव की मौत से टूट चुकी सोनिया वापिस इटली जाने की सोचने लगीं। तो क्या राजीव गांधी की हत्या सोनिया गांधी को भारत छोड़ने और अपने देश इटली लौटने पर मजबूर कर रही थी। मोरो के कलम से सोनिया गांधी की ये जिंदगी स्पेन में 2008 से ही बिक रही है। अब इसके अंग्रेजी अनुवाद को भारत में बेचने की तैयारी है। मोरो ने राजीव गांधी की बर्बर हत्या के बाद के पलों को सोनिया गांधी की नजरों से देखने की कोशिश की है। वो लिखते हैं कि राजीव की मौत से सोनिया को झकझोर कर रख दिया और उसके बाद ही वो सब कुछ समेट कर वापस अपने मुल्क जाने की सोचने लगीं। जाहिर है कांग्रेस के नेता ये नहीं चाहेंगे कि सोनिया गांधी की एक ऐसी छवि जनता के बीच जाए जो पति की हत्या के बाद बहादुरी से हालात का सामना करने के बजाय, पति के ही देश को अपना देश बनाकर उनकी यादों को यहीं संजोने, अपने बच्चों को यहीं बड़ा करने के बजाय वापस अपने सुरक्षित मुल्क लौट जाने की सोचने लगी थीं। जाहिर है सोनिया गांधी की ये छवि उनकी मौजूदा छवि से मेल नहीं खाएगी। हालांकि किताब के लेखक मोरो दावा करते हैं कि उनकी किताब सोनिया की जिंदगी पर आधारित जरूर है लेकिन कहानी है पक्की काल्पनिक। लेकिन सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस का एक धड़ा सोनिया पर लिखी गई किताब ‘द रेड साड़ी’ से खासा खफा है। उसका कहना है कि एक जीवित शख्सियत की जिंदगी को काल्पनिक बनाने की कोशिश ठीक नहीं है। वो भी तब जब ये किताब सोनिया गांधी की जिंदगी से प्रेरित है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि पेशे से वकील और कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने मोरो को लीगल नोटिस थमा दिया है। ‘द रेड साड़ी’ का इटालवी, फ्रेंच और डच भाषा में अनुवाद हो चुका है। मोरो का दावा है कि अब तक उनकी किताब एल साड़ी रोज़ा की करीब ढाई लाख कॉपियां बिक भी चुकी हैं। ज़ाहिर है सोनिया की जिंदगी अतर्राष्ट्रीय बेस्टसेलर के दर्जे में पहुंच रही हैं। लेकिन किताब पर तूफान सिर्फ राजीव गांधी की हत्या के बाद के पलों पर ही नहीं उठ रहा है बल्कि कहा ये भी जा रहा है कि कांग्रेस की नाराजगी किताब में दर्ज सोनिया की शुरुआती जिंदगी के कई पन्नों पर भी है। यानि सोनिया का बचपन और इटली में बिताए गए कई अहम पल। साफ है कांग्रेस सोनिया के नाम के साथ कोई खिलवाड़ बर्दाश्त नहीं करने वाली। जी हां, राजीव गांधी की मौत के बाद इटली जाने की सोचने की बात के जिक्र के अलावा कांग्रेस पार्टी को किताब की कुछ और लाइनों पर भी ऐतराज है। जिसके जरिए लेखक ने सोनिया के बचपन की कुछ अनकही, अनसुनी बातों को दुनिया के सामने रखने की कोशिश की है। ये किताब नहीं एक तूफान है। इसमें लिखी कुछ बातें अगर दुनिया के सामने आ गईं तो विरोधियों को बोलने का मौका मिल जाएगा। देश की सबसे बड़ी पार्टी का स्वयंभू सेंसर बोर्ड ऐसा नहीं चाहता। वैसे ऐसा नहीं है कि मोरो ने अपनी किताब में सिर्फ भारत आने के बाद ही सोनिया की जिंदगी के अहम पहलुओं को समेटा है। इस किताब में उस वक्त का भी जिक्र है जब इटली के एक छोटे से गांव लुजियाना में सोनिया का जन्ह हुआ, मोरों की नजर में कैसे बीता सोनिया का बचपन किताब में वर्णन है। सोनिया के पैदा होने पर लुजियाना के घरों में परंपरा के अनुसार गुलाबी रिबन बांधे गए। चर्च ने सोनिया को नाम दिया एडविजे एनटोनिया अलबिना मैनो। लेकिन उनके पिता स्टीफैनो ने उन्हे सोनिया के नाम से पुकारा। रूसी नाम रखकर वो उन रूसी परिवारों का शुक्रिया अदा करना चाहते थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उनकी जान बचाई। सोनिया के पिता स्टीफैनो, मुसोलिनी की सेना में थे जो रूसी सेना से हार गई थी। सोनिया जियावेनो के कॉन्वेन्ट स्कूल में गई लेकिन पढ़ाई उतनी ही की, जितनी जरुरत थी। यानी वो अच्छी स्टूडेन्ट नहीं थी लेकिन हंसमुख और दूसरों की मदद करने वाली थीं। कफ और अस्थमा की शिकायत की वजह से वो बोर्डिंग स्कूल में अकेले सोती थीं। आगे जाकर तूरीन में पढ़ाई के दौरान उनके मन में एयर होस्टेस बनने का अरमान भी जागा लेकिन वो सपना जल्द ही बदल गया। इसके बाद वो विदेशी भाषा की टीचर या संयुक्त राष्ट्र में अनुवादक भी बनना चाहती थीं। जाहिर है कांग्रेस पार्टी ये नहीं चाहेगी कि सोनिया की जिंदगी का ये अनछुआ पहलू भी दुनिया के सामने आए। सवाल उठाए जा रहे हैं वास्तविकता से छेड़छाड़ के लेकिन मोरो का दावा है कि उनकी किताब रिसर्च पर आधारित है और इसके लिए उन्होनें खुद सोनिया के होम टाउन लुजियाना में काफी वक्त बिताया। किताब की पांडुलिपि सोनिया की बहन नाडिया को भी दिखाई गई। लेकिन उन्होंने किताब पढ़ने से इंकार कर दिया। खुद मोरो का मानना है उन्हें कांग्रेस पार्टी की तरफ से धमकी भरे ईमेल्स भेजे गए हैं जिसमें किताब की कई लाइनों पर नाराजगी जताई गई है। हाल ही में प्रकाश झा की फिल्म राजनीति पर भी कांग्रेस ने आपत्ति जताते हुए फिल्म के कुछ दृश्य हटवा दिए थे। कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक फिल्म की नायिका का किरदार भी सोनिया गांधी से प्रेरित है। ऐसे में फिल्म के आपत्तिजनक दृश्य कांग्रेस अध्यक्ष की छवि के अनुकूल नहीं थे। इससे पहले भारतीय मूल के ब्रिटिश फिल्म निर्माता जगमोहन मुंदड़ा को भी सोनिया गांधी की जिंदगी पर फिल्म बनाने का इरादा छोड़ना पड़ा था, क्योंकि कांग्रेस सेंसर बोर्ड ने इसकी इजाज़त नहीं दी। भले ही इसे सृजनात्मक आज़ादी के हनन का नाम दिया जाए या लोकतंत्र के खिलाफ करार दिया जाए, कांग्रेस सोनिया गांधी के नाम पर कोई रिस्क लेना नहीं चाहती। आखिरकार सोनिया ने ही कांग्रेस को नया जीवनदान दिया है। कांग्रेस नहीं चाहती कि सोनिया को लेकर कोई विवाद खड़ा हो या विरोधियों को विदेशी मूल का मुद्दा दोबारा उठाने का मौका मिले।

(सौजन्य-आईबीएन-7)

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