लघुकथाओं, कहानियों व उपन्यास लेखन में हासिल की लोकप्रियता
व्यक्तिगत परिचय
नाम: लाजपत राय गर्ग
जन्मतिथि: 14 फरवरी 1952
जन्म स्थान: सिरसा (हरियाणा)
शिक्षा: प्रभाकर, बी.ए.(ऑनर्स), एम.ए.(अंग्रेज़ी व हिन्दी), डिप्लोमा इन ट्रांसलेशन।
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त अतिरिक्त आयुक्त आबकारी एवं कराधान, हरियाणा, स्वतंत्र लेखन
संपर्क: 150, सेक्टर 15, पंचकूला (हरियाणा), मो. 9216446527, ईमेल : blesslrg@gmail.com
By--ओ.पी. पाल
भारतीय संस्कृति में साहित्य को समाज का दर्पण माना जाता है। साहित्य क्षेत्र में लेखक, साहित्यकार, कवि, गजलकार, उपन्यासकार, कहानीकार समाज को सकारात्मक ऊर्जा के साथ दिशा देने के लिए साहित्य सर्जन करते आ रहे हैं। ऐसे ही वरिष्ठ साहित्यकार लाजपत राय गर्ग ने भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत, सामाजिक विसंगतियों, पारिवारिक रिश्तों, सभ्यता, परंपराओं, कन्या भ्रूण हत्या, नारी शिक्षा जैसे सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर बेबाक लेखन करके समाज को नई दिशा देने का प्रयास किया है। उनके लेखन में सकारात्मक संदेश के माध्यम से पर्यावरण प्रदूषण, गौ-सेवा, नेत्रदान, रक्तदान, देहदान, जैविक खेती, गुरु-शिष्य परम्परा, मित्रता की पावन भावना जैसे समसामयिक विषयों का फोकस भी समाज को सकारात्मक संदेश समाहित है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने साहित्यिक सफर को लेकर वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार लाजपत राय गर्ग ने कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिनमें आज के बदलते इस परिवेश में भी समाज, संस्कृति एवं सभ्यताओं को जीवंत रखने के लिए साहित्य की अहम भूमिका है।
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साहित्य के क्षेत्र में लोकप्रिय वरिष्ठ साहित्यकार लाजपत राय गर्ग का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरियाणा के सिरसा में वजीर चन्द और श्रीमती शीला देवी के घर में हुआ था। दरअसल उनका परिवार विभाजन के समय बहावलपुर रियासत के एक छोटे से क़स्बे से विस्थापित होकर सिरसा आकर बस गया था। विभाजन से पूर्व और बाद में उनके परिवार की परवरिश एक दुकान से होती रही। विस्थापन से पूर्व परिवार की समृद्धि का उल्लेख दादा-दादी के मुख से बहुत बार सुना, लेकिन विभाजन की त्रासदी स्वरूप परिवार को लम्बे समय तक अभावों का सामना करना पड़ा। दादा जी पाँच भाई थे, जिनमें दो दादा-भाई विभाजन से पूर्व और बाद में इकट्ठे ही रहे। छोटे दादा जी नि:संतान थे, उनका तथा छोटी दादी का मुझे भरपूर प्यार मिला। प्रत्यक्ष रूप से तो परिवार में साहित्यिक माहौल जैसा कुछ नहीं था, किन्तु छोटी दादी सोने से पहले मुझे तरह-तरह की कहानियाँ सुनाया करती थीं और छोटे दादा जी मुझे हमेशा अपने साथ रखते थे। वे मुझे सुबह की सैर कराने के साथ हर रविवार को गुरुद्वारा कीर्तन सुनने के लिए लेकर जाते थे। वह स्वयं भी श्रीगुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया करते थे। स्कूल में प्रवेश से पूर्व ही दुकान पर रहते हुए उन्होंने मुझे हिन्दी, अंग्रेज़ी, पंजाबी के बहुत से शब्दों का ज्ञान करवा दिया था। उन्होंने ही भ्रमण के लिए प्रोत्साहित किया। उनें ताया बचपन से सूरदास थे, जिनकी स्कूल समय से ही सेवा करने का उन्हें अवसर मिला। लाजपत राय की पाँचवीं से आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई आर्य स्कूल में हुई, जहां एक अध्यापक ने महापुरुषों की जीवनियां पढ़ने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने पुस्तकें पढ़ने के लिए छठी कक्षा में सार्वजनिक पुस्तकालय की वार्षिक सदस्यता ग्रहण की। यहीं से महापुरुषों की जीवनियों के साथ रामायण, महाभारत, सिक्ख इतिहास और प्रेमचन्द को पढ़ने का शुरु हुआ सिलसिला आज तक जारी है। बकौल लाजपत राय गर्ग, जब वह दसवीं कक्षा में पढ़ रहे थे, तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की सिरसा इकाई ने स्वामी विवेकानंद पर स्कूल और कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए एक लेख प्रतियोगिता आयोजित की, जिसमें उनके लेख को पुरस्कार तो नहीं मिला, किन्तु वह लेख जालन्धर से प्रकाशित होने वाले दैनिक समाचार पत्र ‘जन प्रदीप’ में प्रकाशित हुआ। इस तरह से उस लेख को प्रथम रचना कहा जा सकता है। दसवीं परीक्षा के दौरान ही लिखी एक छोटी सी कहानी ‘चूड़ियाँ’ लिखी, जो कॉलेज की पत्रिका में प्रकाशित हुई। उस समय ‘लघुकथा’ विधा का तो कोई ज्ञान था नहीं, लेकिन 2019 में यही रचना लघुकथा के साझा संकलन ‘लघुकथा मँजूषा’ में सम्मिलित हुई। उनकी रुचि मुख्यत: कथा लेखन में है, लेकिन उपन्यास उनकी प्रिय विधा है। उन्होंने कॉलेज पत्रिका का एक साल हिन्दी विभाग का और एक साल अंग्रेज़ी विभाग का संपादन भी किया। वहीं उन्होंने करुणा (वार्षिक) बारह वर्ष, गौ माँ का ज्ञान (त्रैमासिक) तीन वर्ष, लघुकथा मँजूषा के सह-संपादन की भी भूमिका निभाई। दरअसल साल 1978 में राजकीय सेवा में नियुक्ति के उपरान्त लेखन अवरुद्ध हो गया, लेकिन साहित्य की लगभग हर विधा को पढ़ने का क्रम निरन्तर बना रहा। मसलन उनके सक्रिय साहित्य लेखन का सिलसिला सेवानिवृत्ति के पाँच छह वर्ष बाद साल 2016 में पहले उपन्यास ‘कौन दिलों की जाने’ से शुरू हुआ उसके बाद सात उपन्यास लिखे गये। गर्ग की रचनाओं के फोकस में पारिवारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर विचार-विमर्श रहा है। भारतीय सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत, पारिवारिक रिश्तों की महत्ता, समसामयिक विषयों यथा कन्या भ्रूण हत्या, नारी शिक्षा, पुस्तकों का हमारे जीवन में महत्त्व, पर्यावरण प्रदूषण, गौ-सेवा का महत्त्व, नेत्रदान, रक्तदान, देहदान, जैविक खेती की उपादेयता, गुरु-शिष्य परम्परा का सम्मान, मित्रता की पावन भावना को अक्षुण्ण बनाए रखना आदि मुद्दों पर उनके लेखन में सार्थक चर्चा रहती है। उनकी कृति ‘कौन दिलों की जाने’ पर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के शोधार्थियों द्वारा लघु शोध-प्रबंध के लिए शोध कार्य किया गया। वहीं बाबा मस्तनाथ विश्वविद्यालय, रोहतक तथा ओम ग्लोबल स्टर्लिंग विश्वविद्यालय हिसार से एक-एक शोधार्थी उनके उपन्यासों पर पीएचडी कर रहे हैं। इसके अलावा साहित्य लेखन के साथ लाजपत राय गर्ग गौ-सेवा में भी सक्रीय रहे और बनूड़-अम्बाला रोड पर बन रहे ‘मात-पिता गौधाम’ का वह एक पैटर्न भी हैं।
आधुनिक युग में साहित्य
वरिष्ठ साहित्यकार लाजपत राय ने आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति को लेकर कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, जिसका हर युग में सृजन होना स्वाभाविक है। इसका कारण है कि संवेदनशील व सृजन की क्षमता रखने वाला कोई भी व्यक्ति इन प्रभावों को अभिव्यक्त किए बिना नहीं रह सकता। जहां तक साहित्य के पाठकों में कमी का सवाल है, उसके पीछे हमारी शिक्षा नीति है। इस युग में एक गरीब परिवार भी सरकारी स्कूलों के बजाए अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में भेजना पसंद करते हैं, जहां शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी है। यही कारण है कि अब बचपन में चन्दा मामा, नंदन जैसी पत्रिकाएँ बच्चों को पढ़ने के लिए मिलती थीं, बल्कि आज अंग्रेज़ी के कॉमिक्स अवश्य मिलती है। वहीं आज सोशल नेटवर्किंग ने भी साहित्य पठन-पाठन को प्रभावित किया है। पुस्तकों की बजाय पाठक डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म पर पढ़ना अधिक पसन्द करते हैं। ऐसे में हिंदी ज्ञान की कमी के साथ शिक्षा के व्यावसायीकरण के कारण युवा पीढ़ी पैसा कमाने की यांत्रिक मशीन बनकर रह गई है। आज के युवाओं में धैर्य और सहनशक्ति की कमी से समाज और संस्कृति पर नकारात्मक प्रभाव ने आज के युवाओं में धैर्य और सहनशक्ति की कमी बढ़ती जा रही है। समाज और संस्कृति के प्रति सकारात्मक संदेश देने का माध्य साहित्य ही है, इसलिए युवा पीढ़ी को स्कूल व कालेजों या अन्यत्र पुस्तकालयों में साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने की अत्यंत आवश्यकता है। वहीं बदलते परिवेश में लेखकों व साहित्यकारों को भी अपनी अच्छी रचनाओं को डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों पर अपलोड करनी चाहिए।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ साहित्यकार लाजपत राय गर्ग की प्रकाशित पुस्तकों में साझा संकलन ‘66 लघु कथाकारों की 66 लघुकथाएं और उनकी पड़ताल (खंड -30), लघुकथा मँजूषा, लघुकथा में किसान, ओस की बूँद, सार्थक लघुकथाएँ, विभाजन त्रासदी की लघुकथाएं, समसामयिक लघुकथाएँ, लघुकथाएँ: इक्कीसवीं सदी के दो दशक, तपती पगडंडियों के पथिक, अदहन क आखर(अवधी) तथा ‘रिश्तों की महक’(साझा कहानी संकलन) शामिल है। वहीं उनके सात उपन्यासों में ‘कौन दिलों की जाने’, पल जो यूँ गुज़रे, पूर्णता की चाहत, प्यार के इन्द्रधुनष, अनूठी पहल, अमावस्या में खिला चाँद व प्रेम के स्याह रंग सुर्खियों में हैं। उन्होंने कई लेखकों की पुस्तकों का पंजाबी में अनुवाद भी किया।
सम्मान व पुरस्कार
वरिष्ठ साहित्यकार को हरियाणा साहित्य अकादमी ‘मुंशी प्रेमचंद श्रेष्ठ कृति पुरस्कार’ से नवाजा जा चुका है। वहीं उन्हें लघुकथाओं के लिए श्रद्धा पुरस्कार, स्मृति पुरस्कार व सामाजिक आक्रोश पुरस्कार, उपन्यास के लिए अम्बिका प्रसाद दिव्य स्मृति प्रतिष्ठा पुरस्कार, डॉ. मधुकांत साहित्य गौरव सम्मान, कथा रत्न सम्मान, कोशी साहित्य शौर्य सम्मान(स्वर्ण सम्मान), ‘राष्ट्रीय पंकस अकादमी अवार्ड, ‘मुंशी प्रेमचंद सारस्वत सम्मान, निर्मला स्मृति हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान, डॉ. महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान, जयपुर सर्वोत्कृष्ट कृति सम्मान, स्व. सुगमचंद स्मृति पुरस्कार, ‘लोक साहित्यकार श्री जयलाल दास श्रेष्ठ कृति सम्मान भी मिल चुके हैं। वहीं उन्हें केशवदेव गिनिया देवी बजाज स्मृति सम्मान, ‘उदयकरण सुमन स्मृति साहित्य गौरव सारस्वत सम्मान, जयलाल दास स्मृति साहित्य गौरव सम्मान व डॉ. अनवर सीवनी साहित्य सम्मान जैसे सैकड़ो पुरस्कार मिल चुके हैं। हरियाणा उपन्यास प्रतियोगिता में इसी साल द्वितीय पुरस्कार पाने वाले लेखक को स्नातकोत्तर शिक्षा विभिन्न निबन्ध प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान भी मिल चुका है।
02Dec-2024
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