दोनों दलों की घेराबंदी कर कांग्रेस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। ओडिशा में सत्तारूढ़ दल बीजू जनता दल के तिलिस्म को तोड़ने के लिए राजनीतिक दलों में प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। ओडिशा की सियासत में दोस्ती करके कांग्रेस को पछाड़ने वाले बीजद व भाजपा में इस बार चुनावी गठबंधन परवान नहीं चढ़ सका है। इसलिए भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजद की दो तरफा घेराबंदी करके ऐसा सियासी चुनावी चक्रव्यूह रचा है, जिसका मकसद लोकसभा में अधिकांश सीटों पर जीत हासिल करने के साथ ही भाजपा विधानसभा चुनाव में भी बीजद को पटखनी देना है, लेकिन पिछले ढ़ाई दशक से सत्तारूढ़ बीजद का गढ़ बन चुके ओडिशा में किसी भी दल के लिए सियासी चुनौती देने की डगर आसान नहीं होगी? सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजद भी प्रतिद्वंद्वी दलों के खिलाफ नई चुनावी रणनीति के साथ अपने सियासी वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए मजबूती के साथ चुनावी जंग के मैदान हैं। ओडिशा के इस चुनाव में भाजपा और बीजद के साथ सीधा मुकाबला होने के आसार है, लेकिन कांग्रेस भी दो हजार के दशक से पहले की सियासी जमीन पर वापसी करने के इरादे इस चुनावी जंग को त्रिकोणीय बनाने का भरकस प्रयास कर रही है।
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 13 मई को ओडिशा के पहले दौर के चुनाव में चार लोकसभा और 28 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। इस बार यहां लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा व बीजद के बीच गठबंधन करके चुनाव मैदान में आने की कवायद चली, लेकिन ऐनवक्त पर शायद भाजपा के अनुसार सीटों पर बिगड़ी बात को लेकर इन दोनों का गठबंधन पटरी पर नहीं आ सका। इसी वजह से भाजपा ने ओडिशा में बीजद को दोहरी चुनौती देने की चुनावी रणनीति का ताना बाना बुना, जिसमें बीजद के कदावर सांसद भृतहरि महताब समेत केई दिग्गज नेताओं को भाजपा में शामिल कर लिया और लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव में भी बीजद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जबकि इससे पहले 1998 से 2009 तक यानी चार बार लोकसभा चुनाव गठबंधन करके लड़े है, जिसका लाभ यहां से धीरे धीरे कांग्रेस का प्रभाव कम होता चला गया। इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने भी इस बार ओडिशा में चुनावी रण में अपने पुराने वर्चस्व को हासिल करने के इरादे से भाजपा और बीजद को चुनौती देने की आक्रमक रणनीति तैयार की है। मसलन ओडिशा में लोकसभा चुनाव में भाजपा और बीजद के सभी 21 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, तो वहीं कांग्रेस ने 20 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है और एक सीट अपने सहयोगी दल झामुमो को दी है। हालांकि ओडिशा में सीपीआई, सीपीआईएम, एआईएफबी, बसपा व आप जैसे दलों ने भी सियासी जमीन तलाशने के लिए कुछ सीटों पर अपने प्रत्याशियों पर दांव खेला है। खास बात ये भी गौरतलब है कि भाजपा और बीजद के बीच गठबंधन टूटने के बाद ओडिशा राजनीतिक विरोध के बावजूद नवीन पटनायक की बीजद राजग का हिस्सा न होते हुए भी संसद के भीतर और बाहर राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा के लिए संकट मोचक के रुप में नजर आई। यानी राष्ट्रीय मुद्दों पर हमेशा ही हर बार मोदी सरकार का समर्थन किया। अटल बिहारी बाजपेयी की केंद्र सरकार में बीजद प्रमुख नवीन पटनायक इस्पात व खान मंत्री रह चुके हैं।
ये रहा चुनावी इतिहास
ओडिशा राज्य की 21 लोकसभा सीटों के लिए बारहवीं लोकसभा के लिए 1998 में पहली बार भाजपा व बीजद ने मिलकर चुनाव लड़ा, जिसमें बीजद नौ व भाजपा सात सीटों पर जीतकर आया तो यहां से कांग्रेस का वर्चस्व कम होने लगा। इसके बाद दोनों दलों ने गठबंधन के साथ तीन और चुनाव लड़े और दोनों के सियासी जनाधार में सुधार आया, तो यह बीजद का गढ़ बन गया। साल 2014 में पहली बार दोनों दलों ने अलग चुनाव लड़ा, तो बीजद का सबसे ज्यादा 20 सीटे मिली और बाकी एक सीट भाजपा के खाते में गई। जबकि पिछले 2019 चुनाव में भाजपा ने आठ सीट जीतकर वापसी की और कांग्रेस को एक सीट पर संतोष करना पड़ा। इससे पहले ओडिशा के लोकसभा चुनावों में साल 1967,1977 और 1989 के चुनाव छोड़कर ज्यादातर चुनाव में कांग्रेस ही सिरमौर रही है, जिसे आखिरी बार 1996 के चुनाव में दहाई के अंक में सीटे मिली, लेकिन उसके इससे पहले चुनाव तक एक सीट पर आकर सिमट गई। फिलहाल ओडिशा में लोकसभा की 21 में बीजद 12, भाजपा आठ और कांग्रेस एक सीट पर काबिज है। जबकि विधानसभा की 147 सीटों में से बीजद के 112, भाजपा के 23 तथा कांग्रेस के नौ विधायक हैं।
राज्य में 3,36,46,762 मतदाता
राज्य में कुल वोटरों की संख्या 3,36,46,762 है, जिनमें 1,70,39,900 पुरुष, 1,66,03,401 महिला तथा 3]461 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस चुनाव में 18-19 आयु वर्ग के 7,99,334 युवा मतदाता पहली बार वोटिंग करेंगे। इनके अलावा ओडिशा में 5.20 लाख दिव्यांग, तीन लाख 85 साल से अधिक आयु के बुजर्गो के अलावा सौ साल से अधिक आयु के नौ हजार मतदाता भी मतदान करेंगे।
ओडिशा में जातीय समीकरण
ओडिशा में 94 प्रतिशत आबादी हिंदू, जिसमें 40 प्रतिशत एससी और जनजातीय आबादी शामिल है। जबकि राज्य में 2 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और 3 प्रतिशत आबादी ईसाई आबादी है। लेकिन यहां की सियासत पर 5 प्रतिशत ब्राह्मणों और पटनायकों यानी करण-कायस्थ का लंबे समय सिक्का जमा हुआ है और यहां की सत्ता में पिछ़ड़ों और एससी की हिस्सेदारी नाम मात्र ही कही जा सकती है। इसलिए ओडिशा में जाती या धर्म की सियासत के कोई मायने नहीं रखते।
चार चरणों में होगा चुनाव
पहला चरण (13 मई): कालाहांडी, नबरंगपुर, बेरहामपुर, कोरापुट लोकसभा के साथ 28 विधानसभा सीट।
दूसरा चरण (20 मई): बरगढ़, सुंदरगढ़, बोलांगीर, कंधमाल, अस्का लोकसभा के साथ में 35 विधानसभा सीट।
तीसरा चरण(25 मई): संबलपुर, क्योंझर, ढेंकनाल, पुरी, भुवनेश्वर, कटक लोस के साथ में 42 विधानसभा सीट।
चौथा चरण (01 जून):मयूरभंज,बालासोर,भद्रक,जाजपुर, केंद्रपाड़ा, जगतसिंहपुर लोस व 42 विधानसभा सीट।
10May-2024
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें