बुधवार, 15 मई 2024

लद्दाख: भाजपा के सामने आसान नहीं जीत की हैट्रिक लगाना!

 
इंडी गठबंधन की फूट में कांग्रेस प्रत्याशी के सामने नेकां बागी प्रत्याशी ने ठोकी ताल 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार लद्दाख लोकसभा सीट पर चुनाव बेहद दिलचस्प मोड़ पर जाता नजर आ रहा है, जहां पिछले एक दशक से भाजपा का कब्जा है। इस सीट पर विपक्षी गठबंधन की तरफ से कांग्रेस के प्रत्याशी को लेकर भाजपा के सामने बड़ी चुनौती थी, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ कारगिल जिले की कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की ईकाई ने बगावत करके संयुक्त रुप से निर्दलीय प्रत्याशी को को समर्थन देकर कांग्रेस और भाजपा के बीच माने जा रहे मुकाबले को त्रिकोणीय मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसके बावजूद भाजपा के लिए इस सीट पर जीत की हैट्रिक बनाने की चुनौती कम नहीं है, क्योंकि यहां लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकता है और इस मुद्दे को विपक्ष पूरी तरह से हवा दे रहा है। बहरहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता और चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, यह चुनाव के नतीजे के बाद ही सामने आएगा? 
देश के संसदीय इतिहास की दृष्टि से लद्दाख लोकसभा सीट इसलिए भी ज्यादा महत्व रखती है, कि इस लोकसभा सीट के दायरे में जहां लद्दाख में सबसे कम आबादी वाले कारगिल और लेह जिले नियंत्रण रेखा की जद में हैं। यह भी गौरतलब है कि लद्दाख ऐसा केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां अभी तक अपनी विधानसभा नहीं है यानि बिना विधानसभा सीटों के लद्दाख में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र शासित राज्य घोषित होने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव हो रहा है। इससे पहले साल 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में यह सीट जम्मू-कश्मीर राज्य की छह सीटों में शामिल थी। लेकिन उसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग करके केंद्र शासित राज्य घोषित होने से लद्दाख लोकसभा सीट के सियासी समीकरण बदलना भी स्वाभाविक है। जम्मू कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित बने लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर वहां के लोग आंदोलन करते आ रहे हैं, जिसे भाजपा के खिलाफ विपक्ष सियासी तौर पर भुनाने का प्रयास कर रहा है। इसी दृष्टि से जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने संयुक्त रुप से इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस के प्रत्याशी त्सेरिंग नामग्याल को चुनावी मैदान में उतारा है। भाजपा ने यहां मौजूदा सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल का टिकट काटकर नए चेहरे के रुप में ताशी ग्यालसन पर दांव खेला है। जबकि इस सीट पर तीसरे प्रत्याशी के रुप में निर्दलीय मोहम्मद हनीफा जान चुनाव मैदान में है। 
विपक्ष में फूट की सियासत 
भाजपा को इस सीट पर तीसरी जीत हासिल करने का इसलिए भरोसा बढ़ गया है कि इंडिया गठबंधन में यहां कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ बगावत ने मुश्किलें खड़ी कर दी है और खासकर कारगिल जिले की कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की ईकाई ने बगावत करके सयुंक्त रुप से इस्तीफे दे दिए और नेशनल कांफ्रेंस के बागी नेता मोहम्मद हनीफा को निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनावी जंग में उतारकर कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन करने से इंकार कर दिया है। यानी चुनाव में कारगिल एकजुट होकर लद्दाख की राजनीति पर हावी होने का प्रयास कर रहा है। दरअसल भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी लेह जिले के हैं, जबकि मो. हनीफा कारगिल जिले से है। इस चुनाव में कारगिल एकजुट होकर लद्दाख की राजनीति पर हावी होने का प्रयास कर रहा है। इसी कारण कांग्रेस और भाजपा दोनों को हीं यहां चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंकनी पड़ रही है। लद्दाख में भाजपा-कांग्रेस में ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा था, लेकिन कारगिल के सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने सियासी स्थिति को भांपते हुए नेकां के बागी हाजी हनीफा जान को निर्दलीय मैदान में उतार कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। 
ये है चुनावी इतिहास 
हिमालय पर्वत माला की प्राकृतिक की सुंदरता के कारण पर्यटन क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध लद्दाख लोकसभा सीट साल 1967 में अस्तित्व मे आई थी। जम्मू-कश्मीर राज्य की इस सीट पर अभी तक 13 लोकसभा चुनाव में पहले पांच चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे हैं। जबकि 1989 के चुनाव में यहां निर्दलीय प्रत्याशी मोहम्मद हसन कमांडर ने कांग्रेस का रथ रोका, लेकिन 1996 के चुनाव में यहां एक बार फिर कांग्रेस ने छठी जीत हासिल की। इसके बाद इस सीट पर लगातार दो बार जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस ने कब्जा किया। साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशियों ने जनादेश हासिल करके लोकसभा में प्रवेश किया। जबकि पिछले दो चुनाव यानी 2014 चुनाव में यहां भाजपा के थुपस्तान छेवांग ने पहली बार भगवा लहराया, तो और 2019 के चुनाव में यहां भाजपा के नए युवा चेहरे के रुप में जामयांग सेरिंग नामग्याल ने शानदार जीत हासिल की और लोकसभा में अपने पहले ही भाषण में पूरे सदन को अपनी ओर आकर्षित करके सभी दलों को चौंकाया। लेकिन इस बार फिर से भाजपा ने नामग्याल का टिकट काटकर एक नये चेहरे के रुप में ताशी ग्यालसन को अपना प्रत्याशी बनाकर दांव खेला है। जबकि इस कांग्र्रेस ने इस सीट पर त्सेरिंग नामग्याल को अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि तीसरी प्रत्याशी मोहम्मद हनीफा यहां निर्दलीय रुप से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
दो लाख से कम मतदाता 
लद्दाख लोकसभा सीट पर तीन प्रत्याशियों के सामने 1,82,571 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना है, जिसमें 91,703 पुरुष और 90,867 महिला मतदाता शामिल है। लद्दाख के कुल मतदाताओं में से कारगिल जिले में 95,929 तथा लेह जिले में 88,870 मतदाता शामिल हैं। 20 मई को होने वाले मतदान के लिए लद्दाख में 577 मतदान केंद्र बनाए गये हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 1,79,232 मतदाता थे। 
आंदोलन का क्या हो सकता है असर 
केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख लोकसभा सीटों के नए परिसीमन से सियासी तस्वीर बदलने से इस बार लद्दाख के कुछ मुस्लिम और बौद्ध संगठन लेह और कारगिल लोकतांत्रिक गठबंधन के बैनर तले लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, जिसमें विधानसभा सीटो का निर्धारण करने की भी मांग शामिल है। केंद्र सरकार द्वारा आंदोलनकारियों की मांगों पर सहमति जताने के बावजूद कोई कदम न बढ़ाना भी भाजपा के लिए नुकसान दायक हो सकता है। 15May-2024

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