वरिष्ठ लेखकों की रचनाओं को हरियाणवी में अनुवाद ने दी पहचान
व्यक्तिगत परिचय
नाम: जयभगवान सैनी
जन्मतिथि: 14 जनवरी 1959
जन्म स्थान: भिवानी (हरियाणा)
शिक्षा: एम.ए.(लोक प्रशासन), एमबीए, एलएलबी, डिप्लोमा सिविल इंजीनियरिंग, एमएमसी(पत्रकारिता)।
संप्रत्ति: संप्रत्ति: सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य(आईटीआई) एवं स्वतंत्र साहित्य लेखन
संपर्क: 496सी/120सी, ढाणी बड़वाली, हिसार(हरियाणा), मो. 7988338502
BY-ओ.पी. पाल
साहित्य जगत के मूर्धन्य विद्वानों का भी ऐसा मत रहा है कि जब सामाजिक और अपनी संस्कृति का संवर्धन करने के मकसद से लेखन का जुनून सिर चढ़कर बोलता है, तो समर्पित साहित्य साधना से उसके लक्ष्य को मंजिल मिल ही जाती है। ऐसे ही हिंदी और हरियाणवी भाषा में लेखन करने वाले जयभगवान सैनी ने एक वरिष्ठ साहित्यकार के रुप में लोकप्रियता हासिल की है। उन्होंने गद्य व पद्य दोनों विद्या में जिस प्रकार से अपने साहित्यिक रचना संसार को गति दी है, उसमें उन्होंने अनेक वरिष्ठ साहित्यकारों की पुस्तकों का हरियाणवी भाषा में अनुवाद करके साहित्यिक जगत में लेखकों की फेहरिस्त में अपना नाम दर्ज कराया। अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसमें उन्होंने सामाजिक सभ्यता और संस्कृति को सामयिक तथ्यों के साथ सर्वजन हिताय में साहित्य की सार्थकता को चरितार्थ किया है।
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साहित्यकार जयभगवान सैनी का जन्म भिवानी जिले में 14 जनवरी 1959 को किशनलाल सैनी व श्रीमती तुलसी देवी के घर में हुआ था। उनका परिवार की पृष्ठभूमि में गरीबी से जूझते हुए एक कृषक मजदूर की रही है। उनके परिवार व कुटूम्ब में कोई भी ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था। परिवार में मैट्रिक पास करने वाले जयभगवान ही पहले सदस्य रहे, जिन्होंने व्यक्तिगत परीक्षा देकर मैट्रिक की शिक्षा हासिल की। इसलिए उसके परिवार में साहित्य या कला जैसा माहौल होने का का काई सवाल ही पैदा नहीं होता। उनका परिवार भिवानी से हिसार आकर बस गया था, तो जयभगवान की शिक्षा दीक्षा हिसार में ही हुई। उन्हें बचपन से ही पढ़ने-लिखने के शौक था, जिसके कारण उन्होंने उच्च शिक्षा में मास्टर डिग्री और एलएलबी के अलावा इंजीनियरिंग का डिप्लोमा भी किया। परिजनों ने उनकी शिक्षा के लिए सहयोग व प्रोत्साहन भी दिया। औद्योगिक प्रशिक्षण विभाग(आईटीआई) में प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्ति के बाद वे निरंतर साहित्य साधना में जुटे हुए हैं। हालांकि साहित्य के प्रति उनका स्कूल व कालेज में शिक्षारत रहते ही बेहद रुझान रहा और इसी कारण वह साहित्यकार भी बन गये। बकौल जयभगवान सैनी, उनकी साहित्य लेखन के प्रति रूचि गद्य विद्या में थी और शायद उनकी लिखी हुई पहली रचना के रुप में कहानी ‘तबादला’ हरियाणा साहित्य अकादमी की पत्रिका हरिगंधा में 1999 में छपी। उन्होंने बताया कि 26 जनवरी 2001 को जब गुजरात में भूकंप आया था, तब वह गाँधी धाम की सेवा में गये थे, जहां उनके मित्र वीरेन्द्र कौशल ने उन्हें पद्य में भी लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके बाद वह पद्य विद्या में भी लिखने लगे और उनकी कविताएं राष्ट्रीय अखबारों में भी छपने लगी, तो उनका गद्य और पद्य दोंनों विधाओं में लेखन के लिए आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। हालांकि साहित्यिक सफर के दौरान उन्हें कई खट्टे मीठे अनुभवों से भी गुजरना पड़ा। मसलन जब वह इस क्षेत्र में मार्गदर्शन के कुछ ऐसे साहित्यकारों से मिले, जो अपने आपको उच्च कोटि के साहित्यकार मानते थे, लेकिन प्रोत्साहित करने के बजाए उन्होंने उसे दुतकार कर भगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन उन्हें लिए प्रो. रूप देवगुणजी, डा. मधुकांत, डा. जयभगवान सिंगला, डा.ओमप्रकाश कादयान,डा. अशोककुमार ‘मंगलेश’, आनन्दप्रकाश ‘आर्टिस्ट’ आदि अच्छे साहित्यकारों का सानिध्य मिला, जिन्होंने दुतकारने वाले साहित्यकारों को मुहंतोड़ जवाब देकर उनका मार्गदर्शन करते हुए बेहद प्रोत्साहित किया, जिनके मार्ग दर्शन से आज वह एक साहित्यकार के रुप में लोकप्रिय हैं। उनके साहित्यिक सफर में यह भी खासबात यह भी रही कि उन्होंने ऐसे प्रसिद्ध और वरिष्ठ साहित्यकारों की कृतियों का हरियाणवी भाषा में अनुवाद करके अपनी साहित्यिक प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी साहित्यिक रचनाओं का फोकस सामाजिक जीवन और सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दे रहे हैं, जिनमें पढ़ना-लिखना, खाना-पीना, फल-सब्जियाँ, पहनना-ओढ़ना, चलना-फिरना, सोना-उठना, पेड़-पौधे, गाँव-शहर, प्रकृति के अलावा देश विदेश की सामयिक घटनाओं संबन्धित विषय शामिल हैं। वे देश के विभिन्न राज्यों के धार्मिक स्थलों की यात्रा करके उनका अवलोकन कर चुके हैं।
आधुनिक युग में लड़खड़ाया साहित्य
वरिष्ठ साहित्यकार एवं अनुवादक जयभगवान सैनी का कहना है कि आज के इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति इतनी दयनीय है कि वह लड़खड़ा रहा है। साहित्य के पाठक कम होने का प्रमुख कारण भी यही है। हालांकि आज के दौर में मोबाइल में व्यस्त खासकर युवा पीढ़ी को समय के अभाव में माता पिता का पहले जैसे समय की तरह मार्ग दर्शन और संस्कार नहीं मिल पा रहे हैं और न ही दादा दादी से पढ़ने-लिखने, बोलने-चालने के संस्कार न मिलना भी साहित्य को प्रभावित कर रहे हैं, जिसका सीधा कुप्रभाव समाज पर पड़ रहा है।उनका कहना है कि युवाओं को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने के लिए स्कूल-कॉलेज के पाठ्यक्रमों में साहित्य को अधिक से अधिक शामिल करने की आवश्यकता है, जिसकी पुस्तकालयों में उपलब्धता और उसक प्रचार प्रसार पर अधिक ध्यान देना जरुरी है। वहीं साहित्य में आ रही गिरावट के लिए ऐसे लेखक और साहित्यकार भी जिम्मेदार हैं, जो सस्ती और जल्दी लोकप्रियता हासिल करने के लिए पाश्चत्य संस्कृति परोस रहे हैं, जो युवाओं के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाले समय में समाज के लिए भी घातक है। इसलिए साहित्यकारों की भी जिम्मेदारी है कि वे समाज में सकारात्मक विचारधारा का संदेश देने वाले साहित्य का सृजन करें।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ साहित्यकार जयभगवान सैनी की प्रकाशित तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तकों में पांच यात्रा संस्मरण-श्री अमरनाथ यात्रा एवं गंगा मैया, डगर-डगर-नगर-नगर, रास्तों में रास्ते, वे सुनहरे पल व चलें धामों की ओर, तीन बाल साहित्य-कलरव करते पक्षी, पक्षियों का संसार, चुन्नू-मुन्नू, पांच कविता संग्रह-उम्मीदें, फलो का फल, सब्जीनामा, धरोहर की पाती व धरती मां(हरियाणवी अनुवादित), दस लघु कविता संग्रह-लुप्त-विलुप्त, मन की गंगोत्री, अतीत के झरोखें, दिवस में दिवस, मैने पूछा, विभूतियों की महिमा, प्रो. रुप देवगुण:अतीत की झलकियां, एक पै अगराई मैं, अन्न पै अधिकार सभी का के अलावा कहानी संग्रह-घटना-दुर्घटना प्रमुख रुप से शामिल हैं। इसके अलावा उमडती हरियाणवी यादें शीर्षक से उनकी आत्मकथा भी सुर्खियों में हैं।
पुरस्कार व सम्मान
हरियाणवी भाषा में अनुवादक एवं साहित्य जगत में उत्कृष्ट योगदान के लिए जयभगवान सैनी को देश और प्रदेशों में सामाजिक और साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अनेक बार सम्मानित किया गया है। उन्हें प्रमुख रुप से साहित्य गौरव सम्मान, लघु कविता सेवी सम्मान, लघु कविता सृजन सम्मान, लघु कविता रत्न सम्मान, जयलाल दास स्मृति सम्मान जैसे पुरस्कारों से नवाजा गया है। वहीं देश के विभिन्न राज्यों के राज्यपालों द्वारा उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है और उन्हें कई उपाधियों व पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका हैं।
30Dec-2024
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