साहित्य सृजन में हिंदी भाषा के संवर्धन के लिए हासिल की लोकप्रियता
व्यक्तिगत परिचय
नाम: आशमा कौल
जन्म तिथि:18 अक्टूबर, 1961
जन्म स्थान:श्री नगर, कश्मीर
शिक्षा: दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य स्नातक, रूसी भाषा में डिप्लोमा, पत्रकारिता एवं
जनसंचार, केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो, भारत सरकार से अनुवाद प्रशिक्षण ।
संप्रति: कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार से (सेवा निवृत) राजपत्रित अधिकारी
संपर्क: 2665, सेक्टर 16, एस. पी. रोड, फरीदाबाद- 121002 , मोबाईल नंबर 9868109905
BY--ओ.पी. पाल
साहित्य के क्षेत्र में अपनी विभिन्न विधाओं में समाज को नई दिशा देते आ रहे लेखकों में हिंदी भाषी ही नहीं, बल्कि देश की विभिन्न भाषा के लेखक भी हिंदी साहित्य के संवर्धन के लिए साधना करते आ रहे हैं। ऐसे ही लेखकों में कश्मीर के श्रीनगर में जन्मी महिला साहित्यकार आशमा कौल है, जो कश्मीरी भाषी होने के बावजूद हिंदी भाषा में अपने रचना संसार को आगे बढ़ाते हुए साहित्य सृजन करने में जुटी हैं। कश्मीर के श्रीनगर में जन्मी और दिल्ली विश्वविद्यालय से शिक्षित होने के बाद हरियाणा में बसी आशमा कौल ने अपनी लेखनी से कहानियों, लघुकथाओं और खासतौर से कविताओं के जरिए समाज के बिगड़ते ताने बाने के बीच समाज को सामाजिक परंपराओं के प्रति सकारात्मक ऊर्जा देने का प्रयास कर रही हैं। हिंदी की सुपरिचित कवयित्री के रुप में लोकप्रिय आशमा कौल ने अपने साहित्यिक सफर को लेकर हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कुछ ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिनमें सामाजिक व्यवस्था का विचलन, मूल्य विघटन जैसे सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों का हल साहित्य से संभव है।
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हरियाणा में साहित्य साधना कर रही महिला साहित्यकार आशमा कौल का जन्म जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में नानी के घर हुआ, लेकिन उनका पालन पोषण दिल्ली में पिता बिहारी लाल पारिमू और माता श्रीमती रीता पारिमू ने किया, जहां उनके पिता केंद्र सरकार में कार्यरत थे। मेरा जन्म श्रीनगर, कश्मीरमें नानी के घर हुआ था लेकिन मेरा पालन-पोषण दिल्ली में हुआ जहां मेरे पापा केंद्र सरकार में कार्यरत थे। उनके परिवार में कोई लेखक नहीं था, लेकिन उनकी माता ने कश्मीर में रत्न भूषण प्रभाकर किया था, इसीलिए घर में कश्मीरी, हिन्दी और अंग्रेजी तीनों भाषाएं व्यवहार में शामिल रही। वह आशमा बचपन में अपनी बनाई कोई कविता माँ को सुनाती, तो वह विस्मित होती और खुश भी होती। मां के कहने पर ही उसने अपने भावों को एक डायरी में लिखना शुरू कर दिया था। बकौल आशमा कौल, वैसे तो उसने छठी या सातवीं कक्षा में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था, लेकिन उन्हें तब यह नहीं पता था, कि कविता किस चिड़िया का नाम है। शायद उस समय पिछले जन्मों के कुछ संस्कार रहे होंगे और वाग्देवी का वरदहस्त मुझ पर रहा होगा, कि उस बालपन में वह कविता लिखने लगी थी। उनकी पहली कविता ‘क्षितिज’ कॉलेज की पत्रिका में छपी थी और सुंदर पेंटिंग की किताब देकर उसे पुरुस्कृत किया गया। ऐसे में साहित्य के प्रति उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। उनका कहना है कि उनका साहित्यिक सफ़र बहुत ही रोमांचक रहा। मसलन विवाह से पहले वह बहुत अंतर्मुखी और एकांतप्रिय लड़की थी और शोर-शराबे से दूर बैठ कर या तो कोई कविता लिख रही होती या कोई पेंटिंग बना रही होती थी। उस समय पिता को कविता लिखना बेकार लगता और वह उसे पढ़ाई पर ध्यान देने को कहते, लेकिन वह छिप-छिप कर कविताएं लिखकर माँ और बड़ी बहन को सुनाती थी। साल 1987 में उनका विवाह हुआ और वह आशमा पारिमू से आशमा कौल बनकर फरीदाबाद में बस गई। अकेले होने की वजह से पहले दिन से ही गृहस्थी की डोर संभाल ली थी। खासबात ये रही कि कि कुछ साल बाद ही फरीदाबाद में कुछ लेखक उनके मित्र बन गए और वह फिर से लिखने लगी। उन्हें याद आया कि उनकी बचपन में लिखी डायरी मायके में लोधी रोड पर थी, किसी तरह डायरी निकाली तो उसे दीमक ने खाचारों ओर से खा लिया था। ईश्वर की कृपा से डायरी के बीच बीच की जगह बच गई थी और उसने उन कविताओं को पुनः पृष्ठों पर उतारा। उस ड़ायरी की कुछ कविताएं दिल्ली हिन्दी अकादमी के सहयोग से ‘अनुभूति के स्वर’ संग्रह में आई और कुछ कविताएं हरियाणा साहित्य अकादमी के सहयोग से ‘अभिव्यक्ति के पंख’ संग्रह में आई। वह बहुत भाग्यशाली रही कि इन संग्रहों की प्रस्तावना वरिष्ठ साहित्यकार स्वर्गीय कमलेश्वर, आकाशवाणी के महानिदेशक कुबेर दत्त, स्वर्गीय दिनेशनंदिनी डालमिया, चंद्रकांता, लक्ष्मी शंकर वाजपायी, अमरनाथ अमर और उपेन्द्रनाथ रैना ने लिखी। वह भी केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय में राजपत्रित अधिकारी के पद पर कार्यरत थी, तो पूरा समय नौकरी और बच्चों के साथ निकल जाता और चाहते हुए भी कुछ अधिक लिख नहीं पा रही थी। ऐसे समय में पतिदेव की सलाह पर उसने बस या गाड़ी से दिल्ली आते जाते समय में बहुत कुछ लिखा और साहित्यिक यात्रा धीमी गति से ही चाहे, लेकिन जारी रखा। जब कुछ काव्य संग्रह प्रकाशित हुए तो उनके पिता ने भी उनका ने उनका उत्साहवर्धन किया और हिन्दी भाषा कमज़ोर होते हुए भी वे आँख की समस्या से जूझ रहीं माँ को हर दिन उनकी एक नई कविता पढ़कर रोज़ सुनाते। बचपन में समाज में होने वाली हर छोटी बड़ी घटना से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रकृति और खासतौर से नारी स्वयं अपनी जगह बना लेते हैं। इसलिए उनकी रचनाओं का फोकस हमेशा सामाजिक विद्रूपताओं पर रहा है। उनके काव्य संग्रह ‘बीज ने छू लिया आकाश’ की अधिकांश कविताएं प्रकृति से ही प्रेरित हैं, जिसे वर्ष 2024 का ‘जयपुर सम्मान’ प्राप्त हुआ। खासबात ये है कि उनकी भाषा कश्मीरी है, लेकिन उनका लेखन हिन्दी में रहा है। हालांकि कश्मीर पर भी उनका काव्य संग्रह ‘जन्नत ए कश्मीर’ है, जिसमें वहाँ की सुंदरता और आतंकवाद से जुड़ी कविताएं हैं। इसकी भूमिका पद्मश्री स्वर्गीय जे. एन. कौल जी ने लिखी है। इस संग्रह का अंग्रेजी अनुवाद प्रसिद्ध कवि और अनुवादक भूपिंदर तिकू जी ने किया ‘Kashmir the Paradise on Earth’और इसकी भूमिका जे.एन.यू. के पूर्व कुलपति पद्मश्री डॉ सुधीर सोपोरी और ए.पी.जे. इंस्टिट्यूट ऑफ मास-कम्यूनिकेशन के सलाहकार प्रोफेसर अशोक ओगरा ने लिखी है। उनकी रचनाएं राष्ट्रीय स्तर की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही हैं। वहीं उनकी कविताओं का प्रसारण आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी हो रहा है। वे सर्वभाषा राष्ट्रीय कवि सम्मेलन (कटक) में बतौर कश्मीरी अनुवाद-कवयित्री के रूप में आपकी सहभागिता करने के साथ कई साहित्यिक और सामाजिक संस्थाओं की सदस्य भी हैं।
आधुनिक युग में वैभव पर साहित्य
आधुनिक युग में वैसे तो साहित्य अपने पूरे वैभव पर है और इस युग में गद्य, पद्य, निबंध, आलोचना और नाटक जैसी विधाओं में हर तरह से हिन्दी साहित्य का विकास हुआ है। खासतौर से कविता को साहित्य का स्वर्णिम युग कहा जा सकता है। लेकिन यह भी सच है कि दूसरी तरफ साहित्य के पाठक कम हो रहे हैं, जिसका सबसे बड़ा कारण है कि आज पत्रिकाओं और पुस्तकों की जगह सोशल मीडिया ने ले ली है। इस पाठकीय संकट बढ़ने कारणों में अब लोग गूगल सर्चिंग से सब जानकारी ले रहे हैं। खासतौर से युवा पीढ़ी की तो साहित्य में रुचि बेहद कम होती जा रही है। इसके पीछे आज की नई पीढ़ी तनावपूर्ण परिस्थितियों में सफल होने के लिए संघर्षरत है और बेरोजगारी और प्रतिस्पर्धात्मक तनाव की वजह से इस पीढ़ी पर दबाव बढ़ रहा है। इन भी कारणों से प्रभावित साहित्य का समाज पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है, जिसके कारण समाजिक मूल्यों में गिरावट आ रही है और समाज का ताना बाना नष्ट हो रहा है। युवा पीढ़ी अपनी संस्कृति और सभ्यता से दूर होती जा रही है। ऐसे में युवाओं को साहित्य के लिए प्रेरित करने की आवश्यकता है। क्योंकि साहित्य युवा वर्ग को स्वस्थ कलात्मक और ज्ञानवर्धक मनोरंजन प्रदान के साथ उनके चरित्र निर्माण में भी सहायक होता है। जहां साहित्यकारों व लेखकों को भी सस्ती लोकप्रिता हासिल करने के बजाए अच्छे साहित्य सृजन करने की जरुरत है, तो वहीं माता पिता को अपने बच्चों में पढ़ने के संस्कार बचपन से ही डालने की आवश्यकता है, ताकि वे समाज में सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर सके। साहित्यिक उत्सव और पुस्तक मेलों में सरकार या साहित्यिक संस्थाओं को युवा वर्ग को भागीदारी करने का मौका देना चाहिए।
प्रकाशित पुस्तकें
वरिष्ठ महिला साहित्यकार आशमा कौल की अब तक करीब एक दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें नौ काव्य संग्रह-अनुभूति के स्वर, अभिव्यक्ति के पंख, बनाए हैं रास्ते, ‘ज़िंदगी एक पहेली, जन्नत-ए-कश्मीर, बीज ने छू लिया आकाश, स्मृतियों कीआहट, मन के मनके और‘नाज़ुक लम्हे सुर्खिंयों में हैं। इसके अलावा उनका एक लघु कथा संग्रह ‘दोषी कौन’ भी लोकप्रिय है। काव्य संग्रह ‘जन्नत-ए-कश्मीर’ का अंग्रेजी अनुवाद ‘Kashmir the Paradise on Earth’ के नाम से प्रकाशित हो चुका है। उनके दो संग्रह (कहानी और काव्य) जल्द ही पाठकों के बीच होंगे।
सम्मान व पुरस्कार
साहित्य सृजन कर रही कवयित्री आशमा कौल को हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट योगदान के लिए ‘शब्द गंगा साहित्य सम्मान’, परमहाकवि रसखान राष्ट्रीय शिखर साहित्य सम्मान’, अखिल भारतीय ‘अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण सम्मान’, ‘जयपुर साहित्य सम्मान’, ‘शिल्पी चड्ढा स्मृति सम्मान’, ‘भारती भूषण’, ‘हिन्दी काव्य विभूषण’ की मानद उपाधि,‘शब्द माधुरी’ सम्मान, ‘अंतरंग कला सम्मान’, राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान, ‘स्मृति साहित्य सम्मान’, ’काव्य-रतन’ सम्मान, इंडो-पाक तंजीमे एहसासात’ से ‘साहित्य शिल्पी’ सम्मान', शकुंतला कपूर स्मृति श्रेष्ठ लघु कथा सम्मान नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें ‘हिन्दी काव्य विभूषण’ की मानद उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं साहित्य समर्था’ जयपुर से लघुकथा पर द्वितीय पुरुस्कार हासिल हुआ। उन्हें साहित्य सभा कैथल, लघुकथा मंच सिरसा, आगमन संस्था आदि साहित्यिक संस्थाओं से अनेक पुरस्कार देकर सम्मानित किया जा चुका है।
13Jan-2025
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