सोमवार, 7 जुलाई 2025

साक्षात्कार: साहित्य और समाज एक दूसरे के बिना अधूरे: डा. नीरू मित्तल ‘नीर’

समाजिक सरोकार के मुद्दों पर साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन से बनी पहचान 
     व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. नीरू मित्तल ‘नीर’ 
जन्मतिथि: 26 जून 1958 
जन्म स्थान: अजमेर(राजस्थान) 
शिक्षा: एम. कॉम, सी.ए.आई.आई.बी 
संप्रति: बैंकिंग सेवा से निवृत, साहित्यकार, कथाकार, कवयित्री एवं लेखक, समाजसेविका, योग शिक्षिका 
वर्तमान पता: 40, सेक्टर-15, पंचकूला(हरियाणा)
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By- ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में कविता, गजल, कहानी, व्यंग्य, लघुकथा, लेख निबंध, समीक्षा जैसी विधाओं का मानवीय एवं सामाजिक सरोकार के लिए कितना महत्व है। इन्हीं मूल्यों को लेकर साहित्यकार एवं लेखक साहित्य सृजन करने में जुटे हैं, जिसमें लेखकों का मकसद समाज को नई दिशा और सकारात्मक विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए अपनी संस्कृति, सभ्यता और परंपराओं जुड़े रहने का संदेश देना है। ऐसी की लेखक एवं महिला साहित्यकार डॉ. नीरू मित्तल अपनी ऐसी ही लेखन विधाओं के माध्यम से बच्चों से लेकर बुजुर्गो के साथ ही हरियाणवी संस्कृति संवर्धन एवं सामाजिक उत्थान के लिए साहित्य साधना करती आ रही हैं। अपने साहित्यिक सफर को लेकर साहित्यकार, कथाकार, कवयित्री एवं लेखक डॉ. नीरू मित्तल ‘नीर’ ने कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किये, जिसमें समाज और साहित्य एक दूसरे के बिना जीवंत नहीं रह सकते। 
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रिष्ठ महिला साहित्यकार डॉ. नीरू मित्तल का जन्म 26 जून 1958 को अजमेर(राजस्थान) में हरिश चन्द्र गुप्ता और श्रीमति दम्यंती देवी गुप्ता के घर में हुआ। परिवार में कोई भी साहित्य माहौल नहीं था और न ही कोई सदस्य साहित्य से जुड़ा था, लेकिन उन्हें बचपन में ही तुकबंदियां करते हुए कुछ न कुछ लिखने में अभिरुचि हुई। स्कूल में भी वे कविताएं सुनाती और उनकी लिखी कविताएं स्कूल और कॉलेज की मैगजीन में प्रकाशित होने लगी, तो उनके पिताजी ने बहुत प्रोत्साहित करना शुरु कर दिया। उनके लेखन की शुरुआत कविताओं से हुई, लेकिन वह जल्द ही कहानियां भी लिखने लगी। जब वह कॉलेज में पढ़ रही थी, तो उनकी रचनाएं आकाशवाणी पर प्रसारित होने लगी और पिता अजमेर से रिकार्डिंग के लिए आकाशवाणी केंद्र जयपुर ले जाते थे। बकौल डॉ. नीरू मित्तल, साल 1981 में उनकी जयपुर में बैंक ऑफ बडौदा में नौकरी लग गई। इसके बाद साल 1984 में उनका विवाह हरियाणा के पंचकूला में हुआ। इस वजह से उन्होंने अपना स्थानांतरण पंचकूला की बैंक शाखा में करा लिया और यहीं से वह सेवानिवृत्त हुई। हालांकि शादी के बाद वह अपनी बैंकिंग की नौकरी, परिवार और बच्चों में अत्यधिक व्यस्त हो गई और लेखन बहुत सीमित रह गया। लेकिन इस दौरान भी वह नराकास के कार्यक्रमों में भाग लेती रही और पुरस्कार जीतती रही। बच्चे जब प्रोफेशनल कॉलेज में चले गए और उन्हें कुछ समय मिलने लगा तो मेरा साहित्य के प्रति लगाव पुनः जागृत हो गया और उन्होंने हरियाणवी संस्कृति संवर्धन एवं सामाजिक उत्थान के लिए साहित्य सृजन को नई दिशा दी। उनकी रचनाओं का फोकस मुख्य रूप से समाज में व्याप्त विडंबनाओं, कुंठाओं बेबसी, आक्रोश, अनेकों विषमताएं और लोगों की जिजीविषा जैसे सामाजिक सरोकार के मुद्दे और समस्याओं पर रहा है, इन्हीं पर उनकी कलम सक्रीय रही, जिसमें नारी विमर्श भी उनके लेखन में स्वतः ही झांकने लगा। बकौल नीरु मित्तल, साहित्य के अलावा उन्हें गायन और नृत्य का भी शौक रहा है। वह अपने हम उम्र साथियों के लिए नृत्य कोरियोग्राफ भी करती हैं। जहां वे कहानी, लघुकथा, लेख निबंध, कविता, साक्षात्कार, समीक्षा, व्यंग्य, यात्रा संस्मरण, समीक्षा और साक्षात्कार ज जैसी विधाओं में साहित्य संवर्धन करने में जुटी हैं, वहीं वह योगा शिक्षक भी रही और सामाजिक गतिविधियों में भी वे बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती हैं। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में आयोजित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ भी किये हैं। देश के वरिष्ठ साहित्यकारों व रचनाकारों का सानिध्य मिला है। उनकी रचनाएं देश ही नहीं विदेश के पत्र पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रही है। चंडीगढ़ दूरदर्शन केंद्र और आकाशवाणी केंद्र जयपुर से समय-समय पर उनकी कविताओं व रचनाओं का प्रसारण तो हो ही रहा है। वहीं रेडियो 'अपना विनीपेग' कनाडा और 'जस टीवी' कनाडा पर भी उनके साहित्यिक काव्य पाठ कार्यक्रम और साक्षात्कार प्रस्तुत हुए हैं। कई विदेशी मंचों जैसे 'रूट्स टू हिंदी काव्यांजलि' शिकागो, 'निर्मल रोशन मंच' न्यूयॉर्क, 'महिला काव्य मंच' इंडोनेशिया पर भी वे अपनी कविताएं प्रस्तुत कर चुकी हैं। यहाँ वह यह बात अवश्य कहना चाहती है कि विदेश में बैठे भारतीय अपनी संस्कृति अपनी भाषा और अपने देश से कहीं गहराई से जुड़े हुए हैं। वह उनकी निष्ठा और समर्पण को नमन करती हैं। 
आधुनिक युग में साहित्य 
वरिष्ठ महिला साहित्यकार एवं लेखक नीरु मित्तल का मानना है कि आज के आधुनिक युग में भी साहित्य गतिशील है और गद्य हो या पद्य, दोनों विधाओं में ही नवीन शैलियों का विकास हो रहा है। लघुकथा, लघुकविता, नवगीत जैसी विधाएं अपने उत्कर्ष की ओर अग्रसर हैं। छायावाद से आगे हम प्रयोगवाद पर आ गए हैं। साहित्य पर सामाजिक, राजनीतिक चेतनाओं का गहरा प्रभाव पड़ा है। आधुनिक युग की जीवन शैलियों और मूल्यों का भी साहित्य पर असर हुआ है। इंटरनेट और सोशल मीडिया यथा व्हाट्सएप, फेसबुक आदि के माध्यम से भी साहित्य का प्रचार और प्रसार हो रहा है। अब एक भाषा का लिखा गया साहित्य दूसरी भाषाओं में भी अनुवादित होकर वैश्वीकरण की ओर बढ़ रहा है। इसका दूसरा पहलू ये भी है कि इस युग में जैसे जैसे भौतिकवाद बढ़ रहा है, वैसे ही स्वार्थ और धन लोलुपता बढ़ने से साहित्य में भी दिखावा और सस्ती लोकप्रियता पाने की लालसा बढ़ती नजर आ रही है। इसका नतीजा ये है कि लेखक तो बहुत हो गए परंतु पाठक सिमट गए। सोशल मीडिया के चलते पुस्तकों का क्रय विक्रय संकुचित हुआ है। युवा पीढ़ी साहित्य से वंचित नहीं है। साहित्य में तो रुचि है परंतु वह साहित्य अंग्रेजी माध्यम में है। आज के बच्चे किंडल पर अंग्रेजी किताबें पढ़ते हैं। अंग्रेजी के बड़े लेखकों की किताबें पढ़ते हैं। इसमें सुधार के लिए जरुरी है कि सर्वप्रथम हमें अपने संस्कारों अपनी संस्कृति के प्रति गर्व महसूस करते हुए अपनी भाषा का सम्मान करें, तभी हिंदी साहित्य में उनकी रुचि स्वतः ही जागृत हो जाएगी। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्य की विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन करती आ रही महिला साहित्यकार डॉ. नीरू मित्तल की प्रकाशित पुस्तकों में काव्य संग्रह-अनकहे शब्द, शब्दों की परछाइयाँ, चट्टान पर खिले फूल, पंचतत्त्व और मैं, कहानी संग्रह-रिश्तों की डोर, कोहरे से झाँकती धूप, लघुकथा संग्रह-तिनका तिनका मन, प्रतिबिम्बों की अनंत यात्रा, बाल साहित्य-मेरे वर्णमाला गीत, छू लो आसमान प्रमुख रुप से पाठकों के सामने हैं। उन्होंने खुशियाँ लौटेंगी, सुनहरी यादों के झरोखों से नामक पुस्तकों का संपादन भी किया। वहीं पंजाबी रचनाओं का अन्य भाषाओं में अनुदित भी की हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
महिला साहित्यकार एवं लेखिका डॉ. नीरू मित्तल और उनकी विभिन्न विधाओं में लिखी किताबों को पुरस्कार मिले। उन्हें हरियाणा साहित्य गौरव सम्मान, बाल सहित्य सम्मान, डॉ कैलाश अहलूवालिया स्मृति सम्मान पुरस्कार, डॉ. श्यामसुंदर व्यास स्मृति सम्मान, काव्य मंजरी वागीश्वरी सम्मान, काव्य मंजरी वागीश्वरी सम्मान, काव्य शिरोमणि सम्मान, स्मृति साहित्य सम्मान, संस्कृति संवाहक पुरस्कार, शब्द निष्ठा सम्मान, लघुकथा सेवी सम्मान, साहित्य सारथी सम्मान और मां भारती साहित्य के सम्मान जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। 
07July-2025