सोमवार, 25 नवंबर 2024

चौपाल: लोक कला व संस्कृति के संवर्धन में जुटे कलाकार बलराज सिंह

गीत लेखन, गायन, अभिनय और नृत्य की कला से मिली पहचान 
         व्यक्तिगत परिचय 
नाम: बलराज सिंह 
जन्म तिथि: 16 अक्टूबर 1989 
जन्म स्थान: गांव भाणा, जिला कैथल (हरियाणा)
शिक्षा: स्नातक 
संप्रत्ति: अभिनय, गायक व लोक नृत्य  
BY--ओ.पी. पाल 
भारतीय संस्कृति में हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता की पहचान देश में ही नहीं विदेशों में भी लोकप्रिय होती जा रही है। इसके लिए हरियाणावी लोक कलाकारों के योगदान को का कभी भुलाया नहीं जा सकता, जो हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन के लिए अपनी अलग विधाओं में समाज को भी नई दिशा देने में जुटे हैं। ऐसे ही लोक कलाकारों में बलराज सिंह पांचाल ने सामाजिक, अध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से गीत लेखन, गायन, अभिनय ओर नृत्य जैसी विधाओं में जिस प्रकार से निपुणता हासिल की है। वह अपनी इन कलाओं के अनुभवों से युवा पीढ़ी के साथ साझा करके उन्हें अपनी संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा दे रहे हैं। लोक कला व संस्कृति के सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान कलाकार बलराज सिंह ने अपने अनुभवों को साझा किये। उनका मानना है कि समाज में सकारात्मक विचारधारा का संचार करने के लिए लोक कलाकारों को लुप्त होती लोक कलाएं, सभ्यता और संस्कृति को आगे बढ़ाना आवश्यक है। 
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लोक कला के क्षेत्र के कलाकार बलराज सिंह का जन्म 16 अक्टूबर 1989 को हरियाणा के कैथल जिले के गांव भाणा में दलबीर सिंह व श्रीमती संतोष देवी के घर में हुआ। एक संयुक्त एवं साधारण परिवार में उनके पिता दो भाई हैं, जिसमें अपने घर में दो भाईयों में बलराज अपने पिता के छोटे बेटे हैं। जब उनका जन्म हुआ। उनके पिता पिता और चाचा गांव में होने वाली रामलीला में पात्रों के रुप में अभिनय करते थे। दरअसल उनके पिता को साल 1995 में गांव की रामलीला हुई तो उनके पिता को दिल्ली में होने वाली रामलीला में अभिनय करने के लिए आमंत्रित किया गया, लेकिन पिता ने गांव से बाहर जाने से मना कर दिया। पिता से मिली प्रेरणा से उन्होंने भी अभिनय के क्षेत्र में एक कलाकार की जिंदगी जीने का मन बनाया। इसके लिए उनके पिता व चाचा ने उसे प्रोत्साहत किया और अभिनय व गायन के गुर सिखाते हुए कहा कि एक कलाकार के रुप में वह गांव से बाहर अपनी कला का प्रदर्शन करेगा, तो उसका लोक कला के क्षेत्र में अच्छा नाम होगा। इसके लिए उन्होंने गांव की रामलीला के मंच पर पहली बार लक्ष्मण के किरदार से अभिनय की शुरुआत की। यहां से हुई अभिनय की शुरुआत के बाद जब वह चौथी कक्षा में थे तो स्वतंत्रता दिवस के मौके पर स्कूल में आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में नाटक में उन्होंने एक अनपढ़ परिवार के मुखिया का किरदार किया। इसके किरदार के लिए गांव के सरपंच से इनाम भी मिला। ऐसे में लोक कला के क्षेत्र में आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। उन्होंने लोक कलाकार के रुप में हर साल गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस पर मंच पर कोई न कोई किरदार निभाना शुरु कर दिया। उनके गांव के ही प्रमोद कुमार ने उन्हें बनाई गई एक नाटक मंडली में शामिल करके काम करने के लिए मौका दिया। उनकी नाटक मंडली को लोक संपर्क विभाग में दो साल नाटक का कंट्रेक्ट मिला। इसके तहत पंचकूला में रंगमंच कार्यशाला में करीब 400 कलाकार आए, जिसके लिए चयनित हुए दस कलाकारों में वह भी शामिल रहे। इस दौरान उन्होंने हरियाणा के दस जिलों में रक्तदान भी किया और नाटक मंचन के जरिए एड्स के प्रति लोगों को जागृत किया। इस दौरान उनकी मुलाकात नृत्य गुरु सुभाष शर्मा से हुई, तो उनसे नृत्य सीखा और उनके प्रोत्साहन से वह अभिनय व गायन के साथ नृत्य विधा में निपुण हो गये। इस कला का उन्होंने पहली बार यूथ फेस्टिवल के लिए एकल व सामूहिक नृत्य का प्रदर्शन किया। इसका नतीजा ये रहा कि हरियाणवी, जंगली, डांस, हरियाणवी प्ले जैसी गतिविधियों में उनकी टीम विजेता रही, जिसकी ज्यूरी में प्रसिद्ध कलाकार महावीर गुड्डु भी थे। उन्होंने अपने साथ भी उनसे कार्यक्रम कराए, जिनकी टीम में वह पहली बार वह 26 जनवरी के प्रोग्राम के लिए बीकानेर और उसके बाद यूपी के इलाहाबाद कुंभ मेला, कुरुक्षेत्र के गीता महोत्सव, के अलावा ओडिशा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, महाराष्ट्र कोलकाता, दमनद्वीप, असम, मणिपुर, मिजोरम आदि राज्यों में होने वाले सांस्कृतिक महोत्सव में उसने अपनी अलग अलग विधाओं का प्रदर्शन किया। बकौल बलराज सिंह, इस दौरान उनके चार जागरण करते थे तो उनका रुझान गायन में भी रहा और हरियाणवी वेशभूषा में गायन की तरफ चला गया। उनकी रंगमंच, गायन और लोक नृत्य में एक कलाकार के रुप में ऐसी पहचान बनी कि उनके गुरु उसे नृत्य और रंगमच सिखाने के लिए स्कूल व कॉलेजों में भेजने लगे। वह हरियाणा के एक दर्जन से भी ज्यादा शिक्षण संस्थानों में लोक कला में रुचि रखने वालें बच्चों को गायन, नृत्य और नाटक के लिए अभिनय सीखा चुके हैं और युवा पीढ़ी के लिए उन्होंने राज्य के कई शहरों के स्कूलों में कार्यक्रम भी कराए हैं। उनका कहना है कि आज के आधुनिक युग में समाजिक विसंगतियां बढ़ने के पीछे लुप्त होती लोक कलाएं, सभ्यता और संस्कृति है। इसके लिए लोक गायकों और कलाकारों को समाज को सकारात्मक संदेश देने वाली कलाओं को आगे बढ़ाना होगा। इसके लिए युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति जागरुक करने की आवश्यकता है। 
ऐसे मिली मंजिल 
कलाकार बलराज सिंह का कहना है कि पंचकूला में हुई कार्यशाला में एक मुलाकात के बाद सुमेर शर्मा ने उन्हें गीता जयंती महोत्सव में दो बार नकुल का किरदार करने का मौका दिया। वहीं यूथ फेस्टिवल के दौरान उनकी मुलाकात हरियाणा कला परिषद के निदेशक नागेन्द्र शर्मा से हुई, जिन्होंने उसका परिषद में पंजीकरण कराया। इसके बाद उन्हें गीता जयंती के अलावा विभिन्न तीर्थों के कार्यक्रमों के अलावा हरियाणा कला परिषद की नृत्य कार्यशाला में भी अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका मिला। उन्हें हरियाणा कला परिषद की बैठक में उनके समेत ऐसे कलाकारों को भी बुलाया गया, जो लुप्त होती कलाओं को बचाने के लिए 10-15 साल से कार्य कर रहे हैं। इसी सफर के दौरान उन्हें सूर्य कवि दादा लखमी के शिष्य और गांव के महंत बाबा विद्यापुरी से हुई मुलाकात ने उन्हें गायन के प्रति भी जिम्मेदार बनाया। 
सम्मान व पुरस्कार 
लोक कलाकार के रुप में कलाकार बलराज सिंह हरियाणा के अलावा अन्य राज्यों में आयोजित कार्यक्रमों में सम्मानित किया गया। रंगमंच, नाटक, अभिनय, गायन और नृत्य की अलग अलग विधाओं में उन्हें अनेक पुरस्कार देकर सम्मानित किया गया है। अंबाला कैंट में एक कार्यक्रम में सेना से सम्मान पाने का भी सौभाग्य मिला। देशभर में विभिन्न कार्यक्रमों में वह नाटक और गीत भी लिखने लगे, जिसमें नाटक और हरियाणवी गीत के रुप में प्रस्तुति करने पर उनकी टीम को राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित स्कूलों की प्रतिायोगिता में पहला स्थान मिला। 
25Nov-2024

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