सोमवार, 20 नवंबर 2023

चौपाल: सामाज को संस्कृति से जोड़ने का माध्यम है सिनेमा: बिन्दा

बॉलीवुड व हरियाणवी फिल्मों बहुआयामी कलाओं से मिली खास पहचान 
               व्यक्तिगत परिचय 
नाम: वीरेन्द्रपाल बिंदा जन्मतिथि: 15 जनवरी 1981 जन्म स्थान: गांव मकडौली कलां, रोहतक(हरियाणा) 
शिक्षा: बीकॉम(ग्रेज्युएट) 
संप्रत्ति: अभिनेता,निर्देशक, लेखक, एडीटर 
संपर्क: अन्ना हजारे मार्किट, रोहतक, मोबा. 7082575925 
BY--ओ.पी. पाल 
 हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता, रीतिरिवाज और बोली देश विदेशों में मिसाल बनती जा रही है, जिसकी पृष्ठभूमि में सूबे के लोक कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों और साहित्यकारों की साधना का अहम योगदान माना गया है। अपनी संस्कृति और लोक कलाओं के संवर्धन में अलग अलग विधाओं में समाज को नई दिशा देने में जुटे ऐसे कलाकारों में रोहतक के वीरेन्द्र पाल बिन्दा भी एक ऐसे बहुआयामी कलाकार हैं, जिन्होंने सामाज में व्याप्त कुरीतियों को अपने गीतो और फिल्मों में अभिनय के जरिए बेबाक उजागर किया है। फिल्मी गीतों के अलावा वेब सीरिज, वृत्तचित्रों का लेखन, निर्देशन, अभिनय और संपादन के क्षेत्र में पिछले दो दशकों से सक्रीय कलाकार वीरेन्द्र पाल बिन्दा ने फिल्म क्षेत्र के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में कई ऐसे पहलुओं का जिक्र किया है, जिसमें वह समाज, खासतौर से युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने के लिए सिनेमा को सबसे बेहतर माध्यम मानते हैं।
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रियाणवी फिल्मों मे अभिनय, निर्देशक, गीतकार और पटकथा लेखक के रुप में पहचान बनाने वाले कलाकार वीरेन्द्र पाल बिन्दा का जन्म रोहतक शहर से सटे गांव मकडौली कलां में एक किसान एवं ब्राह्मण परिवार में समेराम व प्रकाशी देवी के घर में 15 जनवरी 1981 को हुआ। परिवार में आध्यात्मिक माहौल के अलावा किसी प्रकार की लोक कला या साहित्यिक माहौल नहीं था। वीरेन्द्र की प्राथमिक शिक्षा गांव में ही हुई, जबकि उन्होंने स्नातक जाट कॉलेज रोहतक से की। बचपन से ही उन्हें कब्बड़ी खेलने का शौंक था और वे स्कूल व कॉलेज के अलावा राष्ट्रीय स्तर तक कब्बड़ी खेलते रहे हैं। लेकिन उन्हें खेल से ज्यादा गीत लेखन, गायन और अभिनय जैसी कला के प्रति अभिरुचि हुई। वीरेन्द्र का कहना है कि जब वे मैट्रिक करने के बाद उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तो फिल्में देखने और गाने सुनने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि वह भी एक्टिंग और गायन कर सकते हैं। गीत व गाने लिखने और गायन की अभिरुचि के चलते साल 2001 में उन्होंने पहला धार्मिक गीत लिखा, जिसके बाद साल 2003 में उनकी एलबम छोरी छैल छबीली आई, जिसमें उन्होंने निर्देशन के साथ गायन भी किया। इसके बाद हरियाणवी फिल्म तड़पन का निर्देशन किया, जिसके अलावा उन्होंने दर्जनों हरियाणवी फिल्म, सीरियल और वेबसीरिज में पटकथा और गीत भी लिखते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब तक वे 500 से भी ज्यादा गीतों का लेखन और फिल्मों, वृत्तचित्र की पटकथाओं व कहानियों का संपादन भी करते आ रहे हैं। साल 2012 में वीएम इंटरनेशनल चैनल के बैनर तले उन्होंने सीरियल मैं लडूंगी, वारिश कौन तथा चक्कर चौधर का निर्माण किया। जबकि साल 2014 में उन्होंने सिनेमा के लिए गैंगरेप पर आधारित हिंदी बॉलीवुड फिल्म ‘एनसीआर’ का निर्देशन किया, इस दौरान सामने आए आर्थिक और अन्य समस्याओं के कारण उन्हें बेहद संघर्ष के दौर से गुजरना पड़ा, लेकिन वह पीछे नहीं हटे और यह फिल्म साल 2019 के दौरान मुंबई में रिलीज हुई, जिसका डिस्ट्रीब्यूसन आल इंडिया हुआ। जिसका नतीजा भी सकारात्मक मिला। इस फिल्म में जोगेन्द्र कुंडू, सपना चौधरी, अंजली राघव, शिखा राघव, शिवानी राघव आदि कलाकारों के किरदार ने कई राज्यों में धूम मचाई। इस फिल्म में भी उन्होंने अभिनय और गीत लेखन के साथ गायक की भी भूमिका निभाई। यह फिल्म दिल्ली, यूपी, हरियाणा, राजस्थान जैसे कई राज्यों के सिनेमाघरों में चली और उन्हें यहां से फिल्म निर्माण व निर्देशन के साथ अभिनय के रुप में भी एक बड़ी पहचान मिली। इस फिल्म का निर्माण समाज में नारी के प्रति अपराधों के खिलाफ अलख जगाने के मकसद से किया गया। पिछले करीब दो दशक से फिल्म क्षेत्र में सक्रीय वीरेन्द्र पाल बिंदा अब तक 500 से ज्यादा फिल्मी गीतों, वेब सीरिज व वृत्तचित्रों की पटकथा का लेखन, निर्देशन, अभिनय और संपादन कर चुके हैं। 
सामाजिक सरोकार पर फोकस 
हरियाणा के फिल्म निर्देशक एवं अभिनेता वीरेन्द्र पाल का कहना है कि उनकी हिंदी व हरियाणवी फिल्मों की पटकथा में समाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे रहे। इसकी पृष्ठभूमि में उनका मकसद समाज को अपनी संस्कृति, सभ्यता, रीति रिवाज, वेशभूषा के प्रति सजग करना और खासतौर से भ्रूण हत्या, लिंग अनुपात, ऑनर किलिंग, महिलाओं के प्रति अपराधों, नशाखोरी जैसी सामाजिक कुरीतियों को उजागर करना रहा है। उनका कहना है कि सामाज को सकारात्मक विचारधारा के प्रति जागरुक करने का सिनेमा से बेहतर कोई माध्यम नहीं हो सकता, क्योंकि उनकी फिल्मों की कहानियों का अंतिम दृश्य, समाज को सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी संस्कृति से जुड़े संदेश देते हुए एक सबक देता नजर आता है। 
हरियाणा से बॉलीवुड तक पहचान 
सिनेमा हिंदी फिचर फिल्म ‘एनसीआर’ फिचर हिंदी व हरियाणवी में वेबसीरिज अन्यायी, हरियाणवी फिल्म तड़प के अलावा हरियाणवी कॉमेडी फिल्मों रांड्या का कुनबा, ब्याह का रौला, चाय पै लड़ाई, गजबण कुत्ते नै खा ली, उल्हाणा औट लिया, कह दे ना मानू, गजबण फसगी रांड्यां कै, एंडी मर्द, रांड्यां की बहु, बहू साझे की, खींच दे मीटर नै, पोल पाटगी रांड्यां की, एंडी खानदानी, रांड्यां की होली, सिर में भड़क, चरचरी भाभी, कूण में लावैगी, शनिचर चढ़ग्या, सुथरी बहू, दो लूटेरे, बावला पाना, कब्बड़ी, चक्कर चौधर का, मैं लडूंगी और वारिश कौन जैसी फिल्मों में अभिनेता, निर्देशक और लेखक की भूमिका निभाई। सीडी फिल्मों पंचायती फैसला, मेरा इंतजार करना, तड़पन और बनिया बना खलनायक में निभाई गई उनकी भूमिका भी चर्चाओं में रही। हास्य वेबसीरिज के जरिए भी उन्होंने समाज को सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणवी संस्कृति के संवर्धन को लेकर समाज को नई दिशा देने के लिए सामाजिक सरोकार पर आधारित फिल्मों, वेबसीरिज, धारावाहिक के क्षेत्र में समाज में उत्कृष्ट योगदान देने के लिए वीरेन्द्र पाल बिंदा को देश के विभिन्न राज्यों में कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। इनमें प्रमुख रुप से नॉर्दन फिल्कार एसोसिएशन से फिल्म निर्देशक व निर्माता पुरस्कार के अलावा फाइन डिजिटल पुरस्कार जैसे अनेक सम्मान शामिल हैं। 
20Nov-2023

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

साक्षात्कार: हिंदी साहित्य को नया आयाम देते साहित्यकार यशपाल

राष्ट्र, सामाजिक, विज्ञान व अध्यात्म पर काव्य लेखन ने दी पहचान 
                       व्यक्तिगत परिचय 
नाम: यशपाल सिंह ‘यश’ 
जन्मतिथि: 01 अप्रैल 1956 
जन्म स्थान: गांव भंगेला, जिला मुजफ्फरनगर(यूपी)
शिक्षा: बीएससी, एमए(अंग्रेजी साहित्य), सीएआईआईबी, आहार विज्ञान और पोषण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा। संप्रत्ति: सेवानिवृत्त (उप महाप्रबंधक, आईडीबीआई बैंक) 
संपर्क:गुड़गांव(हरियाणा), ईमेल : yeshpalsinghyash@gmail.com, 
फोन : 8920190892, 0124-4018533
 -- BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लेखक एवं साहित्यकार साहित्य, संस्कृति एवं सभ्यता को जीवंत रखने के लिए समाज को नई दिशा देने के लिए साहित्य साधना से अहम योगदान दे रहे हैं। ऐसे ही लेखकों में यशपाल सिंह ‘यश’ उन साहित्यकारों में शुमार है, जिन्होंने अपनी कविताओं और गजलों के लेखन व काव्य पाठ से सामाजिक सरोकार के मुद्दों से पाठकों व श्रोताओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़े रहने का संदेश देने का प्रयास किया है। वहीं उन्होंने विज्ञान और अध्यात्म को गद्य और काव्य विधा के माध्यम से साहित्य को को भी नया आयाम दिया। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साहित्यकार एवं कवि यश्यापाल सिंह ‘यश’ ने अपने साहित्यिक सफर में के दौरान उस अप्रत्याशित लेखन का भी जिक्र किया, जिसमें उन्होंने श्रीमद् भागवत गीता का दोहों में रुपांतरित ग्रंथ लिखकर समाज को बेहतर इंसान के साथ भारतीय संस्कृति, परंपरा और अखंड राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव दिया है। 
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विता एव गजल विधा के साहित्यकार यशपाल सिंह ‘यश’ का जन्म 01 अप्रैल 1956 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले में खतौली तहसील के गांव भंगेला में एक किसान परिवार में हुआ। पिता किसान होते हुए भी अच्छे पढ़े लिखे ग्रेजुएट थे और माता कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन एक गृहणी के रुप में बच्चों को संस्कारित करने में पीछे नहीं रही। परिवार में किसी भी तरह का कोई साहित्यिक माहौल नहीं रहा और न ही कोई लेना देना था, लेकिन माता पिता ने उन्हें हमेशा पढ़ाने पर ध्यान दिया और उन्होंने विज्ञान में स्नातक करने के बाद अंग्रेजी साहित्य में एमए किया। जबकि दिल्ली में सीएआईआईबी, आहार विज्ञान और पोषण में स्नातकोत्तर डिप्लोमा तथा खाद्य और पोषण में प्रमाणपत्र कोर्स किया और परिवार के साथ गुरुग्राम में रहने लगे। चूंकि उन्हें पढ़ने लिखने का शौंक बचपन से ही था। इसलिए साहित्य के प्रति एक लगाव होने की वजह से कभी-कभी कुछ अंग्रेजी कविताएं लिखने लगे। बैंक की सेवा में आने के उपरांत बैंक की पत्रिका के लिए हिंदी में कुछ लेख, कविताएं इत्यादि लिखना शुरु हुआ तो बैंक के हिंदी विभाग द्वारा प्रोत्साहन के कारण और बैंक के अन्य सहकर्मियों द्वारा सराहना मिलने लगी। इससे बढे आत्मवविश्वास ने उनके कविता लेखन को विस्तार दिया। बैंक में नौकरी करते हुए वे दिल्ली के अलावा चंडीगढ़ आदि कई शहरों में रहे। बकौल यशपाल उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी कि वे एक साहित्यकार बनेंगे, लेकिन कविताएं लिखने और सुनाने पर एक बार उनके घनिष्ठ मित्र देवेन्द्र भाटिया ने उन्हें लेखन के प्रति गंभीर और संवेदनशील होने की सलाह दी, जिसके बाद उनके एक अन्य मित्र और राजभाषा अधिकारी प्रदीप अग्रवाल ने उन्हें जो परामर्श सहयोग दिया, तो उनका पहला काव्य संग्रह ‘मंजर गवाह हैं’ के रूप में प्रकाशित हुआ, जिसका लोकार्पण उनकी उप महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त के दिन यानी 31 मार्च 2016 को बैंक के दिल्ली कार्यालय में ही हुआ। सेवानिवृत्ति के बाद वह कविताएं लिखने में जुट गये और यदा-कदा जब भी मौका मिला तो सार्वजनिक मंच से कविता पाठ भी किया। उनके सामने एक और रोचक मोड़ तब आया, जब एक यात्रा के दौरान डॉ. राधाकृष्णन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता गीता पर लिखी हुई पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते उनके मन में विचार आया कि क्यों न भगवद्गीता गीता को दोहों में रूपांतरित किया जाए। जबकि उस समय तक उन्हें दोहे का शिल्प भी पूरी तरह ज्ञात नहीं था। फिर भी वह यात्रा शुरू की और इसकी परिणीति ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ एक पुस्तक लिखी, जिसने उन्हें बड़ी पहचान दी। यशपाल सिंह यश ने बताया कि शुरुआत में सामाजिक मुद्दों पर ही इस लिए ज्यादा लिखते थे, लेकिन बाद में विज्ञान और अध्यात्म के लेखन ने भी उन्हें ऐसी पहचान दी कि चंद्रयान-2 पर लिखी गई उनकी कविता ‘प्यारे विक्रम’ का प्रसारण तो दूरदर्शन से भी हुआ। यही नहीं उनकी विज्ञान, अध्यात्म और सामाजिक सरोकार पर लिखी गई कविताओं का दूरदर्शन तथा आकाशवाणी से प्रसारण हुआ है। वहीं उनके लेखों और कविताओं का विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन भी होता आ रहा है। साइंस एंड पोएटरी यूट्यूब चैनल से भोजन, स्वास्थ्य और विज्ञान संबंधित चर्चाएं का प्रसारण भी उनकी उपलब्धियों में शामिल हैं। 
यहां से मिली बड़ी पहचान
भारत सरकार के विज्ञान प्रसार विभाग एक फोन ने उनके लेखन को ऐसा नया आयाम दिया कि उन्होंने विज्ञान कविताएं भी लिखना शुरु किया और ‘अंतररष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव’ में विज्ञान पर लिखी कविताएं पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यहां से उन्हें कविता लिखने और सुनाने के लिए बड़ी पहचान मिली। इसी विज्ञान कवि सम्मेलन में वे प्रख्यात साहित्यकार पंडित सुरेश नीरव के संपर्क में आए, जिन्होंने प्रोत्साहन देते हुए उनका आत्मविश्वास बढ़ाया और उनकी साहित्यिक संस्था अखिल भारतीय सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति के तत्वावधान में कई ऑनलाइन तथा ऑनलाइन काव्य गोष्ठियों में सम्मिलित हुआ, जहां बहुत से साहित्यकारों से परिचय हुआ। उनके साहित्यिक सफर में एक और ऐसा रोचक मोड़ तब आया, कि डॉ. राधाकृष्णन द्वारा श्रीमद्भगवद्गीता गीता पर लिखी हुई पुस्तक को पढ़ते-पढ़ते उनके मन में विचार आया कि क्यों न भगवद्गीता गीता को दोहों में रूपांतरित किया जाए। जबकि उस समय तक उन्हें दोहे का शिल्प भी पूरी तरह ज्ञात नहीं था। फिर भी वह यात्रा शुरू की और इसकी परिणीति ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ एक पुस्तक लिखी, जिसने उन्हें बड़ी पहचान दी। उनकी कविताओं की विभिन्न विधाओं के लेखन एवं काव्य पाठ से उन्हें देश-विदेश में श्रोताओं ने सराहना मिली। 
हिंदी साहित्य पर आधुनिकता की छाया 
इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर यशपाल सिंह यश का कहना है कि साहित्य अच्छी है, लेकिन जहां तक हिंदी साहित्य की बात है, उन्हें लगता है कि वह पिछड़ता जा रहा है। साहित्य लिखा जा रहा है, बहुत अच्छा भी लिखा जा रहा है लेकिन हिंदी साहित्य में रुचि बहुत कम रह गई है। हिंदी साहित्य के पाठक कम इसलिए हो रहे हैं कि सारी हिंदी की पत्रिकाएं बंद हो रही हैं। उनका मानना है कि किसी भी समाज का मध्यम वर्ग उसके चिंतन और संस्कृति की दिशा तय करता है। आज भारत में मध्यम वर्गीय परिवारों के बच्चे अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पढ़ रहे हैं और हिंदी पढ़ना, सीखना अब उनकी प्राथमिकता में नहीं है। अगर समाज का यह वर्ग हिंदी से दूर हो जाएगा तो निश्चित रूप से ही हिंदी साहित्य को पाठकों की कमी रहेगी। जहां तक युवा पीढ़ी में साहित्य की रुचि कम होना है, उसके लिए उन्हें गंभीर साहित्य को पढ़ने के लिए विशेष प्रेरणा और प्रोत्साहन देने की जरुरत है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार ने अभी तक कविता संग्रह 'मंजर गवाह हैं', 'आँखिन देखी' तथा 'जीवन गरम चाय की प्याली' प्रकाशित हुआ है। सबसे बड़ी उपलब्धियों में श्रीमद भगवद्गीता का दोहों में रुपांतरण के रुप में उनका ‘संपूर्ण भगवद्गीता दोहों में’ नामक ग्रंथ इसी साल प्रकाशित हुआ है। इसके अलावा उनका विज्ञान कविताओं का एक संग्रह के प्रकाशन के लिए भारत सरकार के विज्ञान प्रसार विभाग द्वारा स्वीकृति प्रदान की है, जो जल्द ही पाठकों के सामने होगा। इसके अलावा सामाजिक सरोकार, स्वस्थ्य, भोजन, विज्ञान संबन्धित आलेख व कविताएं पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
साहित्य को विज्ञान और अध्यात्म से जोड़कर नया आयाम देने वाले लेखक एवं कवि यशपाल सिंह यश को भारत सरकार के विज्ञान प्रसार ने सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट देकर सम्मानित किया। इसके अलावा उन्हें साहित्य भूषण सम्मान, ‘समझ’ साहित्यिक संस्था नागदा, साहित्य विभूति सम्मान तथा अखिल भारतीय सर्व भाषा संस्कृति समन्वय समिति के संस्कृति समन्वय सम्मान जैसे अनेक पुरस्कारों से विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक मंचों से सम्मान मिल चुका है।
06Nov-2023

सोमवार, 30 अक्तूबर 2023

चौपाल: संस्कृति के संवर्धन में जुटी लोक गायिका ईशा पांचाल

 ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’जैसे भजन से छोटी उम्र में ही संगीत में मिली बड़ी पहचान
                  व्यक्तिगत परिचय 
नाम: ईशा पांचाल 
जन्मतिथि: 20 जून 2003 
जन्म स्थान: गांव रुखी, जिला सोनीपत(हरियाणा)
शिक्षा: स्नातक, संगीत गायन में मास्टर डिग्री           (अध्ययनरत) 
संप्रत्ति: लोक संस्कृति गायक कलाकार, छात्रा 
संपर्क: गांव रुखी, सोनीपत(हरियाणा), मोबा. 7082575925 
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BY-ओ.पी. पाल 
रियाणा के लोक कलाकार अपनी विभिन्न विधाओं से हरियाणवी लोक संस्कृति का संवर्धन एवं संरक्षण करने में जुटे हैं। ऐसे ही नवोदित लोक कलाकारों में लोक गायिका ईशा पांचाल ने छोटी सी उम्र में आध्यात्मिक गीत लेखन और गायन में जो लोकप्रियता हासिल की है, उसकी गूंज देश-विदेश में भी सुनाई देती है। लोक संगीत के क्षेत्र में भजन गायकी के साथ ही उसने देशभक्ति, सामाजिक, तीज त्यौहार और सरकारी योजनाओं के अभियानों में भी अपनी गायन शैली की ऐसी छाप छोड़ी है कि यूथ ट्यूब चैनलों पर उसके भजन गीतों को सुनकर हर कोई मंत्रमुग्ध हो जाता है। सामाजिक गतिविधियों में भी सक्रिय रहते हुए वह अपनी कला से समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने में जुटी हुई है। भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित ईशा पांचाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपनी लोक गायन शैली को लेकर कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिससे यह साबित होता है कि लोक कला संगीत एवं संस्कृति के बिना समाजिक तानाबाना अधूरा है। 
रियाणा की युवा गीतकार ईशा पांचाल का जन्म 20 जून 2003 को सोनीपत जिले के गांव रुखी में एक साधारण किसान चांद सिंह व लक्ष्मी देवी के घर में हुआ। इनका परिवार आध्यात्मिक है, लेकिन संगीत या किसी कला से कोई ताल्लुक नहीं रखता। परिवार में आध्यात्मिक माहौल के बीच ही उनकी माता भजन आदि गुनगुनाती रहती हैं तो उसका प्रभाव ईशा पर भी पड़ता नजर आया। इसी कारण आज अध्यात्मिक, सामाजिक व देशभक्ति गायन में ईशा जिस प्रकार आगे बढ़ रही है उसके पीछे उनकी माता व बहन अन्नू के प्रोत्साहन की अहम भूमिका हैं, जो कुछ भजन या गीत लिखती है, उन्हें संगीत देने का काम ईशा करती आ रही है। वह संगीत को सुर ताल देने के लिए हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्र में भी निपुण है। बकौल ईशा जब वह छह साल की थी तो तब उसने गुरुकुल में भी गायन सीखा, लेकिन कक्षा नौ में वह डॉ. स्वरूप सिंह गवर्नमेंट मॉडल संस्कृति स्कूल सांघी में पढ़ने चली गई, जहां उनके संगीत गुरु सोमेश जांगड़ा ने एक भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ सिखाया, जिसे संगीत देकर उसने गाना शुरु किया, तो यह भजन इतना लोकप्रिय हुआ कि उससे बेहद प्रसिद्धि मिली। जब वह दसवीं कक्षा में ही थी कि उनके आध्यात्मिक गायन पहला भजन ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भी बेहद पसंद आया। इसके अलावा उनके अन्य भजन व गीत ऐसे हैं, जिन्होंने उसे देश ही नहीं विदेशों में भी लोक गीतकार के रुप में पहचान दी है। हरियाणा के अलावा देश के उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, चंडीगढ़, मुंबई, जम्मू कश्मीर जैसे राज्यों में धार्मिक आयोजन में उसके मंगल गीत सुनने की हमेश श्रोताओं से मांग आती रहती हैं। इसी कारण बढ़ते आत्मविश्वास और हौंसलों ने उसे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिल रही है। यही कारण है कि कला संस्कृति के क्षेत्र में गीतकार के रुप में अपने भजन गायकी के सफर को सुहाना बनाने के मकसद से वह स्नातक करने के बाद फिलहाल वह एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक से संगीत गायन में ही एमडीयू यूनिवर्सिटी रोहतक में मास्टर डिग्री(एमए) कर रही हैं। जहां तक संगीत गायन के क्षेत्र में परेशानियों को लेकर ईशा का मानना है कि जब कोई भी व्यक्ति नया सीखने और करने की राह पर चलता है, तो अड़चने या उतार चढ़ाव हर किसी के सामने आना स्वाभाविक है, लेकिन उसने पीछे मुड़ने के बजाए ‘सूर्य की तरह चमकना है तो सूर्य की तरह जलना पड़ेगा, मुश्किल तो हर राह होती हैं मेरे दोस्त, गर मंजिल पानी हैं तो तुझे बिना रुके चलना पड़ेगा..जैसी पक्तियों को चरितार्थ करने का ही प्रयास किया। उनके भजन संगीत का मुख्य फोकस आध्यात्म के जरिए समाज को अपनी संस्कृति से जोड़ने पर रहा है, लेकिन उनका देशभक्ति, सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर भी गीत लेखन और गायन के जरिए समाज और लोगों को कला संस्कृति को विकसित करने के लिए आगे रहने का संदेश देना प्रमुख मकसद है। हालांकि आज की कला संस्कृति पहले से कहीं ज्यादा विकसित हैं और हर बच्चा, बूढ़ा, जवान अपनी कला को लोगो तक पहुंचाने में सक्षम हैं। ईशा की दृष्टि में आज का युग बेहद खूबसूरत और कलात्मक भी है। 
लोकप्रिय भजन व गीत 
लोक गीतकार ईशा पांचाल के प्रसिद्ध भजनों में ‘बता मेरे यार सुदामा रै..’ के अलावा उड़जा उड़जा काले काम, सुबह सवेरे लेकर तेरा नाम प्रभु, काला काकाल कहवै गुजरी और सुदामा कैसे आये आदि हैं। इसके अलावा वह देशभक्ति के गीत भी लिखकर जारी कर चुकी हैं, तो वह समाजिक जागरुकता के लिए भी भजन व गीतों को लांच करके खूब सुर्खियां बटोर रही है। ईशा के हरियाणवी संस्कृति पर आधारित अब तक 200-250 भजन अलग अलग कंपनियों के माध्यम से आ चुके हैं इन सभी भजनों में हरियाणा की संस्कृति, समाज में फैली कुरीतियों एवं देश की समस्याओं के अलावा देश भक्ति पर आधारित गीतों से यही प्रयास किया गया है कि अपनी संस्कृति को विकसित करने के लिए समाज सजग रहे। फिलहाल हरियाणवी संस्कृति पर संस्कार टीवी पर भी काम चल रहा है। साल 2020 में मुंबई में भजनों का एक प्रोजेक्ट भी किया गया है। 
धार्मिक कार्यो का हुआ विस्तार 
हरियाणा की प्रसिद्ध भजन गायक ईशा पांचाल का कहना है कि इस इस आधुनिक युग में भी लोक कला संस्कृति के क्षेत्र में अध्यात्मिक संगीत या धार्मिक कार्यों का प्रचलन का बेहद विस्तारित हो रहा है। इसमें आज की युवा पीढ़ी भी कहीं ज्यादा रुचि लेकर अध्यात्मिक गतिविधियों से जुड़ रही है। मगर एक बहुत गंभीर समस्या यह देखने में आ रही हैं, कि युवा वर्ग को सही दिशा निर्देश नहीं मिल रहा है। मसलन बच्चो को माता पिता का सानिध्य मिलना और अपने बच्चों को छूट देना अच्छी बात हैं, लेकिन अभिभावकों को यह भी ध्यान रखने की जरुरत है कि उनका बच्चा की किस माहौल में रह रहा है और उनका संग कैसे बच्चों से है। इसलिए माता पिता को बच्चों की रुचि के अनुसार सकारात्मक रुचि दिखानी चाहिए। 
पुरस्कार व सम्मान 
लोक संगीतकार सुश्री ईशा पांचाल को भारत गौरव अवॉर्ड के अलावा बेस्ट सिंगर अवॉर्ड, महिला सशक्तिकरण अवॉर्ड जैसे अनेक पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। एक बार राष्ट्रीय स्तर और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत दो बार राज्य स्तर पर हरियाणा लोक गीत में प्रथम स्थान मिल चुका है। यूथ रेडक्रास कैंपों में सोलो संगीत में अव्वल स्थान पाने वाली ईशा और उसकी टीम की भजन गायन शैली इतनी प्रभावशाली है कि साल 2017 में एमडीयू रोहतक में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी भी ईशा व उसकी टीम को सम्मानित कर चुके हैं। इसके अलावा इस लोक गायिका को मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री के हाथो भी सम्मानित होने का सौभाग्य मिला है। 
30Oct-2023

बुधवार, 25 अक्तूबर 2023

साक्षात्कार: कालजयी कृतियों के रचनाकार हास्य कवि डा. तेजिन्द्र

साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में निरंतर सक्रिय 
                      व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. तेजिंद्र (तेजिंद्र पाल सिंह) 
जन्मतिथि: 01 मई 1963 
जन्म स्थान: कैथल (हरियाणा)। 
शिक्षा: एमए( हिंदी, अंग्रेज़ी, इतिहास), बीएड.एमफ़िल (हिंदी), पीएचडी(हिंदी)। 
संप्रत्ति: स्वतंत्र लेखन, सेवानिवृत्त प्राध्यापक (इतिहास)। 
 संपर्क: म.न. 859, सेक्टर-19 भाग-2 हुडा, कैथल (हरियाणा)। मोबा. 94166 58454 
BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की संस्कृति, सभ्यता,सामाजिक रीति रिवाज तथा परंपराओं के संरक्षण देने वाले लेखकों में कवि डा. तेजिन्द्र ऐसे साहित्यकार है, जिन्होंने भूत, वर्तमान और भविष्य तीनों कालों की महत्वपूर्ण अनुभूतियों से प्रेरित होकर अपनी कालजयी कृतियों का रचना संसार रचा है। उन्होंने एक हास्य-व्यंग्य कवि के रुप में लोकप्रियता हासिल की, लेकिन साहित्यिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक और सामाजिक कार्यो में सक्रियता भी उनकी एक संवेदनशील व्यक्तित्व एवं कृतित्व के धनी के रुप को प्रकट करती है। कवि कर्म और काव्य में सामाजिक चेतना की दिशा में उनकी हंसिकाओं की ऐसी बानगी रही, कि उन्होंने राजनीति, समाज को अपनी रचित हास्य व्यंग्य कविताओं से बेबाक कटाक्ष करने में कभी संकोच नहीं किया। वहीं बाल मनोहार के लिए बाल कविता संग्रह में उनकी काव्य रचनाओं में ऐसी सलरता, सहजता, बोगम्यता एव ध्वन्यात्मकता जैसे विशेष गुण विद्यमान हैं, जिन्हें बच्चे सरलता से कंठस्थ कर सकते हैं। इतिहास के प्राध्यापक पद से सेवानिवृत्त साहित्यकार, कवि एवं लेखक डा. तेजिन्द्र ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर कई ऐसे अनुछुए पहलुओं को भी उजागर किया है, जिससे में रचना संसार में विचरण करने वाला कोई भी व्यक्ति साहित्यिक साधना कर सकता है। 
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रियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं हास्य कवि डा. तेजिन्द्र का जन्म 01 मई 1963 को कैथल(ननिहाल) में जगदीश राम व मामो देवी के यहां हुआ था, जो हिंदी, अंग्रेजी और इतिहास यानी तीन विषयों में स्नातकोत्तर और बीएड के अलावा हिंदी में पीएचडी की उपाधि हासिल कर चुके हैं। राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय राजौंद, ज़िला कैथल में प्राध्यापक (इतिहास) से 30 अप्रैल 2021 को सेवानिवृत्त डा. तेजिन्द्र मूल रूप से कुरुक्षेत्र जिले के गांव दूधला के रहने वाले हैं। जब उनके दादा रामजीलाल का देहांत हुआ तो उनके पिता के सौतेले मामा बासोराम दादी और पिता, ताऊ व चाचा को लेकर अपने कैथल जिले के गाँव क्योड़क आ गये। फिर मामा के देहांत के बाद दादी ने सिलाई का काम करके पिता समेत अपने तीनों पुत्रों का पालन-पोषण किया। सख्त स्वभाव की दादी सनातन धर्म में विश्वास रखने के साथ्ज्ञ अनुशासन प्रिय थीं। बकौल तेजिन्द्र दादी निर्मला बचपन में उन्हें कहानियां सुनाती थी, वहीं घर में अखबार और पत्रिकायें भी आतीं थीं, तो उनमें प्रकाशित कवितायें और कहानियाँ पढ़ने में उनकी रुचि रही और घर में ट्रांजिस्टर पर प्रसारित होने वाले भजन, धार्मिक गीत और रामायण की चौपाइयाँ भी दादी उन्हें सुनतीं थीं। हर रविवार को रेडियो पर बच्चों के कार्यक्रम में कविता, गीत और कहानी भी सुनने को मिलती रही। इससे उन्हें बचपन में ही घर के भीतर आध्यात्मिक और साहित्यिक माहौल मिला। यही कारण था कि स्कूली शिक्षा के दौरान ही उनकी साहित्य के प्रति अभिरुचि हो गई थी। वे पाठ्यक्रम में साहित्यिक सामग्री पढ़ते थे। कालेज में पुस्तकालय में अख़बार और पत्रिकायें पढ़ता रहता था। हरियाणा के प्रसिद्ध कवि ओम प्रकाश आदित्य की कवितायें मुझे अच्छी लगतीं थीं और उनकी कवितायें पढ़ते-पढ़ते मन में आया कि वह भी कुछ लिख सकते हैं। तेजिन्द्र के पिता स्वयं उर्दू शायरी के शौकीन थे। जब वह कैथल जिले के राजकीय उच्च विद्यालय क्योड़क, ज़िला कैथल में पढ़ते थे, जहां उनके पिता क्लर्क थे। डा. तेजिन्द्र ने बताया कि स्कूल में होने वाली बाल सभाओं में भी वे कवितायें सुनाते थे और कॉलेज में शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने लेखन कार्य भी शुरू कर दिया। वह प्रतिदिन गाँव क्योड़क से कैथल के आरकेएसडी कालेज में पढ़ने के लिये आते थे और उस समय बसों के आवागमन में बड़ी परेशानी होने लगी तो इन्हीं परिस्थितियों पर उन्होंने कुछ पंक्तियां लिखकर महससू किया कि उनकी कविता तैयार हो गई। वे पंक्तियाँ अपनी बड़ी बहन को दिखाईं, तो वह आश्चर्यचकित लहजे में बोली ये कविता आपने लिखी? कालेज के मित्रों ने भी उनकी कविता देखकर खुश हुए। इसके बाद उन्होंने अपनी लेखन यात्रा आरम्भ कर दी और यहीं से उनकी कविताओं का जन्म हुआ और उनकी पहली रचना सार्वजनिक हुई। उनके द्वारा कविताएं लिखने का धीरे-धीरे कालेज में उनके प्राध्यापकों डा. भगवान दास निर्मोही, डा. राणा प्रताप गन्नौरी, प्रोफ़ेसर अमृत लाल मदान, प्रो विजय दत्त शर्मा, प्रो. जेसी शर्मा, डा. एस.डी. मिश्रा आदि को भी पता चला। सभी ने उन्हें निरंतर लेखन करने के लिए प्रेरित किया। प्रो. अमृत लाल मदान तो आज भी उनके मार्गदर्शक हैं। 
सामयिक घटनाओं पर फोकस 
डा. तेजिन्द्र की रचनाओं का फोकस किसी विशेष मुद्दे पर नहीं, बल्कि घटनाओं को देखकर उनकी कलम चलती आ रही है। हालाकि वे समाज और देश में हर किसी को प्रभावित करने वाली घटनाओं पर भी उनकी कलम चली है और उन्होंने आतंकवाद के दौर में पंजाब के आतंकवाद पर कवितायें लिखीं। बच्चों के लिए बाल कविताओं के फोकस और हास्य और व्यंग्य में क्षणिकाओं के लेखन ने उन्हें हास्य कवि के रुप में एक विशेष पहचान दी है। डा. तेजिन्द्र साहित्य सभा कैथल में वर्ष 1987 से सदस्य और वर्ष 2002 से प्रेस सचिव पद की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। जबकि 2017 से अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा की कैथल ईकाई के ज़िला संयोजक एवं जिलाध्यक्ष का पदभार भी संभाल रहे हैं। वे अखिल भारतीय इतिहास संकलन समिति हरियाणा के जिला कैथल के सदस्य भी हैं। 
हाशिए पर जा रहा है साहित्य 
आधुनिक युग में प्रचुर मात्रा में साहित्य लिखा जा रहा है और प्रकाशित भी हो रहा है। कविता, कहानी और उपन्यास विधा के साहित्य का प्रकाशन अधिक मात्रा में हो रहा है। आज जिस तेजी से पुस्तकें लिखी और प्रकाशित हो रहीं हैं, उतना पढ़ा नहीं जा रहा है। इसी प्रकार काव्य-गोष्ठियों में भी प्राय: वे लोग अधिक होते हैं जो खुद कवि और श्रोता की भूमिका में होते हैं। इसका कारण यही है कि आज इलेक्ट्रोनिक मीडिया और सोशल मीडिया की चकाचौंध में साहित्य हाशिये पर आ गया है और सोशल मीडिया ने तो कवियों की बाढ़ ला दी है। इसलिए साहित्य में मात्रात्मक वृद्धि तो हुई है, लेकिन गुणात्मक विस्तार देखने को नहीं मिलता। साहित्य के पाठकों की कमी होने का भी प्रमुख कारण टेलिविज़न और सोशल मीडिया का अधिक प्रसार होना है। वहीं छात्र भी पुस्तकालयों में जाकर अपनी प्रतियोगितात्मक परीक्षाओं की तैयारी में जुटे रहते हैं और साहित्य पढ़ने का उन्हें समय तक नहीं है। आज के युवाओं को साहित्य के प्रति प्रेरित करने के लिए साहित्यकारों को उनकी रुचि के साहित्य का सृजन करने की जरुरत है। युवाओं को साहित्य से जोड़ने से ही सामाजिक विचारधारा को भी सकारात्मक ऊर्जा दी जा सकेगी। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार डा. तेजिन्द्र पाल सिंह की अब तक प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से काव्य संग्रह तिनका-तिनका, आतंक के दायरे में, भावना, बाल कविता संग्रह, मोबाइल बाँग लगाता है, लघु शोध प्रबंध ग़ज़ल के आईने में:गुलशन मदान, शोध-प्रबंध हिंदी ग़ज़ल एवं अन्य काव्य-विधायें, एकल नाटक अमर शहीद सरदार भगत सिंह शामिल हैं। कविता के अलावा वे लघुकथा आलेख, भूमिका, समीक्षा, शोध-आलेख भी लिखते आ रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
साहित्य सेवा में उत्कृष्ट योगदान के लिए डा. तेजिन्द्र को हरियाणा के अलावा राजस्थान, उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड, दिल्ली व कर्नाटक आदि राज्यो की विभिन्न सरकारी और ग़ैर सरकारी संस्थाओं से दो दर्जन से भी ज्यादा पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इन पुरस्करों में प्रमुख रुप से साहित्य गौरव सम्मान, बीसवीं शताब्दी रत्न सम्मान, वरिष्ठ प्रतिभा सम्मान, शांतिदेवी स्मृति साहित्य-रत्न सम्मान, ज्ञानोदय साहित्य सेवा सम्मान, शब्द सेतु नवल सम्मान, अभ्युदय श्री सम्मान, एक्सीलेंस अवार्ड शामिल हैं। इसके अलावा उन्हें हरियाणा प्रदूषण बोर्ड की सलोगन प्रतियोगिता में भी सम्मान मिला है। 
  23Oct-2023

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

चौपाल: कला और सांस्कृतिक संवर्धन का पर्याय है फल्गु उत्सव

पुरखों के पिंडदान करने की परंपरा का केंद्र बना है फल्गु तीर्थ 
By-ओ.पी. पाल 
रियाणा में कुरुक्षेत्र के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शुमार फल्गु तीर्थ का फल्गु उत्सव आज हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन के केंद्र के रुप में पहचाना जाने लगा है। मसलन कैथल जिले के गांव फरल स्थित फल्गु तीर्थ की महत्ता इतनी बढ़ गई है कि वार्षिक फल्गु उत्सव से हरियाणा कला परिषद् के माध्यम से सीधे हरियाणा सरकार भी जुड़ गई और इस वर्ष के उत्सव में हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ने भागीदारी की है। फल्गु तीर्थ स्थल पर वर्ष 2011 में शुरु हुए फल्गु उत्सव में एक दशक से ज्यादा समय लगातार हरियाणा एवं आसपास के राज्यों के साहित्यकार एवं लोक कलाकार सामाजिक सरोकार से जुड़े संदेशों के साथ अपनी प्रस्तुतियां देकर परंपरागत कलाओं और संस्कृति के प्रति समाज को दिशा देने का प्रयास करते आ रहे हैं। हरिभूमि संवाददाता ने फल्गु उत्सव में प्रस्तुति देने आए लोक कलाकारों, साहित्यकारों एवं कवियों ने बताया कि आज फल्गु उत्सव परंपरा कला और संस्कृति को जीवंत रखने की दिशा में एक बड़ा प्रयास साबित हुई। 
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रियाणा के कुरुक्षेत्र का नाम दुनियाभर में उन स्थानों में अग्रगण्य है, जहां सबसे पहले मानव सभ्यता का विकास होना माना गया है। कुरुक्षेत्र यानी कुरुओ का क्षेत्र। कुरूक्षेत्र की 48 कोस पवित्र भूमि हरियाणा के कुरूक्षेत्र, कैथल, करनाल, जीन्द एवं पानीपत जिलों में फैली हुई है। वामन पुराण के अनुसार घने वनों से आच्छादित कुरूक्षेत्र भूमि में काम्यक वन, अदिति वन, व्यास वन, फल्कीवन, सूर्यवन वन, मधुवन तथा शीतवन यानी सात वन थे। पावन नदियों सरस्वती और दृषद्वती के जल से पोषित फल्कीवन, जो महर्षि श्री फल्क की तपोभूमि होने के कारण वन प्रदेश फल्कीवन कहलाया। कालांतर में फल्कीवन से फल्गु तीर्थ के कारण ही फल्कीवन का नाम फरल गांव पड़ा, जो वर्तमान में गाँव फरल जिला कैथल में स्थित है। कुरुक्षेत्र के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों में से एक फल्गु तीर्थ का यह तीर्थ स्थान पितृकर्म के लिए विश्वभर में विख्यात है। जिसका वर्णन महाभारत, वामन पुराण मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में उपलब्ध होता है। फल्गु उत्सव के संयोजक के रुप में साहित्यकार और संस्कृति साधक दिनेश शर्मा ने बताया कि इस तीर्थ स्थल पर फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा परिकल्पित 'फल्गु उत्सव' का उद्देश्य इस उत्सव को वार्षिक फल्गु मेले का स्थान देना है, जिससे कला और संस्कृति के संरक्षण और संवर्धन के साथ फल्गु तीर्थ को एक पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। हरियाणा सरकार के प्रबंधन में फल्कीवन अर्थात फल्गु तीर्थ पर पितृपक्ष में सोमवती अमावस्या पर विशाल मेले का आयोजन होता आ रहा है, जहां अपने पूर्वजों के निमित पिंड दान करने के लिए देश–विदेश से लाखों श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। लेकिन विड़ंबना यह है कि राज्य सरकार सोमवती अमावस्या पर मेले को अभी तक साल 1991 से 2018 तक सात मेले ही आयोजित कर पाई है और अगला मेला साल 2028 में प्रस्तावित है। सनातन परंपराओं के जानकारों के अनुसार मेलों के बीच आने वाला वर्षो का अंतर भावी पीढ़ी तक संस्कार और संस्कृति के पूर्ण प्रेषण में बाधक है। इस मेले के लंबे अंतराल के मद्देनजर पिछले करीब छह दशक से प्राचीन श्री फल्क ऋषि मंदिर की देखरेख करते आ रहे मंदिर के उपासक जयगोपाल शर्मा और उनके परिवार के मार्गदर्शन में फल्गु मंदिर सुधार समिति के माध्यम से वर्ष 2011 से हर वर्ष पितृपक्ष में फल्गु उत्सव आयोजित करता आ रहा है। इसमें समाजसेवी सुभाष गर्ग, दिल्ली के समाजसेवी विजय सिंगला, कुरूक्षेत्र के समाजसेवी जयभगवान सिंगला, उत्सव प्रबंधक मुकेश शर्मा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग कर रहे हैं। इस उत्सव संयोजन समिति सचिव दिनेश शर्मा का कहना है कि कला और संस्कृति संवर्धन के इस प्रयास की सार्थकता और प्रामाणिकता यही है कि हरियाणा में विभिन्न सरकारी नौकरियों के लिए ली जाने वाली परीक्षाओं में भी ‘फल्गु उत्सव कब और कहाँ आयोजित होता है? जैसे सवाल पूछे जाते हैं। 
लोक कला और संस्कृति का संगम 
फल्गु मंदिर सुधार समिति द्वारा हर साल निरंतर आयोजित किये जाए रहे फल्गु उत्सव में अलग अलग विधाओं की कलाओं से जुड़े साहित्यकर्मी और लोक कलाकार हरियाणवी रागनी, लोकनृत्य, लोककला, सांग, भजन, कवि सम्मेलन, नाटक, कहानी मंचन जैसी सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के जरिए समाज को अपनी परंपराओं और संस्कृति से जुड़े रहने का सकारात्मक संदेश देते आ रहे हैं। इस उत्सव में देश के शिक्षा, कला और संस्कृति जगत की विशिष्ट विभूतियां अतिथि के रूप में उपस्थित रहती हैं। उत्सव में सारा गाँव पारिवारिक आयोजनों की तरह ही भागीदारी करता है। ऐसे कलाकारों में अब तक साहित्य एवं लोक कलाओं से जुड़े सैकड़ो विभूतियां उत्सव में हिस्सा लेकर अपनी कलाओं की छटाएं बिखेरते रहे हैं। हाल में 30 सितंबर से 2 अक्टूबर तक हुए तीन दिवसीय फल्गु उत्सव में लोकगायन संध्या, लोककला संध्या और लोककाव्य संध्या में सुविख्यात कवियों और कलाकारों ने कलाओं और संस्कृतियों के संगम की धाराएं प्रवाहित की। इस दौरान लोककला से जुड़े कलाकारों सांरगी वादक इंदर लांबा, बीन वादक हरपाल नाथ, हरियाणवी रागनी गायको विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अलावा राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय, कृष्ण गोपाल सोलंकी आदि ने हिस्सेदारी की। 
लोककला व साहित्य की दृष्टि में उत्सव 
फल्गु उत्सव को मार्गदर्शन प्रदान करने वाले महानुभावों का चिंतन भी इस फल्गु तीर्थ को लेकर संदर्भ में महत्वपूर्ण है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ चंद्र त्रिखा के कहते हैं कि एक सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जिससे जुडकर और तीर्थ के दर्शन करना एक सुखद अनुभूति से कम नहीं है। देश में हिन्दी मंच संचालन के शिखर पुरुष जैनेन्द्र सिंह की माने तो फल्गु उत्सव अपनी कला, संस्कृति और परंपराओं को समर्पित एक सकारात्मक सफल प्रयास है, जो समाज के लिए प्रेरणा का कार्य करता है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के संयुक्त सचिव डॉ जी एस चौहान का मानना है कि शिक्षा और सांस्कृतिक चेतना का नाम फल्गु उत्सव है, जो युवाओं को भारतीय परंपराओं, संस्कार तथा संस्कृति के गौरव से परिचित करवाता है। वरिष्ठ नाट्यकर्मी एवं संगीत नाटक अकादमी चंडीगढ़ के अध्यक्ष सुदेश शर्मा का कहना है कि हरियाणा कला परिषद् के उपाध्यक्ष रहते हुए 2016 में इस उत्सव से जुड़ना संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयासों में स्वयं का सार्थक योगदान प्रतीत होता है। उनका सपना है कि ये उत्सव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाए। लोककलाओं से जुड़े कलाकारों इंदर लांबा, हरपाल नाथ, राजकुमार जंगम आदि ने माना कि फल्गु उत्सव लोककलाओं के प्रचार- प्रसार का बेहतरीन कार्य करता है। लुप्त होती लोककलाओं का सरंक्षण करता है और कलाकारों के लिए रोजगार का अवसर पैदा करता है। हरियाणवी रागनी गायकों विकास हरियाणवी, सुरेश भाणा, अमित मलिक, अमित बरोदा के अनुसार यह हरियाणा का श्रेष्ठ और मर्यादित सांस्कृतिक आयोजन है, जो पारिवारिक वातावरण में संस्कृति के प्रसार का सच्चा प्रयत्न है। वहीं राष्ट्रीय कवियों महेंद्र अजनबी, चरणजीत चरण, विनीत पाण्डेय की बात मानें तो ऐसे पावन स्थान पर संस्कृति के साथ हिन्दी के प्रसार के लिए कवि सम्मेलन अपने आप में ही विशेष हो जाता है क्योंकि तीर्थ स्थान स्वयमेव जागृत संस्कृति होते हैं और समाज में संस्कार बनाए रखते हैं। इंद्रप्रस्थ अध्ययन केंद्र दिल्ली के अध्यक्ष विनोद शर्मा विवेक, कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड के मानद सचिव उपेन्द्र सिंहल, लंदन में बसे रोहतक निवासी विश्व प्रसिद्ध रेडियो कलाकार रवि शर्मा, राष्ट्रपति सम्मान से सम्मानित अंतरराष्ट्रीय लोक कलाकार तथा हरियाणा कला परिषद् हिसार मण्डल के अतिरिक्त निदेशक महाबीर गुड्डू ने भी ने भी हरियाणा सरकार और समिति को ऐसे अद्भुत के लिए हरियाणा सरकार, हरियाणा कला परिषद् और उत्सव आयोजन समिति को साधुवाद दिया। 
महाभारत में फल्गु तीर्थ का उल्लेख 
इस पावन तीर्थ पर श्री फल्क ऋषि के मन्दिर के साथ-साथ अनेक सुन्दर मन्दिर हैं। यहां सरोवर के घाट के पास अष्टकोण आधार पर निर्मित 17वीं शताब्दी की मुगल शैली में बना शिव मन्दिर है, जो लगभग 30 फुट ऊंचा है। यहां स्थित सरोवर की लम्बाई 800 फुट और चैडाई 300 फुट है। मुगल शैली में एक और शिव मन्दिर है जो लगभग 20 फुट ऊंचा है तथा आकार में वर्गाकार है। वर्ग की एक भुजा 9 फुट 6 इंच है। यहीं एक अन्य मन्दिर जो राधा-कृष्ण का भी है जो नागर शैली में बना हुआ है। जिसका शिखर शंकु आकार का है। इन सभी उपरोक्त वर्णित मन्दिरों में निर्माण के दौरान लाखौरी ईटों से किया गया है एवं परवर्ती काल में इनका जीर्णोद्धार आधुनिक ईटों के द्वारा किया गया है। घाट के पास ही एक अत्यन्त प्राचीन वट वृक्ष है। जिसे लोग श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। इसी क्षेत्र में पणिश्वर तीर्थ स्थित है। जिसका उल्लेख महाभारत के अनुशासन पर्व के दसवें अध्याय में पाणिखात के नाम से प्राप्त होता है। 
16Oct-2023

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

पी-20 शिखर सम्मेलन: संसदीय अध्यक्षों ने की वैश्विक मुद्दों पर सार्थक चर्चा

मानव केंद्रित विकास में सामूहिक लक्ष्य हासिल पर प्रतिबद्धता: ओम बिरला 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। भारत की अध्यक्षता में जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद सभी सदस्य देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों ने राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में दो दिन तक चले पी-20 शिखर सम्मेलन में चार सत्रों के दौरान एसडीजी, हरित ऊर्जा, महिला नेतृत्व वाले विकास और डिजिटल सार्वजनिक इन्फ्रस्ट्रक्चर जैसे वैश्विक मुद्दों पर सार्थक चर्चा की गई। 
नई दिल्ली में द्वारका स्थित ‘यशोभूमि’ इंडिया इंटरनेशनल कन्वेंशन एंड एक्सपो सेंटर (आईआईसीसी) में 13-14 अक्टूब यानी दो दिन तक चले पी-20 शिखर सम्मेलन में के दौरान जी-20 देशों की संसदों के पीठासीन अधिकारियों समेत करीब 30 देशों के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया और सार्थक चर्चा की। भारत की जी-20 अध्यक्षता के तहत पी-20 शिखर सम्मेलन के समापन भाषण में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि पी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता में योगदान देने के लिए जी20 देशों की संसदों और आमंत्रित देशों के पीठासीन अधिकारियों देशों द्वारा संयुक्त वक्तव्य को सर्वसम्मति से स्वीकार करने से पी-20 प्रक्रिया और मजबूत हुई है। बिरला ने ‘एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के लिए संसद’ विषय पर पी-20 शिखर सम्मेलन की सफलता में योगदान देने के लिए सभी देशों और उनके प्रतिनिधिमंडल के सदस्यों को धन्यवाद दिया। उन्होंने पिछले दो दिनों के दौरान हुए विचार-विमर्श ने जी-20 के संसदीय आयाम के महत्व को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया है और यह भी स्थापित किया है कि किस प्रकार हमारी संसदें एक पृथ्वी, एक परिवार और एक भविष्य के सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। भारत की पी-20 अध्यक्षता के समापन पर लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पी-20 की अध्यक्षता ब्राजील की संसद को सौंप दी है और ब्राजील को उनकी आगामी जी-20 अध्यक्षता के लिए बधाई भी दी है। 
वैश्विक चुनौतियों पर गंभीर 
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि सम्मेलन में कई सदस्यों ने विचार-विमर्श के लिए चयनित विकास एजेंडा से अलग हटकर कीजियो-पोलिटिकल घटनाएं और आर्थिक जैसे मुद्दे और वैश्विक चुनौतियों का भी उल्लेख किया। वहीं कुछ अन्य सदस्यों के बहु-पक्षवाद को मजबूत करने, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और सप्लाइ चेन के रेजि-लीएन्स जैसे मुद्दों पर बिरला ने कहा कि हम संघर्षों और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान का समर्थन करते हुए अंतरराष्ट्रीय शांति, समृद्धि और सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए उत्प्रेरक के रूप में प्रासंगिक मंचों पर संसदीय राजनय और परस्पर संवाद जारी रखेंगे। संसद अध्यक्षों ने भविषय में अपने पूर्ण एजेंडा और अपनी साझा प्रतिबद्धताओं के पी-20, जी-20 और उससे आगे बढ़ाने का संकल्प दोहराया। 
बिरला की द्विपक्षीय मुलाकात 
पी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अंतर-संसदीय संघ (आईपीयू) के प्रेसिडेंट दुआर्ते पचेको, रूसी संघ की फेडरल असेंबली की फेडरेशन काउंसिल की स्पीकर, श्रीमती वेलेंटीना मतवियेंको, यूरोपीय संसद की वाइस प्रेजिडेंट सुश्री निकोला बीयर, तुर्की की ग्रैंड नेशनल असेंबली के स्पीकर श्री कुर्तुलमस, सिंगापुर की संसद के स्पीकर, महामहिम श्री सियाह कियन पेंग, नीदरलैंड की सीनेट के प्रेसिडेंट, श्री जान एंथोनी ब्रुइजन, दक्षिण अफ्रीका की अपने समकक्ष पीठासीन अधिकारी, महामहिम सुश्री नोसिविवे नोलुथांडो मापिसा-नकाकुला और मेक्सिको के चैंबर ऑफ डेप्युटीज़ की प्रेसिडेंट सुश्री मार्सेला गुएरा कैस्टिलो आदि के साथ अलग-अलग मुलाकात कर द्विपक्षीय बैठकें भी की हैं। 
ब्राजील को बधाई दी 
आपकी मेजबानी करना मेरे और मेरी टीम के लिए प्रसन्नता का विषय है। मुझे आशा है कि भारत में आपका प्रवास सुखद रहा होगा। उन्होंने सभी सदस्य देशों से आग्रह किया कि आप अपने प्रवास के दौरान भारत के समृद्ध इतिहास और बहुरंगी संस्कृति का पूर्ण आनंद लें। वह आपके पुनः भारत आगमन पर आपका स्वागत करने और जनकल्याण के विषयों पर अपनी चर्चा को आगे जारी रखने के लिए उत्सुक हैं। उन्होंने इस अवसर पर ब्राजील को उनकी आगामी जी-20 अध्यक्षता के लिए बधाई देते हुए उनकी सफलता की कामना भी की। 
15Oct-2023

शनिवार, 14 अक्तूबर 2023

P-20 शिखर सम्मेलन: महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से संसदीय परंपरा भी समृद्ध होगी: मोदी

संयुक्त संसदीय प्रयासों से निकलेगा चुनौतियों का समाधान: ओम बिरला 
प्रधानमंत्री ने किया पी20 शिखर सम्मेलन का उद्घाटन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने नौवें जी20 देशों के संसदीय अध्यक्षों के पी20 शिखर सम्मेलन में कहा कि नारी शक्ति वंदन अधिनियम विधायी क्षेत्र में संतुलित नीति निर्माण के लिए आदर्श परिस्थिति सृजित कर महिलाओं के सम्मान को समग्र रूप में बल प्रदान करेगा। वहीं भारत जैसी लोकतांत्रिक देश की संसदीय परंपरा को कहीं ज्यादा समृद्ध की जा सकेगी। यहां नई दिल्ली में शुक्रवार को शुक्रवार को नौवें जी20 देशों के संसदीय अध्यक्ष सम्मेलन (पी20) के उद्घाटन करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भारत हर क्षेत्र में महिलाओं की सहभागिता को बढ़ावा दे रहा है। संसद के विशेष सत्र में पारित किए गये नारी शक्ति वंदन कानून में महिलाओं को लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई हिस्सेदारी देने के प्रावधान है, जिससे महिलाओं के सशक्त होने के साथ संसदीय परंपरा को और भी समृद्ध करने में मदद मिलेगी। उन्होंने काह कि भारत की स्थानीय स्व-शासी संस्थाओं में लगभग 50 प्रतिशत निर्वाचित प्रतिनिधि महिलाएं हैं। मोदी ने कहा कि सहभागिता वाले लोकतंत्र में महिलाओं की अधिक संख्या होना महत्वपूर्ण है। 
आतंकवाद दुनिया के लिए एक चुनौती 
पीएम मोदी ने कहा कि आतंकवाद जहां भी होता, किसी भी कारण, किसी भी रूप में होता वह मानवता के खिलाफ होता है। ऐसे में आतंकवाद को लेकर हम सभी को सख्ती बरतनी होगी। आतंकवाद की परिभाषा को लेकर आम सहमति ना बन पाना बहुत दुखद है और आज भी यूएन भी इसका इंतजार कर रहा है। दुनिया के इसी रवैया का फायदा मानवता के दुश्मन उठा रहे हैं। दुनिया भर के प्रतिनिधियों को सोचना होगा की आतंकवाद के खिलाफ हम कैसे काम कर सकते हैं। आतंकवाद को लेकर हम सभी को लगातार सख्ती बरतने की अपील करते हुए कहा कि भारत कई वर्षों से सीमा पार आतंकवाद का सामना कर रहा है और करीब दो दशक पहले आतंकवादियों ने हमारी संसद को उस समय निशाना बनाया था, जब संसद का सत्र चल रहा था। आज भी आतंकवाद दुनिया के लिए एक बड़ी चुनौती है। इसलिए दुनिया की संसदों और उनके प्रतिनिधियों को आतंकवाद के खिलाफ साथ मिलकर लड़ाई लड़ने के लिए काम करने पर विचार करना होगा। 
आम चुनाव देखने का दिया निमंत्रण 
पीएम मोदी ने कहा भारत में हम लोग आम चुनाव को सबसे बड़ा पर्व मानते हैं। 1947 में आज़ादी मिलने के बाद से अब तक भारत में 17 आम चुनाव और 300 से अधिक विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव ही नहीं कराता, बल्कि इसमें लोगों की भागीदारी भी बढ़ रही है। उन्होंने कहा कि 2019 का आम चुनाव मनाव इतिहास की सबसे बड़ी मानव कसरत थी। इसमें 60 करोड़ वोटर ने हिस्सा लिया। तब भारत में 91 करोड़ पंजीकृत मतदाता थे, जो पूरे यूरोप की कुल आबादी से अधिक है। भारत की यह लोकतंत्र प्रक्रिया यह दिखाती है कि भारत में लोगों का संसदीय प्रक्रियाओं में कितना भरोसा है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत चुनावों के दौरान पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए 25 वर्षों से अधिक समय से ईवीएम का उपयोग कर रहा है। 2024 में, आम चुनावों के दौरान लगभग 100 करोड़ या एक बिलियन मतदाता अपना वोट डालने जा रहे हैं। वह सभी प्रतिनिधियों को अगले आम चुनाव देखने के लिए भारत आने के लिए आमंत्रित करते हैं। 
समकालीन चुनौतियों के समाधान पर मंथन का मंच 
पी20 शिखर सम्मेलन में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि बिरला ने कहा कि यह सम्मेलन लोकतांत्रिक मूल्यों, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और वैश्विक महत्व के विषयों और समकालीन चुनौतियों के समाधान के लिए संयुक्त संसदीय प्रयासों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। इसका यह भी कारण है कि भारत की अध्यक्षता में हाल ही में संपन्न हुए जी20 शिखर सम्मेलन में नई दिल्ली लीडर्स डेक्लरैशन को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया, जो प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के वैश्विक दृष्टिकोण और सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों की वैश्विक मुद्दों पर प्रतिबद्धता और एकजुटता को दर्शाता है। बिरला ने कहा कि भारत की जी-20 की अध्यक्षता समावेशी, आकांक्षी, कार्य-उन्मुख, निर्णायक और जन-केंद्रित रही है। 
कोरिया की स्पीकर के साथ द्विपक्षीय भेंट 
लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पी20 शिखर सम्मेलन के अवसर पर कोरिया गणराज्य की नेशनल असेंबली के स्पीकर किम जिन-प्यो से भेंट की। बिरला ने उन्हें बताया कि वर्ष 2023 भारत और कोरिया दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस वर्ष दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों के 50 वर्ष पूरे हुए हैं। उन्होंने आगे कहा कि भारत और कोरिया गणराज्य के बीच बहुआयामी रणनीतिक साझेदारी है। राजनीति, व्यापार, निवेश, रक्षा, संस्कृति, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और दोनों देशों के लोगों के बीच संपर्क जैसे विभिन्न क्षेत्रों में हमारे संबंध मजबूत हुए हैं। बिरला ने इस बात का उल्लेख भी किया कि बौद्ध भिक्षुओं की यात्राओं और ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से बौद्ध धर्म ने दोनों देशों के बीच संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने भारत और कोरिया गणराज्य के बीच संसदीय सहयोग को और बढ़ाए जाने पर जोर दिया। 
14Oct-2023